ज़िन्दगी

राघवेन्द्र कुमार “राघव”

 
क्या सर्दी और क्या गर्मी, 
 
मुफ़लिसी तो मुफ़लिसी है । 
 
 कांपती और झुलसती ज़िन्दगी चलती तो है ,
 
 पर भूख की मंज़िल तो बस खुदकुशी है ।
 
 गंदे चीथड़ों  में खुद को बचाती ,
 
 इंसानी भेड़ियों  से इज्ज़त छिपाती ।
 
 हर रोज जीती और मरती है ,
 
 ये हमारी कैसी बेबसी है ।
 सड़क के किनारे फुटपाथों पर ज़िन्दगी , 
 
कीचड़ और कूड़े के ढेर में सनी है ।
 
 खाली पेट ही इन्हें कोई रौंद जाता है ,
 
 पर ये लावारिस लाशे ख़ामोश कितनी है ।
 
 किसी से ये कोई शिकायत नहीं करती ,
 
 चाहें गटर में फेंक दी जाये या नाले में । 
 
ये इन्सान कितना पत्थर दिल हो गया है ,
 
 कैसी हमारे महान देश की बदकिस्मती है ।
 
क्या सर्दी और क्या गर्मी, 
 
मुफ़लिसी तो मुफ़लिसी है ।।
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राघवेन्द्र कुमार 'राघव'
शिक्षा - बी. एससी. एल. एल. बी. (कानपुर विश्वविद्यालय) अध्ययनरत परास्नातक प्रसारण पत्रकारिता (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय) २००९ से २०११ तक मासिक पत्रिका ''थिंकिंग मैटर'' का संपादन विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं में २००४ से लेखन सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में २००४ में 'अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ' के साथ कार्य, २००६ में ''ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी'' का गठन , अध्यक्ष के रूप में ६ वर्षों से कार्य कर रहा हूँ , पर्यावरण की दृष्टि से ''सई नदी'' पर २०१० से कार्य रहा हूँ, भ्रष्टाचार अन्वेषण उन्मूलन परिषद् के साथ नक़ल , दहेज़ ,नशाखोरी के खिलाफ कई आन्दोलन , कवि के रूप में पहचान |

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