आपका सुंदर नाम रचिए।

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namesडॉ. मधुसूदन

(एक) प्रवेश:
शायद आप कविता नहीं करते, पर कवियों या कवयित्रियों की भाँति अपना अलग और अच्छा-सा नाम अवश्य रच सकते हैं। आज आप को, ऐसे नाम रचने की सरल विधि समझाने का उद्देश्य है। विषय विस्तृत है, इस लिए कुछ ही उदाहरणों से इसे विशद किया जाएगा। कवि और कवयित्रियाँ, ऐसे सुन्दर नाम धारण करते देखें हैं।आप भी अपना परिचय एक अलग नाम रचकर दे सकते हैं।
और, अगली बार जब आप दशहरा, दीपावली, नवीन वर्ष इत्यादि पर्वों पर, या किसी के जन्म दिन पर शुभेच्छाएँ भेजे तो अपने ऐसे नये रचित नाम से भेज सकते हैं।
भाई, बहन, माता, पिता जिसे भी भेजना हो, उन्हीं के नाम से जुडा हुआ अपना नाम, प्रयोग में ला सकते हैं। उन्हें अचरज भरा आनन्द होगा; और, आप की प्रतिभा का परिचय भी।ऐसे कौटुम्बिक संबंधों से जुडे हुए नाम कैसे बनते हैं, ये कुछ उदाहरणों से जानते हैं।

(दो) संस्कृत की देन
यह भी हमारी संस्कृत की विशेष देन है; जिसके कारण ऐसे नाम पर्याप्त मात्रा में उपल्ब्ध होते हैं। वास्तव में ऐसे नाम अनेक प्रकार से रचे जा सकते हैं। मित्र के नाम से जोडकर; भाई-बहन संबंध के आधारपर; माता पिता के नाम से जोडकर; ऐसी और भी अनेक विधाओं से ऐसे नाम बन सकते हैं।किसी विशेष गुण के आधारपर भी ऐसे नाम रचे जा सकते हैं। पर इस विषय की एक झलक ही इस संक्षिप्त आलेख में दिखाई जा सकती है।

(तीन) भाई बहन के संबंधपर नाम
हमारी संस्कृति में सभी से विशुद्ध और पवित्र संबंध भाई-बहन का ही ह कितने सारे चलचित्र और चित्रपटों के गीत भाई और बहन के विशुद्ध प्रेम पर आश्रित हैं। और, रक्षा-बंधन एवं भाई-दूज जैसे पर्व इस पवित्रतम संबंध पर, पौराणिक काल से, चले आ रहे हैं। तो ऐसे भाई-बहन के संबंधपर, नाम कैसे रचे जाते हैं, इसे कुछ सूक्ष्मता में जानना उचित होगा।

(चार) अनुज, अनुजा, अग्रज, और अग्रजा
संस्कृत के चार शब्द आप को परिचित होंगे।
अनुज, अनुजा और अग्रज, अग्रजा इत्यादि का अर्थ भी आप जानते ही होंगे।
अनु+ज=अनुज; अर्थ होता है पीछे जन्मा हुआ छोटा भाई।
अनु+जा=अनुजा; अर्थ होगा पीछे जन्मी हुयी छोटी बहन।
अग्र+ ज=अग्रज, अर्थ होता है आगे जन्मा हुआ बडा भाई।
और अग्र+ जा= अग्रजा, अर्थ होगा आगे जन्मी हुयी बडी बहन।
यदि आप छोटे भाई या बहन हैं, तो आप अनुज या अनुजा हैं।
और यदि आप बडे भाई या बडी बहन हैं, तो आप अग्रज या अग्रजा हैं।

(पाँच) रचना के, कुछ उदाहरण:
पहले आप अपनी बडी बहन या बडे भाई का नाम (जो भी चाहे) पसंद कर लीजिए।
उदाहरणार्थ: जैसे राम के छोटे भाई लक्ष्मण थे; और राम बडे थे। तो लक्ष्मण जी स्वयं को रामानुज कह सकते हैं। रामायण में लक्ष्मण, और भरत को राम के *अनुज* इस संबोधन से, सुना-या पढा जाता है। मात्र अनुज संबोधन से आप *छोटे भाई* को बुला सकते हैं। सुनते ही भाषा का सांस्कृतिक स्तर ऊंचा उठ जाता है। उसी प्रकार राम स्वयं भरताग्रज भी होते हैं। निम्न श्लोक में भी राम भरताग्रज कहे गए हैं।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥
इस एक ही श्लोक में राम रघुनन्दन,(रघु कुल को आनन्द देनेवाले) भरताग्रज,(भरत के बडे भाई) रणकर्कश,(रण में शूर) इत्यादि अर्थों से जुडे हैं।
(छः) कुछ उदाहरण:
इसी विषय को आगे बढाते हैं। यदि आपकी छोटी बहन का नाम कुसुम है। तो आप कुसुम के बडे भाई हुए। तो आप स्वयं को कुसुमाग्रज (कुसुम से आगे जन्मे हुए) कहलवा सकते हैं। और यदि कुसुम आप की बडी बहन है, तो आप स्वयं को कुसुमानुज (कुसुम के पीछे जन्मे हुए) कहलवा सकते हो।

(सात) संस्कृत का योगदान
ध्यान में आया होगा, कि, ऐसे नामों की रचना में हम भारतीयों के लिए संस्कृत का बडा योगदान है। और भारत की सारी प्रादेशिक भाषाएँ ऐसा लाभ ले सकती है। महाराष्ट्र, गुजरात के, कवियों में, देखे हुए कुछ नाम हैं; जैसे, कुसुमाग्रज, गोविंदाग्रज, माधवानुज, रामानुज, केशवसुत, केशवकुमार इत्यादि। एक कवयित्रि है इन्दुतनया, एक कविका नाम है त्रिवेणीतनय इत्यादि इत्यादि।
यदि, आप बडे भाई हैं, और छोटी बहन का नाम बिमला, कमला, दिव्या, विद्या, इत्यादि हैं; तो आप अपने आप को विमलाग्रज, कमलाग्रज, दिव्याग्रज, विद्याग्रज इत्यादि कह सकते हैं। और यदि आप बडी बहन हैं और आप की छोटी बहन का नाम बिमला, कमला, दिव्या, विद्या, इत्यादि हैं; तो आप अपने आप को विमलाग्रजा, कमलाग्रजा, दिव्याग्रजा, विद्याग्रजा ऐसे नाम स्वीकार सकती हैं।
और यदि आप छोटे भाई हैं, और आपकी बडी बहन का नाम कुसुम, आभा, प्रभा, हेमा, इत्यादि है, तो आप अपने आप को कुसुमानुज, आभानुज, प्रभानुज,हेमानुज इत्यादि नामों से विभूषित कर सकते हैं।
यदि आप स्वयं छोटी बहन हैं, तो इन्हीं नामों को आकारान्त करें; और कुसुमानुजा, आभानुजा, प्रभानुजा, हेमानुजा इत्यादि प्रकार के नाम ले सकती हैं।
उसी प्रकार से, आप के छोटे भाई का नाम प्रकाश, अरविन्द, महेन्द्र. नरेन्द्र, हेमेंद्र, महेश इत्यादि होनेपर आप अपने आप को प्रकाशाग्रज, अरविंदाग्रज, महेंद्राग्रज, नरेंद्राग्रज, हेमेंद्राग्रज, और महेशाग्रज कहला सकते हैं। और यदि आप छोटे हैं, तो आप प्रकाशानुज, अरविन्दानुज, महेन्द्रानुज, नरेंद्रानुज, हेमेंद्रानुज, या महेशानुज हुए।

(आठ) नाम रचने की विभिन्न विधाएँ:
ऐसे नाम रचने की विधा भी भाई बहन के संबंध पर ही सीमित नहीं है।उसकी और भी
अनेक विधाएँ हैं। पिता या माता से जोडकर; सुत, कुमार, तनय, नन्दन इत्यादि के प्रयोग से भी आप नाम रच सकते हैं। इन सारें शब्दों के अर्थ विभिन्न प्रकार से, पुत्र ही होता है, पर अर्थ अलग अलग दिशाओं से प्रवेश करता है। नन्दन का अर्थ है, आनन्द देनेवाला, जैसे राम कौशल्यानन्दन या दशरथनन्दन हुए; रघुनन्दन भी सुना होगा। कृष्ण यशोदानन्दन या देवकिनन्दन हुए, वसुदेव के पुत्र के अर्थ से वासुदेव हुए। उसी प्रकार, पाण्डु के पुत्र पाण्डव। कुरु के पुत्र (वंशज) कौरव। रघु से बनता है राघव।

(नौ) पवनपुत्र, पवनसुत, आंजनेय, बजरंगबली।

आपने हनुमानजी के लिए पवनपुत्र सुना होगा। पवनसुत भी सुना होगा। और अञ्जना की सन्तान के नाते आञ्जनेय भी सुना होगा। कुछ लोगों को बजरंगबली के विषय में स्पष्टता नहीं होती।उन्हें बजरंगबली संस्कृत से आया हुआ नहीं लगता। वास्तव में बजरंगबली का संबंध है वज्र से। अर्थ होगा वज्र जैसा अंग है जिसका, वैसा बली अर्थात वैसा बलवान। वज्र +अंग + बली =वज्रांगबली या वज्रंगबली अर्थात ऐसा बली जिसका अंग वज्र जैसा अभेद्य है। और हमारी प्राकृत शैली में व का ब होकर अंततः बजरंग बली हो गया।
पुत्रियों के लिए, तनया, नन्दिनी, कुमारी, सुता इत्यादि भी प्रयोजे जा सकते हैं। सीता जी जनकनन्दिनी, जनकसुता, और जानकी, कहलाई है।
ऐसे अन्य शब्दों का आधार लेकर भी नये नाम रचे जा सकते हैं।यः तनोति कुलं सः तनयः अर्थात पुत्र, जो कुल को आगे (भविष्य) की ओर-तान(खीच)कर ले जाता है)इस लिए, उसे तनय कहते हैं। पुत्री को तनया कहलाते भी पढा अवश्य है। माता के नाम से भी ऐसी रचनाएं होती हैं।त्रिवेणी का पुत्र त्रिवेणीतनय कहा जाएगा। और पुत्री त्रिवेणीतनया होगी। एक मराठी कवयित्रि का नाम इन्दुतनया है। एक सिन्धुतनया भी पढा हुआ स्मरण है।
फिर, विनता की सन्तान वैनतेय होती है। अदिति का पुत्र आदित्य कहलाता है। और दिति के पुत्र को दैत्य कहा जाएगा। (गर्गस्य अपत्यं गार्गिः)गर्ग की सन्तान गार्गि कहलाएगी। (दशरथस्य अपत्यं दाशरथि:) दशरथ की सन्तान दाशरथि होगी। गङ्गा की सन्तान गाङ्गेय, राधा की सन्तान राधेय, कुन्ती की सन्तान कौन्तेय, सुमित्रा की सन्तान सौमित्रि, द्रोण की सन्तान द्रौणि, और अञ्जना की सन्तान आञ्जनेय।
अलग दृष्टिकोण से देखें, तो, यह हमारी संस्कृति की विशेषता की झलक भी है।

(दस) संस्कृति की विशेष झलक

ऐसी भाषा में हमारी पारिवारिक भावना छिडकी हुयी है, या कहिए कि प्रतिबिम्बित
हुयी है। ऐसे छोटे छोटे अनेक घटकों द्वारा हैं,हमारा पारिवारिक ढाँचा हमारी संस्कृति को सनातनता देता है; जो संस्कृति सारे संसार में अनोखी है। क्या अंग्रेज़ी में ऐसे संबंध अभिव्यक्त किए जा सकते हैं? सोचिए।
विषय और भी गहरा है। इसे यहीं विराम देते हैं।
पाठकों से अनुरोध है, कि, टिप्पणी में अपने, ऐसे नये रचित नाम का उल्लेख कर ने का प्रयास करें। इस आलेख में संस्कृत के प्रत्ययों का प्रयोग किया गया है।

3 COMMENTS

  1. बहुत बढ़िया आलेख और प्रयोजे जाने योग्य भी |

    शीर्षक ‘आपका सुन्दर नाम रचिए’ के स्थान पर ‘अपना सुन्दर नाम रचिए’ होता तो अधिक सही रहता |
    धन्यवाद,
    रमेश जोशी
    लेखक, कवि, पूर्व हिंदी अध्यापक, प्रधान सम्पादक, ‘विश्वा’, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की त्रैमासिक पत्रिका

    मेरे अन्य लिंक्स – Youtube, Blog, Facebook, Navabharat Times
    Kindle Books: Begaane Mausam, Pitaa, Karze ke Thaath

    • सही कहा, जोशी जी, *अपना सुन्दर नाम रचिए* अधिक अच्छा रहता। गुजराती का प्रभाव अनजाने लेखन में आ जाता है। बहुत बहुत धन्यवाद।

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