लाइट दा मामला

पंडित सुरेश नीरव

लाइट के मामले को कभी लाइटली नहीं लेना चाहिए। खासकर के यूपी और बिहार के लोगों को। क्योंकि उनके लिए तो लाइट से ज्यादा सीरीयस मामला कोई और होता ही नहीं है। कई-कई दिनों बाद लाइट के दर्शम होते हैं। और होते हैं तो एक दिन में कई-कई ये कोई दिल्ली मुंबई थोड़े ही है जो एक बार लाइट आ गई तो फिर जाने का नाम ही नहीं लेती। अपुन के शहर में तो लाइट एक दिन में कई-कई बार आती है। क्योंकि आती भी कई-कई दिन बाद ही है। इसलिए लोगों के जहन में हर वक्त लाइट की ही खयाल रहता है। बात-बात पर लाइट के ही जुमले उछालते रहते हैं। ज़रा कोई सजा-धजा दिखा तो तड़ से डॉयलाग पेल दिया-बड़ी लाइट मार रहे हो। और अपनी किसी नखरैल माशूका के नकचढ़ेपन की तारीफ में कसीदे काढ़ने का मन हुआ तो कह दिया- अरे वो तो छूते ही करेंट मारती है। बददिमाग बॉस के लिए यदि कहा जाता है कि कड़क बिजली है तो बूढ़े खूसट को मुहब्बत की दुनिया में फ्यूज बल्ब कहा जाता है। मंद बुद्धि प्रेमिका है तो उसे प्यार में प्रेमी ट्यूब लाइट कहता है। मुंबइया फिल्मों में टपोरी उस्ताद के दोस्तों का नाम ही सर्किट होता है। महबूबा जब मूड में होती है तो कहती है-बिजली गिराने लो मैं आई..हवा हवाई। और आशिक भी उसकी तारीफ में यही कहता है- कि कमर पतली नज़र बिजली। यानी अपुन के देश में लोगों की सारी जिंदगी ही पावर हाउस हो गई है। क्या करें भूखे को तो सपने में भी रोटी ही दिखाई पड़ती है। जहां बिजली नहीं होती वहां के बेचारे लोग बिजली के उपकरणों के नाम ले-लेकर ही आपस में मन बहलाते रहते हैं। और चोर-सिपाही की तर्ज पर ज़िंदगीभर बिजली-बिजली खेलते रहले हैं। कहने को हमारे देश में डेढ़सौ चैनल वाले टीवी सेट हैं। मगर जब तक रिमोट पर चैनलों से जूझते-जाझते आदमी अपने मनपसंद चैनल तक पहुंचता है कि लाइट फटाक से गुल हो जाती है। लाइट की हालत इसकदर पतली है कि अब तो लोग अंधेरे में भी लाइट म्यूजिक सुनने लगे हैं। लाइट इतनी नाजुक मिज़ाज है कि जरा हवा चली,जरा बरसात हुई कि वह अपने दड़वे में दुबक कर बैठ जाती है। पुण्यात्मा लोगों को बरसात में आसमान में चमकती बिजली से ही मोक्ष मिल जाता है। और जरूरतमंद लोग अंधेरे में ही सिगरेट लाइटर के आगे तमसो मा ज्योतिर्गमय का मंत्र पढ़कर अपने गुप्त ज्ञान का प्रदर्शन करते रहते हैं। सब प्रभु की माया है। किसी की कार में लाल लाइट जलती है तो किसी के घर में भी बत्ती गुल रहती है। किसी–किसी को लाल बत्ती का इतना जुनून रहता है कि वो रेडलाइट एरिया में ही रहने लगता है। तो कहीं कोई उत्साही अनकूल मौका पाकर किसी को भी बत्ती दे देता है। बत्ती की सिंहासन बत्तीसी भी बड़ी अजीब है। हमारे दुबई से ताजा-ताजा हिंदुस्तान आए एक दोस्त कल फटेहाल घर चले आए। बताया कि घर में लाइट नहीं है इसलिए चाय नहीं पी पाया हूं क्योंकि घर में इलेक्ट्रिक केटली है। शेव नहीं बना पाया हूं क्योंकि इलेक्ट्रिक रेजर है। बीवी कपड़े नहीं धो पायी है क्योंकि वाशिंग मशीन बिजली की है। एसी और फ्रिज भी बंद पड़े हैं। कल से इलेक्ट्रिक नहीं है। हमने कहा ये दुबई नहीं इंडिया है प्यारे। शाइनिंग इंडिया। ये अपने आप चमकता रहता है। इसे लाइट की क्या जरूरत। यहां बिजली के उपकरण पड़ोसियों पर रुतबा डालने के लिए खरीदे जाते हैं। ये सब सजावटी सामान हैं। जो कभी उपयोग में नहीं आते। सड़क बनते ही बिजली के खंभे लग जाते हैं मगर उनमें बल्ब कभी नहीं लगते। क्योंकि लाइट हो तब ना। खंभों के लगने से सड़क पर शो आ जाता है। फोटो में सड़क खंभों के काऱण बहुत अच्छी लगती है। वैसे भी बिजली हमारे यहां सजावट की चीज़ है। शादी,ब्याह पार्टियों से लेकर दीपावली के त्योहार तक हम बिजली का इस्तेमाल सजावट के लिए ही करते हैं। आप इंडिया में रह रहे हैं तो इंडिया की तरह ही रहिए। जब भी बिजली का खयाल आए अपने अड़ोस के बिजली खान या पड़ोस के बिजली बहादुर को पुरार लिया कीजिएगा। मन बहल जाएगा।

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