‘आईने में सूरत देखने के बजाए तोड़ने में जुटे नीतीश’

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-आलोक कुमार-   nitish kumar

एक अजीबोगरीब हताशा का माहौल है। बिहार के सत्ताधारी दल जनता दल (यूनाइटेड) में, लोकसभा चुनाव नजदीक हैं लेकिन संगठन से जुड़े समर्पित लोगों में कोई उत्साह नहीं दिखता। राज्यसभा चुनाव के लिए संगठन से जुड़े लोगों और कुछ रसूखदार नेताओं को नजरअंदाज कर जब से नीतीश जी ने अपनी ना समझ में आने वाली रणनीति का फरमान जारी किया है तभी से एक निराशा का माहौल कायम है। पार्टी से जुड़े वरिष्ठ लोगों का कहना है ‘भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन तोड़ने का फैसला नीतीश जी ने किसी के दबाब में आकर या किसी के कहने पर नहीं लिया था बल्कि वो खुद इसके लिए जिम्मेवार हैं लेकिन आज नीतीश जी इसका ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ रहे हैं।’

अभी थोड़ी देर पहले पार्टी के एक वरिष्ट नेता ने फोन पर बातचीच के क्रम में कहा कि “नीतीश जी के एकतरफा फैसलों से आज पार्टी हाशिए पर खड़ी दिख रही है एवं हौसला पस्त कार्यकर्ता और चुनावी रणनीतिकार लोकसभा चुनाव के पहले ही हथियार डाल चुके हैं।” वरिष्ठ नेता ने आगे कहा कि ने कहा “चुनावों में जब पार्टी को जीत हासिल होती है तो उसका सेहरा नीतीश जी खुद अपने सिर पर बांध लेते हैं और जब आगामी चुनावों में पराजय की नौबत आती दिख रही है तो जिम्मेदारी लेने के बजाय जवाबदेही दूसरों पर डाली जा रही है।” उन्होंने आगे कहा “जनाक्रोश पार्टी या किसी अन्य के खिलाफ नहीं है सिर्फ और सिर्फ नीतीश जी की नीतियों और उनके अहंकारी व् अदूरदर्शी फैसलों के खिलाफ है।”

बातचीत के क्रम में उन्होंने आगे कहा “नीतीश जी का ये इतिहास रहा है कि वो हमेशा सच्चाई का सामना करने से भागते रहे हैं और यही कारण है कि प्रदेश की जनता का आक्रोश हदें पार कर चुका है, जिसका खामियाजा जनता दल (यूनाइटेड) को आने वाले चुनावों में उठाना पड़ेगा। पार्टी मैदान में चुनाव लड़ने के बजाय एक अहंकारी और जिद्दी नेतृत्व के सामने विवश है, आईने में अपनी सूरत देखने के बजाए नीतीश आईना ही फोड़ने में जुट गए हैं।” उन्होंने आगे कहा “नीतीश जी को भी चाहिए कि वो अपने कार्यकर्ताओं एवं नेताओं के समर्पण को उनकी मजबूरी न समझें और उनके मनोबल को कम करने के बजाए उनकी अहमियत को समझें।” मैंने जब उनसे पुछा कि क्या नीतीश संगठन को मजबूत होते हुए नहीं देखना चाहते हैं ? तो मुझे जो जवाब सुनने को मिला उसने सच में मुझे कुछ क्षणों के लिए सोचने को मजबूर कर दिया, उन्होंने कहा “नीतीश कभी भी संगठन को मजबूत नहीं होने देना चाहते हैं क्योंकि नीतीश सदैव इस सोच से सशंकित रहते हैं कि अगर संगठन मजबूत होगा तो उससे उभर कर कोई कदावर नेता उनको ही चुनौती ना देने लगे।”

मैंने फिर सवाल किया “क्या संगठन से जुड़े लोग अपनी बात नीतीश जी तक पहुंचा पाते हैं ? नेता जी का जवाब था “जब भी कोई नेता या सक्रिय कार्यकर्ता अपनी बात नीतीश जी के समक्ष रखता है या रखने की कोशिश भी करता है तो नीतीश पहले तो उपेक्षापूर्ण ढंग से सुनते हैं फिर उसी की बातों से कुछ उसकी गलतियां ढूंढ़ कर उसे सार्वजनिक रूप से लज्जित तथा जलील करते हैं ताकि भविष्य में वो मुंह खोलने की जुर्रत ही ना करे।” उन्होंने आगे जोड़ा “नीतीश जी की हमेशा यही कोशिश होती है कि अच्छे, पढ़े-लिखे, प्रभावी व जागरूक कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने ही न दिया जाए, अन्यथा उनकी सक्रियता व लोकप्रियता नीतीश जी की कार्यशैली में बाधक बनेगी, अक्सर यह कहकर उन्हें संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है कि वो तो अत्यंत -महत्वाकांक्षी हैं।

मैंने फिर सवाल किया क्या नीतीश अपनी पार्टी के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के क्षेत्रों के विकास में दिलचस्पी लेते हैं ? नेताजी ने बिना देरी किए तुरंत जवाब दिया “जब भी कोई नेता ऐसी बातों का जिक्र भी नीतीश जी के सामने करता है तो वो सन्दर्भ से हटकर या तो पूरे प्रदेश के परिपेक्ष्य में बात करने लगते हैं या अपनी व्यस्तता का बहाना बना कर टाल देते हैं।” मैंने फिर सवाल किया क्या आप ये कहना चाह रहे हैं कि नीतीश जी को पार्टी की तनिक भी चिंता नहीं है ? नेताजी ने जवाब दिया “नीतीश ने ये भ्रम पाल रखा है कि वो पार्टी से ऊपर हैं, पार्टी उनसे है वो पार्टी से नहीं। “मैंने नेता जी को बीच में रोकते हुए फिर पूछा क्या आप ये कहना चाहते हैं कि नीतीश जी जैसे लम्बे अनुभव वाले राजनेता की राजनैतिक सोच संकुचित है ? इस सवाल का जवाब नेता जी ने बड़े ही दार्शनिक अंदाज में दिया ” जब कुछ बड़े-बूढ़े लोग भी अपनी ज्ञान, गरिमा, शिक्षा, उम्र, अनुभव आदि की सारी मर्यादा भूलकर किसी को दंडवत, प्रणाम करने या पूजने लगते हैं तो स्वाभाविक है कि आदमी स्वयं को सर्वे-सर्वा और श्रेष्ठ समझने लगता है और उसे अपनी सोच के आगे दूसरों की सलाह और सोच तुच्छ दिखाई देने लगती है।”

बातचीत काफी लम्बी हो चली थी और मैंने चुनावी माहौल से जुड़े एक अहम सवाल के साथ इसे विराम देने की सोची और अपना अंतिम सवाल दाग दिया क्या आपकी पार्टी में टूट की कोई सम्भावना है ? नेताजी ने एक पल की चुप्पी साधी और बड़े ही गम्भीर छायावादी लहजे में जवाब दिया “उचित समय आने दीजिए , पार्टी तो ऐसे बिखरेगी की फिर कभी नहीं संवरेगी, सब के सब बस ऐसे समय में इस डूबती हुई नैया से छलांग लगाएंगे जब नैया बीच मझधार में होगी।” मैं अपने आप को रोक नहीं सका और एक सवाल फिर से पूछ डाला किसके ( किस पार्टी के ) साथ जाएंगे आप लोग ? नेताजी अब तक अपनी ‘लय’ में आ चुके थे शायद ! कहा “राजनीति में दुश्मन का सबसे ताकतवर दुश्मन ही सबसे अच्छा दोस्त बन सकता है, धैर्य रखिए सब पता चल जाएगा।’

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