प्रेम नहीं मजबूर

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-श्यामल सुमन-   poem
सुमन प्रेम की राह में, कांटे बिछे अनेक।
दर्द हजारों का मिले, चुभ जाता जब एक।।

त्याग प्रेम का मूल है, मगर सहित सम्मान।
करता हंसकर के सुमन, अपना जीवन-दान।।

प्रेम गली में क्यों सुमन, खड़ी मिले दीवार।
सदियों से क्यों चल रहा, दुनिया का व्यवहार।।

भीतर चाहत प्रेम की, बाहर करे विरोध।
अगणित ऐसे लोग हैं, हुआ सुमन यह बोध।।

जाति-धरम या उम्र से, प्रेम नहीं मजबूर।
भाव जहां मिलते सुमन, प्रेम वहीं मंजूर।।

धन कोई घटता सुमन, अगर बांटते लोग।
ज्ञान-प्रेम का धन बढ़े, लुटा, लगा ले रोग।।

प्रेम जहां सचमुच मिले, सुमन भला क्यों देर।
ये दुनिया की रीति है, कब कर दे अन्धेर।।

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