आजीविका बनी जीविका का साधन

दिनेश पंत

देश में गरीबी उन्मूलन व आजीविका संवर्धन के लिए आजादी के बाद से ही प्रयास शुरू हो गए थे। तब से अब तक केंद्र और राज्य स्तर पर कई योजनाएं व परियोजनाएं सामने आयीं लेकिन उनमें से कितने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल हो पाईं यह बहस का विषय है। हालांकि प्रत्येक सरकार ने पुरानी असफलताओं से सबक लेते हुए नई परियोजनाओं की शुरूआत की। इनमें से जिन परियोजनाओं ने सार्थक परिणाम देने शुरू किए उनमें उत्तराखण्ड हिमालयी आजीविका सुधार परियोजना प्रमुख है। आजीविका से जुड़ी यह परियोजना न सिर्फ अपनी विशिश्ट पहचान बनाने में सफल रही है वरन् अन्य विकासोन्मुखी कार्यक्रमों के लिए एक सफल उदाहरण बनकर भी सामने आयी है। वर्तमान में यह परियोजना उत्तराखंड के पांच विकासखंडों अल्मोड़ा, बागेष्वर, चमोली, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी के 17 विकासखंडों में संचालित की जा रही है। इसमें 959 गांवों को लिया गया है ताकि 42,690 निर्धन परिवारों को परियोजना का लाभ दिलाया जा सके। परियोजना का लाभ इन ग्रामीणों तक पहुंचाने के लिए 4000 समुदाय आधारित संस्थाओं व स्वयं सहायता समूहों को जोड़ा गया है। इनमें स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी अधिक रही है। यह परियोजना राज्य में अक्टूबर 2004 में शुरू की गई थी। परियोजना के संचालन के लिए वित्तीय सहयोग इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (आईफैड) द्वारा किया जा रहा है।

आईफैड विश्‍व में गरीबी उन्मूलन के लिए सक्रिय हैं। हिमालयी आजीविका परियोजना का उद्देश्‍य भी यही है कि लोगों के जीवन में गुणवत्ता लाई जाए, इसके लिए लोगों की आजीविका में बढ़ोत्तरी हो, इस बढ़ोत्तरी के लिए स्थानीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाय। परियोजना के तहत आजीविका संर्वद्धन का सबसे बेहतरीन कार्य हो रहा है, अल्मोड़ा जनपद के तीन विकास खण्डों धौलादेवी, लमगड़ा व भौसियाछाना में। यहां के 203 ग्रामों में यह परियोजना चल रही है। जिसे स्वयंसेवी संस्था हिमालय अध्ययन केन्द्र द्वारा संचालित किया जा रहा है। परियोजना के तहत अभी तक 722 स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है। 7304 गरीब परिवार इस परियोजना से जुड़े हुए हैं। परियोजना के तहत जो समूह बने हैं उनके सदस्यों के सशक्तिकरण व क्षमता विकास के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण, परिभ्रमण, जागरूकता शिविरों का आयोजन किया जाता है। इनमें समुदाय के विकास व आयअर्जक गतिविधियों से जुड़ने के लिए उन्हें प्रेरित किया जाता है।

ग्राम स्तर पर समूह सदस्यों के लिए एस.एच.जी. मॉडयूल, स्वास्थ्य मॉडयूल, लेनदेन साक्षरता मॉडयूल व जेण्डर मॉडयूल जैसे रोचक प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाए गए हैं। इनके माध्यम से सदस्यों में समूह की भावना विकसित करने व स्वरोजगार की दिशा में सकारात्मक भावना विकसित किए जाने के प्रयास किए गए हैं। प्रत्येक समूह को अनिवार्य रूप से बैंक के साथ जोड़ा गया है। इस प्रकार कुल गठित 722 समूहों में से 700 समूहों को बैंको द्वारा कुल 6 करोड़ रू सी.सी.एल. (समूह की शाख के आधार पर लोन) के रूप में उपलब्ध कराया जा चुका है। समूहों से जुड़े 7304 सदस्य इसका भरपूर लाभ उठा रहे हैं और इसका प्रयोग समूहों द्वारा विभिन्न आयअर्जक गतिविधियों में किया जा रहा है। सूक्ष्म स्तर पर ग्राम में डेरी, मुर्गो, दुकान, सब्जी उत्पादन आदि उद्यम स्थापित किये गये हैं। जिससे गरीबतम परिवार सूक्ष्म स्तर पर आपसी लेन देन कर अपनी आय को भी बढ़ा रहे हैं। इन समूहों को एक मजबूत आधार प्रदान करने के लिए वृहद स्तर पर आयवर्धक गतिविधियों को बढ़ाया गया है। इसके तहत जनपद में 10 सहकारिताओं का गठन किया गया है जो उत्तराखण्ड स्वायत्त सहकारिता अधिनियम 2003 के तहत पंजीकृत हैं। ये सहकारितायें व्यवसाय आधारित गतिविधियों का संचालन करने लगी हैं।

वर्ष 2010-11 में सहकारिताओं द्वारा कुल 22 लाख रूपये का व्यवसाय किया गया। परियोजना द्वारा गठित सहकारिताओं को क्षेत्र की सम्भावनाओं के आधार पर विभिन्न वेल्यू चैन में बांटा गया। डेरी विकास के लिए मां पूर्णागिरी सहकारिता लमगड़ा, क्रायलर मुर्गो, बीज उत्पादन के लिए चेतना स्वायत्त सहकारिता लमगड़ा, सब्जी उत्पादन के लिए प्रगति स्वायत्त सहकारिता मोतियापाथर, क्रायलर सब्जी उत्पादन के लिए नारी एकता सहकारिता भैसियाछाना, मैप क्रायलर के लिए एकता स्वायत्त सहकारिता दन्या (धौलादेवी), मसाले मौसमी सब्जी प्रगति स्वायत्त सहकारिता नैनी (धौलादेवी), बीज उत्पादन, पर्यटन के लिए झांकर सैम स्वायत्त सहकारिता गुरूड़ाबांज, क्रायलर पालन, डेरी के लिए नवोदय स्वायत्त सहकारिता मनोली, मैप बीज उत्पादन के लिए समाधान स्वायत्त सहकारिता चेलदीना, मैप (मेडीसनल एरोमैटिक प्लांट), बीज उत्पादन। ये सभी दसों सहकारिताऐं अपनी वेल्यू चैन के आधार पर व्यवसाय संचालन का कार्य कर रही हैं। वर्तमान में जिले में गठित इन दस स्वायत्त सहकारिताओं से 4508 षेयर धारकों को जोड़ा जा चुका है। इस वर्ष सहकारिताओं द्वारा कुल 22 लाख रूपये का व्यवसाय किया गया। भनोली (अल्मोड़ा) आजीविका परियोजना के समन्वयक प्रकाश पाठक कहते हैं कि सहकारिताओं को वेल्यू चेन के आधार पर व्यवसाय व रोजगार से जोड़ने का लाभ मिला है। ये सहकारिताएं बेमौसमी सब्जी उत्पादन, क्रायलर मुर्गी पालन, डेरी विकास, मैप, जड़ीबूटी, टूरिज्म, जैविक कृषि, बीज उत्पादन आदि गतिविधियों में लगे हैं। जिला पंचायत सदस्य भनोली, अल्मोड़ा आनन्द प्रसाद आर्य कहते हैं कि आजीविका परियोजना की कार्यप्रणाली से ऐसा आभास होता है कि क्षेत्र के स्थायी विकास की दिशा में यह मील का पत्थर साबित हो रही है। जिस तरह से इस परियोजना में काम हो रहा है और सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं ऐसे में यह न सिर्फ राज्य के अन्य क्षेत्रों बल्कि देश के अन्य राज्यों में चल रही अन्य परियोजनाओं के लिए भी मार्गदर्षक का काम करेगी।(चरखा फीचर्स)

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