ये कीचड़ के कमल…

-तारकेश कुमार ओझा-
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गांव-देहात की शादियों का अनुभव रखने वाले भलीभांति जानते हैं, अमूमन हर बारात में कुछ पंडितजी टाइप बराती शामिल होते हैं। जो वधू पक्ष के दरवाजे पहुंचते ही उद्घोषणा करवा देते हैं कि वे किसी का छुआ नहीं खाते। अलबत्ता मेजबान के सामने वे यह विकल्प जरूर रखते हैं कि मिल जाए तो वे फल-दूध व मिठाई का फलाहार जरूर कर सकते हैं। एेसे लोग कीचड़ के कमल की तरह होते हैं। कीचड़ में कमल वाली कहावत अब काफी पुरानी और अप्रासंगिक या यूं कहें कि आउट डेटेड हो चुकी है। इसकी जगह अब कीचड़ के कमल की बात होनी चाहिए। कीचड़ में कमल की तरह कीचड़ के कमलों की भी खासियत यही है कि ये रहते तो कीचड़ के इर्द-गिर्द ही है, लेकिन उससे काफी ऊपर ये बिल्कुल खिले-खिले से रहते हैं कि हैं कीचड़ में लेकिन उससे सैकड़ों हाथ दूर भी। अब इस मामले की हो लीजिए। बारात में शामिल पंडितजी टाइप बारातियों ने अपेक्षा से कुछ ज्यादा ही तर माल भी उदरस्थ कर लिया, और देखने वालों के सामने भौंकाल भी टाइट कर ली, कि वे खाने-पीने के मामले में काफी परहेजी हैं। जल्द किसी का छुआ नहीं खाते। एेसे कीचड़ के कमल आपको समाज के हर क्षेत्र में मिल जाएंगे। लेकिन राजनीति में इनकी बहुतायत है। नौकरी सरकारी हो या प्राइवेट, एेसे कीचड़ के कई कमल आपने देखे होंगे जो नौकरी में रहते हुए भी उसके प्रति वैराग्य भाव मन में रखते हैं। बात-बात में इस्तीफे की धमकी देते हुए कहते रहते हैं कि नौकरी तो मैं शौक से करता हूं। वर्ना मेरा इस्तीफा तो हमेशा मेरी जेब में पड़ा रहता है।

राजनीति के क्षेत्र में एेसे तत्वों की अलग धाक है। एक थे विश्व नाथ प्रताप सिंह। जो थे तो राजा, लेकिन बोफोर्स और स्विस बैंक एकाउंट जैसे अपने कारनामों से देखते ही देखते देश के फकीर बन गए। फिर बन गए देश के प्रधानमंत्री। लेकिन कीचड़ के कमल की तरह बोफोर्स और स्विस बैंक की जगह पद संभालने के बाद उनकी बतकही की चर्चा में अक्सर यह मसला रहता था कि उन्हें टेलीविजन पर ज्यादा क्यों दिखाया जा रहा है। सरकारी संस्थान है तो क्या, उन्हें इस पर इतना न दिखाया जाए, सप्ताह में दो-एक बार बहुत है। फिर अपने उप प्रधानमंत्री देवीलाल से रार व मंडल की राग। लिहाजा सरकार औंधे मुंह गिर गई। एक हैं अरविंद केजरीवाल। अक्सर खुद को बहुत छोटा आदमी बताने वाले ये जनाब एक दिन बड़ा आदमी यानी देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन छोटा आदमी वाले अपने तकियाकलाम से ऊबर नहीं सके। और एक दिन इस्तीफा देकर चलते बने। एक और हैं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव। प्रतिष्टा के अनुरूप ही हैं पक्के समाजवादी। बेटे से लेकर भाईयों यहां तक कि भतीजों तक को समाज के काम में लगा रखा है। कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश में हुए इलेक्शन में जनता ने इनकी झोली वोटों से भर दी, तो आम भारतीय पिता की तरह इन्होंने सत्ता की बागडोर अपने बेटे अखिलेश को सौंप दी। लेकिन कमाल देखिए कि अपने बेटे की सरकार के सबसे बड़े अालोचक भी खुद ही हैं। कभी बेटे को डपटते हुए भरी सभा में कहते हैं कि सरकार दलाल चला रहे हैं। सुधर जाओ वर्ना… वगैरह-वगैरह…। लोकसभा चुनाव 2014 में इनके अधिकांश उम्मीदवार जमीन पर औंधे मुंह गिरे, तो एेलान कर दिया मंत्री कमाई करेंगे तो यही होगा। देखिए है ना कमाल। इसी को कहते हैं कीचड़ में कमल की तरह खिले रहना। यानी सरकार की बुराई देख-समझ रहे हैं. लेकिन सरकार फिर भी चल रही है। उपवास की औपचारिकता भी निभ गई, और मौका देख कर फलाहार भी कर लिया।

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