सुबह खुद चार पर उठकर,
हमें माँ ने जगाया है|
कठिन प्रश्नों के हल क्या हैं,
बड़े ढंग से बताया है|
किताबें क्या रखें कितनी रखें,
हम आज बस्ते में,
सलीके से हमारे बेग को ,
माँ ने जमाया है|
बनाई चाय अदरक की,
परांठे भी बनाये हैं|
हमारे लंच पेकिट को,
करीने से सजाया है|
हमारे जन्म दिन पर आज खुद,
माँ ने बगीचे में|
बड़ा सुंदर सलोना सा ,
हरा पौधा लगाया है|
फरिश्तों ने धरा पर,
प्रेम करुणा और ममता को|
मिलाकर माँ सरीखा दिव्य,
एक मंदिर बनाया है|
सुन्दर कविता। मौलिक भाव। बधाई।