समाचार जगत की महात्रासदी : बीबीसी रेडियो सेवा का बंद होना

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तनवीर जाफरी

बीबीसी अर्थात ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन के प्रमुख पीटर हॉक्स द्वारा की गई एक अप्रत्याशित घोषणा के अनुसार भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय बीबीसी रेडियो सर्विस के हिंदी प्रसारण सहित मैसोडोनिया, सर्बिया, अल्बानिया, रूस, यूक्रेन, तुर्की, मेड्रिन, स्पेनिश, वियतनामी तथा अजेरी भाषा के बी बी सी प्रसारण मार्च के दूसरे पखवाड़े, संभवत: 20 मार्च से बंद कर दिए जाएंगे। ग़ौरतलब है कि विश्व की सबसे लोकप्रिय निष्पक्ष एवं बेबाक समझी जाने वाली बीबीसी समाचार सेवा का मुख्यालय हालांकि लंदन स्थित बुश हाऊस में है तथा यह सेवा पब्लिक ट्रस्ट से संचालित होती है। परंतु बीबीसी के कर्मचारियों तथा पत्रकारों की तनख्वाह के लिए ब्रिटेन का विदेश मंत्रालय पैसा मुहैया कराता है। लिहाज़ा ब्रिटिश विदेश मंत्रालय ने ही यह फैसला लिया है कि बीबीसी को दिए जाने वाले अनुदान में 16 प्रतिशत की कटौती की जाए। ब्रिटिश विदेश मंत्री विलियम हेग का कहना है कि बीबीसी की भविष्य की प्राथमिकताएं नए बाज़ार होंगे। जिसमें ऑनलाईन प्रसारण, इंटरनेट तथा मोबाईल बाज़ार प्रमुख हैं। ब्रिटिश विदेश मंत्रालय के इस अप्रत्याशित फैसले से जहां बीबीसी के लगभग 650 कर्मचारी तथा योग्य पत्रकार अपनी सम्मानपूर्ण नौकरियां गंवा बैठेंगे वहीं बीबीसी से आत्मीयता का गहरा रिश्ता रखने वाले समाचार श्रोताओं के हृदय पर यह निर्णय एक कुठाराघात भी साबित होगा।

ब्रिटिश विदेश मंत्रालय के इस फैसले से पहले गत वर्ष एक और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समाचार सेवा वॉयस ऑफ अमेरिका को भी ी अमेरिकी प्रशासन द्वारा बंद किया जा चुका है। यह फैसला भी वित्तीय संकटों के चलते वित्तीय खर्चों में कटौती करने की गरज़ से लिया गया था। परंतु भारत जैसे देश में वॉयस आफ अमेरिका का रेडियो प्रसारण बंद होने पर इतनी बवाल नहीं मची थी जितनी कि बीबीसी हिंदी सेवा के रेडियो प्रसारण के बंद होने के फैसले पर दिखाई दे रही है। इसका सीधा एवं स्पष्ट कारण यही है कि बीबीसी विश्व समाचार हिंदी के रेडियो प्रसारण ने अपनी निष्पक्ष, बेबाक, शुद्ध साहित्य से परिपूर्ण तथा त्वरित पत्रकारिता के चलते भारत की करोड़ों अवाम के दिलों में जो सम्मानपूर्ण एवं आत्मीयता से परिपूर्ण जो जगह बनाई थी वह जगह वॉयस आफ अमेरिका तो क्या शायद भारतीय रेडियो की विविध भारती तथा आकाशवाणी सेवा भी नहीं बना सकी थी। बीबीसी ने अपने शानदार समाचार विश्लेषण, साहित्यिक सूझबूझ रखने वाले पत्रकारों तथा शुद्ध एवं शानदार उच्चारण के चलते स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक भारतीय श्रोताओं के दिलों पर राज किया। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि बीबीसी सुनकर ही हमारे देश में न जाने कितने युवक आईएएस अधिकारी बने,कितने लोग नेता बने तथा तमाम लोग छात्र नेता, लेखक, पत्रकार व अन्य अधिकारी बन सके। बीबीसी परीक्षार्थियों तथा विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले युवकों को भी अत्यंत लोकप्रिय था। बीबीसी रेडियो की हिंदी सेवा ने गरीबों, रिक्शा व रेहड़ी वालों,चाय बेचने वालों, दुकानदारों से लेकर पंचायतों व चौपालों आदि तक पर लगभग 6 दशकों तक राज किया। भारत में अब भी बीबीसी के लाखों श्रोता ऐसे हैं जिनका नाश्ता बीबीसी पहली सेवा से ही होता है तथा रात में अंतिम सेवा सुनकर ही उन्हें नींद आती है। यह कहने में भी कोई हर्ज नहीं कि भारत में बीबीसी हिंदी सेवा सुनने के लिए ही समाचार प्रेमी श्रोतागण रेडियो व ट्रांजिस्टर खरीदा करते थे। तमाम भारतीय समाचार पत्र-पत्रिकाएं तथा टीवी चैनल बीबीसी के माध्यम से $खबरें लेकर प्रकाशित व प्रसारित केवल इसलिए किया करते थे क्योंकि बीबीसी की $खबरों की विश्वसनीयता की पूरी गांरटी हुआ करती थी। परंतु अब सभवत:यह गुज़रे ज़माने की बातें बनकर इतिहास के पन्नों में समा जाएंगी।

इसमें कोई दो राय नहीं कि इस समय पूरा विश्व विशेषकर पश्चिमी देश भारी मंदी व इसके कारण पैदा हुए आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहे हैं। परंतु आर्थिक संकट के इस दौर में यदि कटौती करनी भी हो तो सर्वप्रथम युद्ध के खर्चों में कटौती की जानी चाहिए। इराक, अफगानिस्तान तथा अन्य उन तमाम देशों में जहां अमेरिका तथा उसके परम सहयोगी देश के रूप में ब्रिटिश फौजें तैनात हैं दरअसल वहां होने वाले भारी-भरकम एवं असीमित खर्चों में कटौती की जानी चाहिए। न कि पूरी दुनिया में विश्वसनीयता का झंडा गाडऩे वाले बीबीसी जैसी रेडियो सेवा पर खर्च होने वाले पैसों में। एक बड़ा देश होने के नाते बीबीसी हिंदी सेवा के श्रोतागणों की नाराज़गी भारतवर्ष में का$फी मुखरित होती दिखाई दे रही है। परंतु वास्तव में जिन-जिन देशों कीअपनी भाषाओं के बीबीसी प्रसारण बंद हो रहे हैं उन देशों में भी बीबीसी ने अपनी पत्रकारिता की निष्पक्ष तथा बेलाग-लपेट के अपनी बात कहने की अनूठी शैली के चलते श्रोताओं के दिलों में ऐसी ही जगह बनाई थी। परंतु बड़े ही दु:ख एवं आश्चर्य का विषय है कि ब्रिटिश विदेश मंत्रालय तथा बीबीसी प्रबंधन ने दुनिया के करोड़ों श्रोताओं की परवाह किए बिना इस प्रकार का कठोर निर्णय ले डाला।

अपनी शानदार पत्रकारिता एवं बेहतरीन प्रसारण के बल पर बीबीसी ने विश्व स्तर पर जो प्रतिष्ठा श्रोताओं के मध्य अर्जित की थी वह अब तक दुनिया की किसी और समाचार सेवा ने नहीं हासिल की। गत् वर्ष बीबीसी ने भारत में अपने श्रोताओं से संबंध स्थापित करने के लिए एक विशेष रेल यात्रा निकाली तथा कई राज्यों में बस यात्राएं भी कीं। अपने श्रोताओं से मिलने से सीधा संपर्क स्थापित करने के बीबीसी के इस प्रयास से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अब बीबीसी और भी अधिक सक्रिय होने जा रहा है। यहां तक कि बीबीसी के श्रोता यह आस भी लगाए बैठे थे कि संभवत: अब बीबीसी का हिंदी न्यूज़ चैनल भी शीघ्र ही शुरु होगा। परंतु बीबीसी प्रेमियों की सारी उम्मीदों पर ब्रिटिश विदेश मंत्रालय एवं बीबीसी प्रबंधन ने पानी फेर दिया। बीबीसी के भारतीय श्रोतागण इस सेवा को पूर्ववत् जारी रखने के लिए बीबीसी को शुल्क देने,अपनी मासिक आय देने तथा अन्य तरी$कों से उसकी आर्थिक मदद करने तक को तैयार हैं। यदि बीबीसी ब्रिटिश मंत्रालय द्वारा सोलह प्रतिशत की खर्च कटौती की पूर्ति के लिए बाज़ार से विज्ञापन लेना शुरु कर दे तो भी उसके खर्च पूरी हो सकते हैं। इस प्रतिष्ठित समाचार सेवा को बंद करने के बजाए इसे और अधिक मज़बूत व मुखरित तथा प्रतिष्ठापूर्ण बनाने के लिए बीबीसी प्रबंधन को तथा ब्रिटिश सरकार को और अधिक प्रयास करने चाहिए थे। ब्रिटिश सरकार को स्वयं इस बात पर $गौर करना चाहिए था कि वॉयस ऑ$फ अमेरिका रूस,चीनी तथा जर्मनी रेडियो की समाचार सेवाओं को कहीं पीछे छोड़ते हुए बीबीसी ने अपनी लोकप्रियता का जो झंडा बुलंद किया था उसे बर$करार रखा जाए। परंतु आर्थिक संकट के नाम पर इतना बड़ा फैसला ले लेना तथा दुनिया के करोड़ों श्रोताओं की अनदेखी करना इस बात का सा$फ प्रमाण है कि ब्रिटिश सरकार सही फैसले ले पाने में निश्चित रूप से असमर्थ है। यह कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया में ब्रिटेन का आज भी जो थोड़ा-बहुत स मान आम लोगों के दिलों में था उसका एक सबसे बड़ा कारण बीबीसी लंदन जैसी विश्वसनीय समाचार सेवा ही थी।

आले हसन, पुरुषोत्तमलाल पाहवा, रामपाल, मार्क टुली, ओंकार नाथ श्रीवास्तव से लेकर संजीव श्रीवास्तव, सलमा ज़ैदी, राजेश जोशी, महबूब खान, तथा अविनाश दत्त तक बीबीसी के सभी योग्य एवं होनहार पत्रकारों ने निश्चित रूप से भारतीय श्रोताओं के दिलों पर दशकों तक राज किया है। भारतीय श्रोता बीबीसी के आजतक, विश्वभारती, आजकल तथा हम से पूछिए जैसे उन कार्यक्रमों को कभी नहीं भुला सकेंगे जो भारतीय चौपालों, पंचायतों, भारतीय सीमाओं तथा चायख़ानों तक में बड़ी गंभीरता से सुने जाते थे। अभी भी 20 मार्च की तिथि आने में समय बाकी है। बीबीसी हिंदी प्रसारण के शाम को प्रसारित होने वाले इंडिया बोल कार्यक्रम में भारतीय श्रोताओं ने अपने विचार अपने दिलों की गहराईयों से व्यक्त किए हैं। इन्हें सुनने व पढऩे के बावजूद यदि ब्रिटिश सरकार तथा बीबीसी प्रबंधन ने बीबीसी की बंद होने वाली सेवाओं विशेषकर बीबीसी हिंदी सेवा को पूर्ववत् प्रसारित करते रहने का निर्णय नहीं लिया तो भारत के जागरुक नागरिक विशेष कर बीबीसी को अपने परिवार के विश्वसनीय सदस्य के रूप में स्वीकार कर चुके श्रोतागण विश्व समाचार जगत पर हो रहे अब तक के इस सबसे बड़े कुठाराघात को शायद सहन नहीं कर सकेंगे। साथ ही साथ इन बीबीसी प्रेमियों को ब्रिटिश सरकार तथा बीबीसी प्रबंधन की कार्यकुशलता,योग्यता व सक्षम संचालन के प्रति उत्पन्न होन वाले संदेह एवं अविश्वास से भी कोई नहीं रोक सकेगा।

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