महाशिवरात्रि विशेष

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राजेश कश्यप

शिवमयी है हरियाणा का जन-जन और कण-कण

‘शिव शंकर’, ‘महादेव’, ‘महाकाल’, ‘नीलकण्ठ’, ‘विश्वनाथ’, ‘आदिदेव’,

‘उमापति’, ‘सृष्टि-संहारक’ आदि अनेक नामों से पुकारे जाने वाले ‘देवों के

देव’ भगवान शिव सबका उद्धार करते हैं। उनकी महिमा अपार है। भगवान शिव के

प्रति असंख्य भक्तों की अगाध श्रद्धा, विश्वास और आस्था बस देखते ही बनती

है। देश व दुनिया में भगवान शिव के असंख्य अनन्य भक्त हैं। लेकिन, इस

सन्दर्भ में हरियाणा प्रदेश की अपनी विशिष्ट प्रतिष्ठा और पहचान है। यदि

हरियाणा को ‘शिवमयी हरियाणा’ कहकर पुकारा जाए तो संभवतः कदापि गलत नहीं

होगा। क्योंकि हरियाणा प्रदेश का कण-कण में भगवान शिव की स्तुति करता है।

इतिहासकारों के अनुसार इस प्रदेश का नामकरण ही भगवान शिव के उपनाम ‘हर’

से हुआ है। ‘हर’ का सामान्यतः अर्थ ‘भगवान’ होता है। यहां प्रदेश के

नामकरण का ‘हर’ भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है।

आचार्य भगवान देव जी ने शिव संबंधी आलयों, मेलों, मन्दिरों आदि को आधार

मानकर निष्कर्ष निकाला कि यह सत्य है कि इस प्रान्त के निवासियों का

शिवजी महाराज के प्रति अतिशय प्रेम पाया जाता है, जो अनेक रूपों में

देखने को आता है और पुरातात्विक खुदाईयों से प्राप्त सामग्री से यह सिद्ध

होता है कि शिवजी के प्रसिद्ध नाम ‘हर’ के कारण ही इस प्रदेश का नाम

‘हरियाणा’ पड़ा। इस सन्दर्भ में श्री बलदेव शास्त्री जी के निष्कर्ष के

अनुसार, प्राचीन समय में इस प्रदेश पर ‘हर’ नामक राजा का राज्य था। इसी

‘हर’ को संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थों में ‘शिव’, ‘महादेव’ आदि अनेक नामों

से संबोधित किया गया है।

पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार आदिकाल से ही हरियाणा पर शिव

परिवार का वरदहस्त रहा है। इतिहासकारों के अनुसार यह प्रदेश शिव व शिव के

पुत्रों का स्थान रहा है। इसीलिए इस प्रदेश का नाम ‘हरियाणा’ पड़ा है।

महाभारत के रचियता महर्षि वेदव्यास जब पाण्डव पुत्र नकुल के विजयी अभियान

का वर्णन करते हैं तो वे हरियाणा के रोहतक जिले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का

बखान करना बिल्कुल नहीं भूलते हैं। महर्षि वेदव्यास के अनुसार,

‘‘ततो बहुधानं रम्यं गवाढ़ंय धन्धावत्।

कार्तिकेय दपितं रोहितक्रमया द्रवत्।।’’

पौराणिक सन्दर्भों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव के बड़े सुपुत्र

महासेनापति स्कन्द स्वामी कार्तिकेय की सैन्य छावनी व राजभवन रोहितकम्

अर्थात् रोहतक (हरियाणा) में था। यह नगर कार्तिकेय का न केवल निवास स्थान

था, अपितु, यह उनका सबसे प्रिय नगर भी था। शायद यही मूल कारण है कि यहां

के प्राचीन मन्दिरों, शिवालयों, धार्मिक स्थानों और हवेलियों में शिव

पुत्र कार्तिकेय व उसके प्रिय वाहन ‘मोर’ के चित्र बहुतायत में अंकित हुए

मिलते हैं।

हरियाणा की धरती बड़ी पावन मानी गई है। एक प्राचीन शिलालेख में बड़े सुनहरी

अक्षरों में अंकित है:

‘‘देशोअस्ति हरिणाण्यः पृथ्वीयं स्वर्ग सन्निभः’’

(अर्थात् इस धरती पर स्थित हरियाणा नामक प्रदेश स्वर्ग के समान है।)

इस धरती की पवित्रता की तुलना परम-पवित्र गंगा के साथ की जाती है। एक बानगी देखिए:

‘‘गंगा सी पावन सुखकारी।

हरियाणा की धरती न्यारी।।’’

हरियाणा में परमपिता परमात्मा के प्रति अटूट आस्था विद्यमान है। यहां पर

हर गाँव, नगर व शहर में मन्दिर, समाधि और तीर्थ मौजूद मिलेंगे। इस तथ्य

का खुलासा इन लोकपंक्तियों में बखूबी झलकता है:

‘‘प्रभु चरण पखारे जहां जहां।

हमारे तीर्थ वहां वहां।।’’

हरियाणा प्रदेश में भगवान शिव ही ऐसे इष्टदेव हैं, जिनके मन्दिर व शिवालय

अन्य देवी-देवताओं से कहीं अधिक हैं। प्रदेश के हर गाँव, नगर व शहर में

ऊँची चोटियों वाले शिवालय जरूर मिलते हैं। इसके पीछे यहां के लोगों की

मूल धारणा है कि जहां पर भगवान शिव-पार्वती की कृपा हो, उसका मन्दिर/आलय

हो और भजन-कीतर्न हो, वहां पर समृद्धि का हर हालत में वास होता है और

निर्धनता, दुःख व कष्टों का नाश होता है। इस लोकगीत में यह धारणा बखूबी

स्पष्ट हो रही है:

‘‘जित महादेव पार्वती का जोड़ा।

कदै ना आवै तोड़ा।।’’

यदि यह कहा जाए कि हरियाणा प्रदेश के जनमानस में भगवान शिव आत्मिक रूप से

रचे बसे हैं तो कदापि गलत नहीं होगा। यहां के लोगों की जीवन शैली में

भगवान शिव के प्रति आस्था के कई अनूठे व उल्लेखनीय प्रमाण मिलेंगे। यहां

जन्म से लेकर मृत्यु तक शिव को स्मरण किया जाता है। विवाह व मांगलिक

उत्सवों पर शिव-शंकर से जुड़े गीत व भजन गाए जाते हैं।

विवाह जैसे मांगलिक उत्सव पर भात गाते हुए ग्रामीण औरतें अपने सभी इष्ट

देवी-देवताओं का गीतों के माध्यम से स्मरण करती हैं और उनसे सुख, शांति

एवं समृद्धि की कामना करती हैं। इस अवसर पर गाया जाने वाले गीत में भगवान

शिव को इस प्रकार स्मरण व नमन किया जाता है:

‘‘पाँच पतासे पानां का बिड़ला,

ले शिवजी पै जाईयो जी।

जिस डाली म्हारा शिवजी बैठ्या,

वा डाह्ली झुक जाईयो जी।।’’

हरियाणा प्रदेश का जन-जन नित्य भगवान शिव का पावन स्मरण करता है। बड़े

सवेरे शिवालयों से शंख, घण्टे, नाद और भजनों की सुर लहरियां कानों में रस

घोलना शुरू कर देती हैं। ग्रामीण महिलाएं शिवालयों में भगवान शिव की

स्तुति में अक्सर इस भजन को गुनगुनाती हैं:

‘‘शिव शंकर तेरी आरती,

मैं बार-बार गुण गावंती।

ताता पाणी तेल उबटणा,

‘हर’ मैं मसल नहावंती।।’’

ग्रामीण बालाएं कार्तिक स्नान के दौरान भगवान राम, श्रीकृष्ण के साथ-साथ

अपने इष्टदेव शिव के भजन भी बड़ी श्रद्धा के साथ गाती हैं। एक बानगी

देखिए:

‘‘छोटी सी लाडो पार्वती, शिव शंकर की पूजा करती है।

वो तो रोज फूलवारी जाती है और फूल तोड़कर लाती है।।

वो तो नदी से पानी लाती है, शिवलिंग को स्नान कराती है।

वो तो बाग से फल लाती है, शिव शंकर को चढ़ाती है।।’’

इस प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में जोगी सारंगी पर भजन सुनाने से पहले अपने

इष्टदेव भगवान शिव-शम्भू का स्मरण कुछ इस प्रकार से करते आए हैं:

‘‘सुमरू साहिब अपणा।

सिम्भू सत भाणा।।’’

जब यहां के लोककवि अनेक कार्यक्रमों, उत्सवों और पर्वों के प्रारम्भ में

प्रख्यात ‘बम लहरी’ शंख, खड़ताल व इकतारे की मनोहारी ताल पर गाते हैं तो

पूरा वातावरण शिवमयी हो जाता है।

हरियाणा प्रदेश के लोककवियों ने अपनी रचनाओं में भगवान शिव से जुड़े

पौराणिक प्रसंग समाहित किए हैं। सूर्यकवि पंडित लखमीचन्द ने अपने साँग

‘शाही लकड़हारा’ में शिव-पार्वती प्रसंग को अनुकरणीय रूप देते हुए इस

अन्दाज में पिरोया है:

‘‘जो पतिव्रता धर्म देख ल्यूंगा तेरा।

दक्ष भूप की सुता सती, उस हर हर में ध्यान धरे गई।

पतिव्रत बन धर्म निभाऊं, सच्चा भजन करे गई।

शिव-शिव रटे गई और ले-ले जन्म मरे गई।

जितनी बार जन्म लिया हटकै, शिव-शंकर को बरे गई।

सती पतिव्रता बनती हो तै, ल्या देख ल्यूं ब्रह्म तेरा।।’’

लोककवि भगवान शिव को भव सागर से पार करने वाले और हर कष्ट और संकट को

हरने वाले इष्ट देव के रूप में सादर स्मरण करते हैं। पंडित मांगेराम ने

अपनी प्रसिद्ध रचना ‘खाण्डेराव परि’ में शिव का जिक्र कुछ इस प्रकार किया

है:

‘‘के शिवजी कैलाश छोड़ कै पार उतारण आगे।’’

पुराणों में भगवान शिव के अनेक नामों का उल्लेख है। हरियाणा के लोकवियों

ने अपने स्तर पर शिव के विभिन्न रूपों की गणना इस प्रकार से की है:

‘‘पार्वती इक्कीस देखी, शंकर भोले अड़तीस।’’

हरियाणा के लोग गौ माता के प्रति भी अगाध श्रद्धा रखते हैं और नित्य उसकी

पूजा करते हैं। क्योंकि पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार गाय में तैंतीस करोड़

देवी-देवता निवास करते हैं। हरियाणा के प्रख्यात गन्धर्व कवि ने इस

पौराणिक तथ्य के आधार पर गाय के विभिन्न अंगों में बसने वाले

देवी-देवताओं का उल्लेख करते हुए बताया है:

‘‘गणेश नाक मं, शिव शंकर मस्तक मं बास करै।’’

हरियाणा का जनमानस गौ के साथ-साथ भगवान शिव की जटाओं में विराजने वाली

गंगा के प्रति भी अटूट आस्था रखता है। यहां की लोक रचनाओं में गंगा की

स्तुति प्रचूर मात्रा में मिलती है। कवि शिरोमणी पंडित मांगेराम ने अपनी

एक प्रसिद्ध लोक रचना में गंगा जी की स्तुति में भगवान शिव का जिक्र कुछ

इस प्रकार से किया है:

‘‘गंगा जी तेरे खेत में पड़े हिंडोले चार।

कन्हैया झूलते रूकमण झुला रही।।

शिवजी के करमण्डल मं विष्णु जी का लाग्या पैर।

पवन पवित्र अमृत बणकै पर्वत ऊपर गई ठहर।।’’

‘हर’ के प्रति अपनी अगाध एवं अटूट आस्था के चलते यहां के लोगों के नाम भी

‘हर’ से युक्त मिलते हैं। उदाहरण के तौरपर, ‘हरनारायण’, ‘हरदेव’,

‘हरचन्द’, ‘हरिसिंह’, ‘हरद्वारी’, ‘हरदत्त’, ‘हरकेराम’, ‘हरदयाल’,

‘हरफूल’, ‘हरबंस लाल’ आदि नाम लिए जा सकते हैं। इतना ही नहीं, भगवान शिव

के नाम से युक्त भी काफी लोगों के नाम देखने का मिलते हैं। उदाहरणतः,

‘शिव कुमार’, ‘शिव प्रसाद’, ‘शंकर’, ‘शिवलाल’, ‘शिवनाथ’, ‘शंकर सिंह’,

‘शंकरदयाल’, ‘शिवकृष्ण’, ‘शिवराम’, ‘शिवदत्त’, ‘शंकरानंद आदि।’

हरियाणा के लोग प्रत्येक सोमवार को शिव व्रत के साथ-साथ प्रतिवर्ष

फाल्गुन व श्रावण मास में आने वाली महाशिवरात्रियों को व्रत, पूजा-पाठ,

भजन, जागरण आदि बड़ी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करते हैं। इसके साथ ही

भक्तजन हरिद्वार से शिव की कांवड़ लाकर शिववालयों में चढ़ाते हैं और

शिवलिंगों को गंगा के पानी से स्नान करवाते हैं। यहां के लोगों की जुबान

पर ‘नमः शिवाय’, ‘ओउम् नमः शिवाय’ और ‘हर हर महादेव’ जैसे शिव-मंत्र

जिव्हा पर रहते हैं। सेना में जवान भी ‘हर हर महादेव’ को बड़े जोश के साथ

जयघोष करते हैं और दुश्मनों के छक्के छुड़ा देते हैं। कुल मिलाकर हरियाणा

का जन-जन और कण-कण शिवमयी है। प्रदेश के नामकरण से लेकर यहां के जन-जीवन

तक शिव की भक्ति का समावेश है। भगवान शिव शंकर सबकी मनोकामना पूरी करे,

‘‘जय हो शिव शंकर भोलेनाथ!’’

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