मध्य प्रदेश द्वारा की गई एक प्रशंसनीय सांस्कृतिक पहल

लालकृष्‍ण आडवाणी

एक अकेले कलाकार द्वारा दर्शर्कों को मंत्रमुग्ध कर देने वाले एक घंटे के एकल नाटक को सर्वप्रथम देखने का अवसर मुझे सत्तर वर्ष पूर्व तब मिला जब मैं कराची के सैंट पैट्रिक हाई स्कूल का विद्यार्थी था। जहां तक मुझे स्मरण आता है तो वह कलाकार आयरलैण्ड के प्रसिध्द अभिनेता थे जिन्होंने शेक्सपीयर के मर्चेंट ऑफ वेनिस के शाइलॉक की मुख्य भूमिका प्रभावशाली ढंग से निभाई। उस प्रस्तुति में अन्य छोटी भूमिकाएं भी इसी अभिनेता द्वारा निभाई गई थीं।

उसके पश्चात् पिछले कुछ वर्षों से मुझे मुंबई के उत्कृष्ट कलाकार शेखर सेन द्वारा अभिनीत कबीर, तुलसी और विवेकानन्द के जीवन पर आधारित मंत्रमुग्ध कर देने वाले नाटकों – और वह भी अकेले कलाकार द्वारा – को देखने का अवसर मिला। इनमें से प्रत्येक की अवधि दो घंटे से अधिक है। शेखर सेन द्वारा इनकी मर्मस्पर्शी पटकथा लिखने के अलावा कबीर और तुलसी नाटकों की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि शेखर सेन ने इसके मधुर गीतों को गाया भी है। मैं यहां बताना चाहूंगा कि शेखर के माता-पिता शास्त्रीय संगीत के प्रसिध्द गायक रहे हैं।

पिछले सप्ताह मुझे मध्य प्रदेश के अपने नाटक विद्यालय-नाटय विद्यालय का उद्धाटन करने के लिए भोपाल आमंत्रित किया गया था।

इस अवसर पर भी मुझे ‘मंच पर‘ (ऑन स्टेज) उल्लिखित एक नाम अनुपम खेर की प्रस्तुति देखने को मिली, हालांकि नेपथ्य की सूची में दर्जन नाम थे।

मुझे सर्वप्रथम देखने को मिला एकल नाटक, साहित्य पर आधारित था, इसी तरह का दूसरा प्रदर्शन विख्यात ऐतिहासिक हस्तियों पर और अनुपम खेर का आत्मकथात्मक था।

‘कुछ भी हो सकता है‘ शीर्षक वाला नाटक दो घंटों का था जिसमें अनुपम खेर के उस संघर्ष को दर्शाया गया है जिसके बाद वह उन ऊंचाइयों पर पहुंचे जो आज वह बालीवुड में हैं। प्रतिभाशाली निर्देशक फिरोज खान, जिन्होंने ‘महात्मा बनाम गांधी‘ नाटक तथा फिल्म ‘माई फादर गांधी‘ भी निर्देशित की है, का यह प्रदर्शन अनुपम की हाजिरजवाबी और विनोद की निजी शैली के चलते यह शो अत्यन्त ही रोचक और मनोरंजक बन गया है।

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सन् 1977 में जब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने अपने मंत्रिमण्डल में मुझे शामिल किया तो मुझसे पूछा कि विभाग के मामले में क्या मेरी कोई प्राथमिकता है। बिना हिचक के मेरा जवाब था: एक पत्रकार होने के नाते, आपातकाल के दौरान प्रेस और पत्रकारों पर हुए हमले से मैं बुरी आहत हूं और मैं प्रेस को स्वतंत्र कराने और मीडिया पर थोपे गए सभी बंधनों को तोड़ने के लिए जो कुछ भी कर सकता हूं, करना चाहूंगा।

मैं मोरारजी भाई के प्रति कृतज्ञ हूं कि उन्होंने तुरंत ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मुझे सौंप दिया। यह विभाग न केवल मीडिया अपितु सिनेमा से भी जुड़ा है।

मैं सदैव इस मत का रहा हूं कि हिन्दी को राजकीय भाषा बनाने में संविधान का योगदान रहा है लेकिन बॉलीवुड ने हिन्दी को ‘सार्वजनिक भाषा‘ बनाया है जिसमें अन्य भाषा और हजारों बोलियां भी अच्छे ढंग से विकसित हुई हैं।

व्यक्तिगत रूप से अपनी बात कहूं तो मैं अपने जीवन के प्रारम्भिक बीस वर्ष सिंध के कराची में रहा हूं। सन् 1947 तक मैं केवल सिंधी और अंग्रेजी – ये दो भाषाएं ही पढ़ और लिख सकता था। देवनागरी से मैं पूर्णतया अनजान था। रामायण और महाभारत, ये दोनों मैंने पहले सिंधी और बाद में अंग्रेजी में पढ़ीं। यदि मैं हिन्दी समझ सका और थोड़ा बहुत बोल सका तो वह फिल्मों के कारण।

हिन्दी पढ़ना और लिखना मैंने सन् 1947 के बाद ही शुरू किया। अत: जब मैं 1977 में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बना तो मैं इस तथ्य के प्रति सचेत था कि हिन्दी फिल्मों के निर्माण का केन्द्र मुंबई, कोलकाता और चेन्नई हैं। किसी भी हिन्दी प्रदेश में हिन्दी फिल्म उद्योग नहीं है।

सबसे पहले मैंने एक छोटा फिल्म सिटी तिरूवनंतपुरम में देखी, बाद में मुंबई और तत्पश्चात् हैदराबाद में। अत: भोपाल में गत् शनिवार मुझे यह टिप्पणी करने का मौका मिला: क्यों नहीं भोपाल में एक फिल्म सिटी बन सकता?

संगीत नाटक अकादमी द्वारा नई दिल्ली में गठित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ने बॉलीबुड को अनेक प्रतिभाएं देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। और आज भारतीय सिनेमा ने विश्व सिनेमा में उच्च स्थान पाया है। मैं निश्चिंत हूं कि शिवराज सिंह चौहान और उनके संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा द्वारा की गई यह पहल न केवल थियेटर अपितु सिनेमा और टेलीविज़न क्षेत्र को भी और समृध्द बनाएगी।

विजया मेहता के नेतृत्व में प्रह्लाद कक्कड़, महेश दत्तानी, रामगोपाल बजाज, अरविन्द त्रिवेदी और पीयूष मिश्रा जैसे अनेक जाने-माने थियेटर कलाकार इस उद्धाटन कार्यक्रम में उपस्थित थे।

टेलपीस (पश्च लेख)

‘माऊस ट्रैप‘ – अगाथा क्रिस्टी द्वारा लिखित एक हत्या रहस्य है। यह नाटक 1952 में लंदन के वेस्ट एंड में शुरू हुआ था। 1972 में एक सांसद की हैसियत से जब मैं पहली बार लंदन गया तो इस नाटक का मंचन चल रहा था। मैंने अगाथा क्रिस्टी की पुस्तक पढ़ी थी, तब मैंने यह नाटक भी देखा।

थियेटरप्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण सूचना यह है कि लगभग 60 वर्ष पहले जिस नाटक के मंचन का प्रीमियर हुआ था, वह अभी भी लंदन में चल रहा है। अब यह सेंट मार्टिन थियेटर में होता है और इन 58 वर्षों में इसके 24,000 से ज्यादा शो हो चुके हैं। अत: ब्रिटिश थियेटर के इतिहास में इतने लम्बे समय तक चलने वाला यह नाटक है।

2 COMMENTS

  1. सराहनीय प्रयास. ‘शिव’ के राज में कला का यह सत्यम, शिवम्, सुन्दरम फले-फूले.

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