दो पड़ोसियों की लाइफलाइन है दोस्ती

कल भारत-पाक के बीच विदेश सचिव स्तर की बातचीत खत्म हुई तो मीडियावाले विवाद खोज रहे थे, पंगे वाले सवाल उठा रहे थे। बातचीत को व्यर्थ बता रहे थे। प्रेस काँफ्रेस में भारत की विदेश सचिव निरुपमा राव शांतभाव से पत्रकारों के सवालों के जबाव दे रही थीं, राव की बॉडी लैंग्वेज में जो स्वाभाविकता और सहजता थी वह तारीफ के काबिल है।

कूटनीति की भाषा शरीर की भावभंगिमा के जरिए बहुत कुछ कह देती है। निरुपमा राव की भावभंगिमा ने मीडिया की सनसनी को ठंड़े बस्ते में ड़ाल दिया है। दोनों पड़ोसी देशों में बातें हों यह सभी चाहते हैं,खासकर इन देशों की जनता यही चाहती है।

विदेश सचिव स्तर की बातचीत के ठीक पहले पूना में ब्लास्ट हुआ जिसमें अनेक लोग मारे गए। आतंकी नहीं चाहते कि भारत-पाक में दोस्ती और संवाद बने। दोनों देशों के संबंध ज्यों ही सामान्य होने शुरु होते हैं कोई न कोई हंगामा खड़ा कर दिया जाता है। मीडिया इस प्रक्रिया में आग में घी का काम करता रहा है। मीडिया और दोस्ती विरोधी देशी ताकतों को (ऐसी ताकतें दोनों देशों में हैं) यह बात पसंद नहीं है कि भारत-पाक में दोस्ती बनी रहे।

कायदे से देखा जाए तो इसबार की बैठक सार्थक रही है। लंबे अंतराल के बाद यह बैठक हो पायी है। इस तरह की बैठकें ज्यादा होनी चाहिए। राष्ट्रों की समस्याएं कूटनीतिक वार्ताओं से ही हल होती है, पंगों से या घृणा से नहीं। भारत ने पाक को 3 दस्तावेज सौंपे हैं जिनमें पाक से चलने वाली आतंकी गतिविधियों का कच्चा चिट्ठा है और भारत ने इन तीनों दस्तावेजों पर कार्यवाही की मांग की है।

हमें यह ध्यान रखना होगा कि पाक में आईएसआई जैसा खतरनाक खुफिया संगठन भी है जो अमेरिकी गुप्तचर संस्था के साथ मिलकर काम करता रहा है। भारत और पाकिस्तान में आतंकी ग्रुपों को वह मदद करता रहा है और आज भी कर रहा है। कुछ अर्सा पहले तक अमेरिकी नागरिक रिचर्ड हेडली जैसे जासूस भारत में आतंकियों के लिए काम कर रहे थे, हमारी सरकार अभी तक अमेरिकी प्रशासन के साथ गरमी के साथ हेडली जैसे खतरनाक व्यक्तियों के बारे में बात नहीं कर पायी है। हेडली को लेकर अमेरिका के प्रति संघ परिवार भी चुप है ,यह चुप्पी बड़ी अर्थपूर्ण है, भारत को अमेरिका को साफ कहना चाहिए कि हेडली को वह हमें सौंपे, हम पाक से आतंकियों को सौंपने की मांग कर रहे हैं लेकिन अमेरिका से हेडली को सौपने की मांग क्यों नहीं करते? क्या बात है कि आतंकियों के साथ अमेरिकी जासूसी संस्थाओं के संबंध हमें दिखाई नहीं देते। हेडली के मामले में अमेरिकी विदेश विभाग भी फंसा हुआ है,हेडली को अमेरिका ने क्यों भेजा यह अभी भी रहस्य बना हुआ है। हिन्दी में कहावत है चोर को न मारो चोर की मईया को मारो। आतंक की गंगा अमेरिका से आ रही है। यह बात मीडिया वाले भी नहीं बताते और नहीं अमेरिका से ही हेडली को भारत को सौंपने की मांग करते हैं। इसी को कहते हैं मीडिया की अमेरिकी भक्ति और पाक द्वेष।

भारतीय उपमहाद्वीप में अमेरिका सबसे बड़ा खतरा है न कि पाकिस्तान। आतंकी नरक में पाक को डुबोने वाला अमेरिका है और आतंकवाद के बहाने पाक को वह हजम कर जाना चाहता है, यदि ऐसा होता है तो भारत के लिए खतरा और भी बढ़ जाएगा। पाक को दोस्ती के मार्ग पर लाना हमारी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत-पाक दोस्ती बनी रहे इससे इस क्षेत्र की जनता को लाभ होगा,जबकि अमेरिकी शस्त्र उद्योग नहीं चाहता कि भारत-पाक में दोस्ती बनी रहे, शस्त्र उद्योग के विचारक और दलाल बार बार मीडिया में आ रहे हैं और वे उन्हीं बातों पर जोर दे रहे हैं जिससे भारत-पाक में और भी कटुता पैदा हो । हमें भारत-पाक में दोस्ती के बिंदुओं को सामने लाना होगा और यही अमेरिकी शस्त्र उद्योग को करारा प्रत्युत्तर होगा। भारत-पाक एक-दूसरे की लाइफलाइन हैं। किसी अवस्था में यह लाइन बंद नहीं होनी चाहिए।

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here