चंद्र ग्रहण‌

lunar-eclipseप्रभुदयाल श्रीवास्तव
बहुत दिनों से सोच रहा हूं,
मन में कब से लगी लगन है|
आज बताओ हमें गुरुजी,
कैसे होता सूर्य ग्रहण है|

बोले गुरुवर‍,प्यारे चेले,
तुम्हें पड़ेगा पता लगाना|
तुम्हें ढूढ़ना है सूरज के,
सभी ग्रहों का ठौर ठिकाना|

ऊपर देखो नील गगन मे,
हैं सारे ग्रह दौड़ लगाते|
बिना रुके सूरज के चक्कर‌
अविरल निश दिन सदा लगाते|

इसी नियम से बंधी धरा है,
सूरज के चक्कर करती है|
अपने उपग्रह चंद्रदेव को,
साथ लिये घूमा करती है|

चंद्रदेव भी धरती माँ के,
लगातार घेरे करते हैं|
धरती अपने पथ चलती है,
वे भी साथ‌ चला करते हैं|

कभी कभी चंदा सूरज के ,
बीच कहीं धरती फँस जाती|
धरती की छाया के कारण,
धूप चाँद तक पहुंच न पाती|

इसी अवस्था में चंदा पर,
अंधकार सा छा जाता है|
समझो बेटे इसे ठीक से,
चंद्र ग्रहण यह कहलाता है|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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