तन्हाई
छोड़ देती हूँ सिलवटे
अब ठीक नहीं करती,
मन सुकून चाहता ,
जो शायद मिल पाना मुश्किल,
मुस्कान भी झूठी लगती,
अच्छी थी कच्ची मिट्टी की मुस्कान,
वक्त के साथ, सोच बदल गयीं।
पर हकीकत कुछ और हैं.
सहारा नहीं साथ की दरकार हैं,
अब उसकी भी नहीं आस है,
ढूंढती नजरें पर सब विरान है।
फूलों की खुशबू,
और चांदनी का साथ है
मोहब्बत हो गई अब इससे.
फिर भी दिल उदास है।