मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को व्यापमं मामले पर खुला खत।

vyapamमाननीय मुख्यमंत्री जी,

मप्र शासन।
श्री शिवराज सिंह चौहान,
जनसंघ के संस्थापक स्व. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जब संघ के तत्कालीन सरसंघचालक गुरूजी से मिले तो उन्होंने संघ को सक्रिय राजनीति में आने का विचार प्रकट किया। गुरूजी जानते थे कि यदि संघ सक्रिय राजनीति में आ गया तो अपने मूल उद्देश्य, कर्तव्यपरायणता एवं आदर्शों से विमुख हो जाएगा। लिहाजा उन्होंने डॉ. मुखर्जी की बात मुस्कुराकर टाल दी। डॉ. मुखर्जी भी कहाँ मानने वाले थे? उन्होंने गुरूजी पर दबाव बनाए रखा और अंततः वे गुरूजी को इस बात पर राजी कर ही गए कि जिन स्वयंसेवकों की रुचि राजनीति में है, वे डॉ. मुखर्जी के साथ राजनीतिक आंदोलन में जुट जाएँ। इस तरह ‘जनसंघ’ की स्थापना हुई। आप भली-भांति जानते होंगे कि तत्कालीन जनसंघ के आदर्श क्या थे? जनसंघ के नेता किन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध थे? संघ के वरिष्ठ कर्मयोगी परम श्रद्धेय नानाजी देशमुख का त्याग हिन्दुस्थान कभी नहीं भुला सकता जिन्होंने राजनीति के बजाए समाज सेवा को प्रमुखता दी। आप भाजपा के कार्यकर्ता (जैसा कि आप स्वयं मानते हैं खुद को) होने के नाते पं. लाल बहादुर शास्त्री जी की ईमानदारी को जानते होंगे। यदा-कदा आपने अपने राजनीतिक जीवन में उनकी ईमानदारी और त्याग को गर्व से बताया होगा? उन्होंने रेलमंत्री रहते हुए रेल दुर्घटना होने पर नैतिक आधार पर इस्तीफ़ा देकर नजीर पेश की थी। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के त्याग और शुचिता को भाजपा में शायद ही कोई भुला पाएगा? भाजपा के पितामह कहलाने वाले लालकृष्ण आडवाणी जी ने हवाला कांड में नाम आने पर सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि जब तक दोषमुक्त नहीं हो जाऊँगा, संसद की कार्रवाई में हिस्सा नहीं लूँगा। भाजपा में ऐसे कर्तव्यनिष्ठ नेताओं की लंबी फेहरिस्त है।
महोदय, मेरी उपरोक्त बातों से आप सहमत भी होंगे और समझ भी गए होंगे कि त्याग, ईमानदारी, शुचिता जैसे शब्दों पर मैं क्यों जोर दे रहा हूँ? 2009 से लेकर अब तक व्यापमं घोटाले पर प्रदेश और आपकी काफी छीछालेदर हो चुकी है। रिपोर्ट्स व्यापमं को आज़ाद हिन्दुस्थान का सबसे बड़ा घोटाला होने का संभावित संकेत इंगित कर रही हैं। अपुष्ट ख़बरों के अनुसार आपके निवास तक इसकी जड़ें बताई जा रही हैं। आपके कई करीबी व्यापमं घोटाले के चलते या तो जेल की हवा खा रहे है अथवा राजनीतिक संरक्षण की बाट जोह रहे हैं। आपके निजी सचिव से लेकर माननीय राज्यपाल के दिवंगत पुत्र का नाम भी इस घोटाले की जद में आ चुका है। आपकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर मुझे या प्रदेश की जनता को शायद ही शक होगा किन्तु ऐसी ‘मौन’ निजी ईमानदारी आखिर किस काम की जो खुद के पाक साफ़ दामन को भी काला कर दे? आपने अपने अब तक के शासनकाल में प्रदेश के सर्वांगीण विकास हेतु बड़े जतन किए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर ‘हृदय-प्रदेश’ का नाम ऊंचा किया है मगर अब हद हो गई है महोदय।
माननीय, एक पत्रकार होने के नाते मुझसे जब प्रदेश के घोटालों के बारे में पूछा जाता है तो मेरा सर शर्म से झुक जाता है। जब आपके असंवेदनशील मंत्रीगण किसी मानवीय मुद्दे पर बेशर्मी दिखाते हैं तो भी मैं शर्मिंदा होता हूँ। आप सभी स्वयं को संघ का स्वयंसेवक कहाते नहीं थकते। क्या यही संघ ने आपको सिखाया है? आप और आपका मंत्रिमंडल इतना बे-गैरत कैसे हो सकता है? माना, व्यापमं मामले से जुड़ा सच काफी खौफनाक है और आपके कई साथी-सखा इसकी जांच में खुद को घिरा पाते होंगे पर इसका सच आखिर कब सामने आएगा? व्यापमं मामले से जुड़े लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं? आप कहते हैं कि सभी मौतों को व्यापमं से जोड़ना सही नहीं है; ठीक है। सभी मौतों को व्यापमं से जोड़कर लाशों पर राजनीति करना अपराध है। किन्तु जिनकी भी मृत्यु हुई है, उसका व्यापमं घोटाले से संबंध होना; कहीं न कहीं मन में संदेह प्रकट करता है। आप खुद को पाक साफ़ बताएं; कोई बात नहीं मगर दूसरों (अपराधियों) का संरक्षण करना बंद करें। आपको याद है उत्तर प्रदेश का एनआरएचएम घोटाला? इस घोटाले ने छह बड़े अधिकारियों की इहलीला समाप्त कर दी थी। उसके बाद क्या हुआ? बहुजन समाज पार्टी का प्रदेश से सूपड़ा साफ़ हो गया। क्या आप इसी तरह की स्थितियां मध्य प्रदेश में भी पैदा करना चाहते हैं? मायावती भी जांच का हवाला देती रहीं और आप भी जांच का हवाला दे रहे हैं; फिर आपका ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ में होना किस काम का? मुझे अब आप पर, आपकी असह्यता पर तरस आने लगा है। यदि आप व्यापमं मामले की निष्पक्ष जांच चाहते हैं तो थोड़ा कठोर बनें, अपने आस-पास मौजूद चाटुकारों की फ़ौज़ को दूर करें, सलाहकारों के बजाए अंतरात्मा की आवाज पर विश्वास करें। और फिर भी यदि यह सब करने में आपको राजनीतिक दबाव या सामाजिक बुराई का अंदेशा है तो कृपया नैतिक आधार पर ही सही; अपना पद त्याग दें। इससे आपकी न केवल इज़्ज़त बढ़ेगी वरन भ्रष्ट समूह आपपर हावी होने से भी वंचित हो जाएगा। फिर यदि आप निष्कलंक होकर सामने आते हैं तो यकीन मानिए; प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता आपका इस्तकबाल करने को बेकरार रहेगी वरना आपका नाम भी उसी सूची में शामिल होगा जिसे नेताओं के  इतिहास में अक्सर ‘चोर’ कहकर संबोधित किया जाता है। बातें कड़वी हैं किन्तु सत्यता के नजदीक हैं। एक बार पुनः चिंतन-मनन करें और फिर निर्णय लें। आपकी राजनीति तो चलती रहेगी मगर प्रदेश की जनता बहुसंख्यक समुदाय के समक्ष यूँही शर्मिंदा होती रहेगी। मुझे उम्मीद है, आप अब कुछ तो करेंगे?

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

2 COMMENTS

  1. श्री सिद्धार्थ शंकर गौतम जी का लेख अथवा शिवराज सिंह चौहान जी के नाम खुला पत्र उन आदर्श स्थितियों का उल्लेख करता है जो आदर्शवादी राजनीती के सञ्चालन का आधार थीं.लेकिन आज तो रस्सी को सांप साबित करने के लिए होड़ लगी है!जिस दल का और उसके नेताओं का नैतिकता की राजनीती से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं रहा वो आदर्शों और नैतिकता की दुहाई दे रहे हैं.कांग्रेस को सत्ता की बीमारी १९३७ में प्रांतो की सरकारों के गठन के बाद से ही लगने लगी थी.और पिछले सतत्तर वर्षों में सत्ता का निजी स्वार्थों के लिए किस प्रकार इस्तेमाल किया जाये इसके लिए उन्होंने सिद्धता प्राप्त कर ली है.लेकिन भाजपा के लोगों को कांग्रेस की नक़ल करने की आवश्यकता नहीं है.लोग कांग्रेस को काजल की कोठरी मानते हैं अतः उनके बड़े से बड़े गुनाह पर भी उतनी प्रतिक्रिया नहीं होती है जितनी तीखी प्रतिक्रिया भाजपा के नेताओं के छोटे से विचलन अथवा प्रक्रियात्मक त्रुटि से भी हो जाती है.अगर सवाल केवल नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करने का हो तो बात केवल शिवराज सिंह चौहान पर ही नहीं थमती है.फिर तो वसुंधरा राजे,सुषमा स्वराज,पंकजा मुण्डे आदि सब ही ‘दोषी’ maan लिए जायेंगे और सभी को दोषी न होते हुए भी जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी.लेकिन क्या यह व्यवहारिक है?भाजपा विरोधी यही तो चाहते है कि वितंडावाद की ऐसी आंधी खडी करो कि भाजपा की सरकारें न राज्यों में और न केंद्र में कुछ भी नहीं कर सकें.और ऐसे ही समय पूरा हो जाये तथा उनकी ‘नाकामयाबी’ का शोर मचाकर पुनः बेईमान कांग्रेस सत्ता में आ जाये.बिकाऊ मीडिया भी इस कार्य में भाजपा के विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं. अतः शिवराज जी को विचलित हुए बिना जल्दी से जल्दी व्यापम घोटाले की जांच को उसके तार्किक परिणाम तक पहुँचाने का प्रयास करना चाहिए.और दोषियों को सजा दिलाने का काम करना चाहिए.पलायन किसी समस्या का हल नहीं है!

  2. लेखक सिद्धार्थ शंकर गौतम—-
    आज नवभारत टाइम्स में छपा हुआ निम्न समाचार अंश कुछ अलग दृष्टिकोण दर्शाता है।
    उद्धरण: न. भा. टा. से====>
    ==>’न तो नम्रता की मौत का व्यापम से कोई लिंक है और 25 अन्य की मौत का।’
    ==> राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन अरुण शर्मा व्यापम की जांच में शामिल नहीं थे। उन्होंने कहा कि व्यापम की जांच एसटीएफ कर रही है और डीएन का जांच से कोई लेना-देना नहीं था।”

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