महात्मा गाँधी अभी जीवित हैं

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-डॉ. सी.पी. राय

आज से ६२ वर्ष पूर्व महात्मा गाँधी की महज शारीरिक हत्या कर दी गयी, लेकिन बापू मरे नहीं। अपने विचारों और आदर्शों के साथ वो आज भी जिन्दा है। ६२ वर्ष बीत गए। इतनी लम्बी अवधि में एक पूरी पीढ़ी गुजर जाती है, राष्‍ट्र के जीवन में अनगिनत संघर्षों, संकल्पों और समीक्षाओं का दौर आता और जाता रहा। इतने उतार और चढाव के बावजूद अगर आज भी किसी का वजूद कायम है तों निश्चय ही उनमें कुछ तों चमत्कार होगा। बापू को इसी नजरिये से देखने की जरूरत है।

मुल्क को आजादी दिलाने के बाद भी वे संतुष्‍ट नहीं थे। सत्ता से अलग रहकर वह एक और कठिन कम में लगे थे। वे देश की आर्थिक, सामाजिक और नैतिक आजादी के लिए एक नए संघर्ष की उधेड़बुन में थे। रामधुन, चरखा, चिंतन तथा प्रवचन उनकी दिनचर्या थी। एक दिन पहले ही उनकी प्रार्थना सभा के पास धमाका हुआ था लेकिन दुनिया का महानतम सत्याग्रही विचलित नहीं हुआ। वह स्वावलंबी भारत का स्वप्न देखते थे। वह गाँवों को अधिकार संपन्न, जागरूक तथा अंतिम व्यक्ति को भी देश का मजबूत आधार बनाना चाहते थे। जब दिल्ली में उनके कारण आई सरकार स्वरुप ले रही थी, स्वतंत्रता का जश्न मन रहा था, तब बापू दूर बंगाल में खून खराबा रोकने के लिए आमरण कर रहे थे। बापू की दिनचर्या में परिवर्तन नहीं, विचारों में लेशमात्र भटकाव नहीं, लम्बी लड़ाई के बाद भी थकान नहीं और लक्ष्य के प्रति तनिक भी उदारता नहीं। अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार मानने वाले बापू निर्विकार भाव से अपनी यात्रा पर चले जा रहे थे की तभी एक अनजान हाथ प्रकट हुआ जो आजादी की लड़ाई में कही नहीं दिखा था, ना बापू के साथ, ना सुभाष के साथ और ना भगत सिंह के साथ। उस हाथ में थी अंग्रेजों की बनाई पिस्तोल, उससे निकाली अंग्रेजों की बनाई गोली, वह भी अंग्रेजों के दम दबा कर भाग जाने के बाद, तथाकथित हिन्दोस्तानी हाथ से। वह महापुरुष जिसके कारण इतनी बड़ी साम्राज्यवादी ताकत का सब कुछ छीन रहा था, फिर भी उनके शरीर पर एक खरोंच लगाने की हिम्मत नहीं कर पाई, जिस अफ्रीका की रंगभेदी सरकार भी बल प्रयोग नहीं कर सकी थी, उनके सीने में अंग्रेजो की गोली उतार दी एक सिरफिरे कायर ने। वह महापुरुष चला गया हे राम कहता हुआ। गाँधी जी के राम सत्ता और राजनीति के लिए इस्तेमाल होने वाले राम नहीं थे बल्कि व्यक्तिगत जीवन में आस्था तथा आदर्श के प्रेरणाश्रोत थे।

तब आरएसएस पर उगली उठी थी, उसपर पाबन्दी भी लगी। सवाल उठा की बापू की हत्या क्यों की गयी। आज भी यह सवाल अनुत्तरित है। इस सवाल की प्रेतछाया से बचाने के लिए ही शायद भाजपा ने कुछ वर्षो पहले गांधीवाद शब्द का प्रयोग किया था, यह गिरगिट के रंग बदलने के समान ही था। गाँधी जी फासीवाद के रास्ते की बड़ी बाधा थे। गाँधी जी ‘ईश्वर- अल्ला तेरो नाम’ ‘तथा ‘वैष्णवजन तों तेने कहिये प्रीत पराई जाने रे’; की तरफ सबको ले जाना चाहते थे। बापू के आदर्श राम, बुद्ध, महावीर, विवेकानंद तथा अरविन्द थे। हिटलर तथा मुसोलिनी को आदर्श मानने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते? गाँधी सत्य को जीवन का आदर्श मानते थे, झूठ को सौ बार सौ जगह बोल कर सच बनाने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते? शायद इसीलिए महात्मा के शरीर को मार दिया गया।

क्या इससे गाँधी सचमुच ख़त्म हो गए? बापू यदि ख़त्म हो गए तों मार्टिन लूथर किंग को प्रेरणा किसने दी? नेल्सन मंडेला ने किस की रोशनी के सहारे सारा जीवन जेल में बिता दिया, परन्तु अहिंसक आन्दोलन चलते रहे और अंत में विजयी हुए? दलाई लामा किस विश्वास पर लड़ रहे है इतने सालो से? खान अब्दुल गफ्फार खान अंतिम समय तक सीमान्त गाँधी कहलाने में क्यों गर्व महसूस करते रहे? अमरीका के राष्ट्रपति आज भी किसको आदर्श मानते है और दुनिया में बाकी लोगो को भी मानने की शिक्षा देते रहते है?

संयुक्त रास्ट्र संघ के सभा कक्ष से लेकर १२२ देशों की राजधानियों ने महात्मा गाँधी को जिन्दा रखा है। कही उनके नाम पर सड़क बनी, तों कही शोध या शिक्षा संस्थान और कुछ नहीं तों प्रतिमा तों जरूर लगी है।जिसको भारत में मिटाने का प्रयास किया गया, वह पूरी दुनिया में जिन्दा है। महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने कहा कि आने वाली पीढियां शायद ही इस बात पर यकीन कर सकेंगी कि कभी पृथ्वी पर ऐसा हाड़ मांस का पुतला भी चला था। जिस नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को गाँधी के विरुद्ध बताया गया, उन्होंने जापान से महात्मा गाँधी को राष्‍ट्रपिता कह कर पुकारा तथा कहा कि यदि आजादी मिलती है तों वे चाहेंगे की देश की बागडोर रास्ट्रपिता सम्हालें, वह स्वयं एक सिपाही की भूमिका में ही रहना चाहेंगे। परन्तु बापू को सत्ता नहीं, जनता की चिंता थी, उसकी तकलीफों की चिंता थी।

उन्होंने कहा कि भूखे आदमी के सामने ईश्वर को रोटी के रूप में आना चाहिए। यह वाक्य मार्क्सवाद के आगे काa है। उन्होंने कहा की आदतन खड़ी पहने, जिससे देश स्वदेशी तथा स्वावलंबन की दिशा में चल सके, लोगों को रोजगार मिल सके। नई तालीम के आधार पर लोगों को मुफ्त शिक्षा दी जाये। लोगों को लोकतंत्र और मताधिकार का महत्व समझाया जाये और उसके लिए प्रेरित किया जाये। उन्होंने सत्ता के विकेन्द्रीकरण, धर्म, मानवता, समाज और राष्‍ट्र सहित उन तमाम मुद्दों की तरफ लोगों का ध्यान खींचा जो आज भी ज्वलंत प्रश्न है।

वे और उनके विचार आज भी जिन्दा है और प्रासंगिक है। तभी तों जब अमरीका में बच्चो द्वारा अपने सहपाठियों को उत्तेजना तथा मनोरंजनवश गोलियों से भून देने की घटनाएँ कुछ वर्ष पूर्व हुई थी तों वहा की चिंतित सरकार ने बच्चो को बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं बांटे, स्कूल के दरवाजो पर मेटल डिटेक्टर नहीं लगाये, हथियारों पर पाबन्दी नहीं लगे, बल्कि बच्चो को गाँधी की जीवनी, शिक्षा तथा विचार और उनके कार्य बताने का फैसला किया। उसी अमरीका में कुछ वर्ष पूर्व जब हिलेरी क्लिंटन ने बापू पर कोई हलकी बात कर दिया तों अमरीका के लोगों ने ही इतना विरोध किया कि चार दिन के अन्दर ही हिलेरी को खेद व्यक्त करना पड़ा।

गुजरात की घटनाओं के समय जब हैदराबाद में दो समुदाय के हजारों लोग आमने-सामने आँखों में खून तथा दिल में नफरत लेकर एकत्र हो गए, तों वहा दोनों समुदाय की मुट्ठी भर औरतें मानव शृंखला बना कर दोनों के बीच खड़ी हो गयी। यह गाँधी का बताया रास्ता ही तों था, वहा विचार के रूप में गाँधी ही तों खड़े थे। गुजरात में पिछले दिनों में राम, रहीम और गाँधी तीनों को पराजित करने की चेष्टा हुई, लेकिन हत्यारे ना गांधी के हो सकते है, ना राम के ना रहीम के।

महत्मा गाँधी तों नहीं मरे, फिर हत्यारे ने मारा किसे था? ऐसे सिरफिरे लोग और उनके संगठन कितनी हत्याएं करेंगे? पिछले ६२ वर्षों में भी वे गाँधी को नहीं मार पाये है। वह कौन सा दिन होगा जब फासीवादी लोग गाँधी की पूर्ण करने में कामयाब हो पाएंगे? लेकिन जिम्मेदारी और जवाबदेही बापू को मानने वालो की भी है की सत्ता की ताकत से महात्मा गाँधी को बौना करने, उन्हें गाली देने और गोली मरने वालो से मानवता को बचाएं। रास्ता वही होगा जो गाँधी ने दिखाया था। बासठवा वर्ष जवाब चाहता है दोनों से की तुमने गाँधी को मारा क्यों था? उद्देश्य क्या था? तुम कहा तक पहुंचे? उनके मानने वालों से भी कि आर्थिक गैर बराबरी, सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ, नफ़रत और शोषण के खिलाफ बापू द्वारा छेड़ा गया युद्ध फैसलाकुन कब तक होगा? इन सवालों के साथ महात्मा गाँधी तथा उनके विचार आज भी जिन्दा है और कल भी हमारे बीच मौजूद रहेंगे।

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डॉ. सी. पी. राय
एम् ए [राजनीति शास्त्र], एल एल बी ,पी जी डिप [समूह संचार]। एम एड, पी एच डी [शिक्षा शास्त्र] पी एच डी [राजनीति शास्त्र]। संसदीय पुस्तक पुरस्कार से सम्मानित। पूर्व राज्य मंत्री उत्तर प्रदेश। अध्यापक ,गाँधी अध्ययन। डॉ बी आर आंबेडकर विश्व विधालय आगरा। १- "संसद और विपक्ष " नामक मेरी प्रकाशित शोध पुस्तक को संसदीय पुस्तक पुरस्कार मिल चुका है। २-यादो के आईने में डॉ. लोहिया भी एक प्रयास था। ३-अनुसन्धान परिचय में मेरा बहुत थोडा योगदान है। ४-कविताओ कि पहली पुस्तक प्रकाशित हो रही है। ५-छात्र जीवन से ही लगातार तमाम पत्र और पत्रिकाओ में लगातार लेख और कवितायेँ प्रकाशित होती रही है। कविता के मंचो पर भी एक समय तक दखल था, जो व्यस्तता के कारण फ़िलहाल छूटा है। मेरी बात - कविताएं लिखना और सुनना तथा सुनाना और तात्कालिक विषयों पर कलम चलाना, सामाजिक विसंगतियों पर कलम और कर्म से जूझते रहना ही मेरा काम है। किसी को पत्थर कि तरह लगे या फूल कि तरह पर मै तों कलम को हथियार बना कर लड़ता ही रहूँगा और जो देश और समाज के हित में लगेगा वो सब करता रहूँगा। किसी को खुश करना ?नही मुझे नही लगता है कि यह जरूरी है कि सब आप से खुश ही रहे। हां मै गन्दगी साफ करने निकला हूँ तों मुझे अपने हाथ तों गंदे करने ही होंगे और हाथ क्या कभी कभी सफाई के दौरान गन्दगी चेहरे पर भी आ जाती है और सर पर भी। पर इससे क्या डरना। रास्ता कंटकपूर्ण है लेकिन चलना तों पड़ेगा और मै चल रहा हूँ धीरे धीरे। लोग जुड़ते जायेंगे, काफिला बनता जायेगा और एक दिन जीत सफाई चाहने वालो कि ही होगी।

2 COMMENTS

  1. नहीं डाक्टर राय,आप गलत हैं.गाँधी को भारत के लिए मरे हुए तो अनेक युग बीत गए.आप कैसे कह रहे हैं की गाँधी विचारों में आज भी ज़िंदा हैं.मुझे तो कही नहीं दीखता.भारत के बाहर भले ही आज आपको गाँधी की झलक मिल जाए पर भारत में तो यह असंभव है. डाक्टर राय मुझे दिखाइये की भारत में गाँधी कहाँ ज़िंदा हैं?
    जो देश भ्रष्टाचार में दुनिया में अग्रणी है वहा आप गाँधी को ढूंढ रहे है? जिस देश के निवासी झूठ को धर्म का बाना पहनाकर एक दूसरे का गला कट सकते हैं वहा आप गाँधी को ढूढ़ रहे है? नहीं डाक्टर रॉय आज के भारत में गाँधी के हत्यारे उनके विचारों का गला घोटने वाले तो पग पग पर मिलेंगे,पर गाँधी को सपने में भी याद करने वाले यानि उनके अनुसार चलने की कोशिश भी करने वाले शायद कही नजर आयें.ऐसे भारत में गाँधी की बात भी करना मुझे तो समय की बर्बादी ही लगता है.आज क्या आप एक भी भारतीय दिखा सकते है जो राम रहीम को भूल कर इंसानियत के बारे में सोचे ?या क्या एक भी भारतीय ऐसा दिखा सकते है जो समाज के सबसे पिछड़े लोगों का सच्चा रहनुमा बन कर सामने आये?जब तक यह नहीं होता,हम भारतीयों को गाँधी का नाम भी याद करने का अधिकार नहीं है.

  2. बहुत ही परिपक्कव आलेख ,खास तौर से -ईश्वर को गरीब आदमी के आगे रोटी के रूप में -इस समय यह प्रासंगिक पोस्ट प्रकाशित करने के लिए प्रवक्ता .कॉम को शुक्रिया .राय साब को साधुवाद ..इस सन्दर्भ में दृस्तव्य है http://www.janwadi.blogspot.com

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