मल्लिका, शहज़ादा और समलैंगिकता

homo

      समलैंगिक संबन्धों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के खिलाफ़ एक बार सारी अनैतिक शक्तियां एकजूट हो रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को विवादास्पद बनाने की मुहीम में समलैंगिकों के साथ मल्लिका-ए-हिन्दुस्तान, शहज़ादा-ए-हिन्दुस्तान और दिल्ली के बेताज़ बादशाह भी शामिल हो गये हैं। नीचे पेश है, उनके वक्तव्य –

‘दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले को पलटने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से निराशा हुई है। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि संसद इस मामले को सुलझायेगी और देश के सभी नागरिकों के (विशेष रूप से समलैंगिकों के) अधिकारों की स्वतंत्रता की रक्षा करेगी, जिसमें वे नागरिक भी शामिल हैं जो इस फ़ैसले से सीधे प्रभावित हुए हैं’।’

–सोनिया गांधी, अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, नई दिल्ली, दिनांक १२-१२-२०१३

‘वे दिल्ली हाईकोर्ट के उस फ़ैसले से सहमत हैं, जिसने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। सरकार दिल्ली हाईकोर्ट के भारतीय दंड संहिता की धारा ३७७ पर दिए गए फ़ैसले को बहाल करवाने के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रही है।”

—- राहुल गांधी, उपाध्यक्ष,  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, नई दिल्ली, दिनांक १२-१२ २०१३

‘आम आदमी पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से सहमत नहीं है। यह फ़ैसला संविधान के उदार मूल्यों के विपरीत और मानवाधिकारों का हनन करने वाला है। आप ने उम्मीद जताई है कि शीर्ष अदालत अपने फ़ैसले की समीक्षा करेगी और साथ ही संसद भी कानून को बदलने के लिये कदम उठायेगी।”

—- प्रवक्ता, आप, नई दिल्ली, दिनांक १२-१२-२०१३

उपरोक्त अधिकृत वक्तव्यों की विस्तार से व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है।  देश का अनपढ़ आदमी भी उनके संदेश और मन्तव्य को समझ सकता है। ये वक्तव्य देश के उन नेताओं के हैं जो देश की सरकार चला रहे हैं या जनता की नई आवाज़ होने का दावा कर रहे हैं। मेरे इस लेख का मकसद देश के इन शीर्ष नेताओं की मानसिकता से देश को अवगत कराना है।

कांग्रेस ने आरंभ से ही अपने देश की संसकृति, सभ्यता और अखंडता को खंड-खंड करने का कभी सफल, तो कभी असफल प्रयास किया है। बांग्ला देश और पाकिस्तान १४ अगस्त, १९४७ के पूर्व अखंड भारत के ही हिस्से थे। देश के विभाजन का अक्षम्य अपराध कांग्रेस ने किया, सज़ा तीनों देशों के बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक, आज तक भुगत रहे हैं। कांग्रेस ने इस पाप के लिये आजतक न माफ़ी मांगी है और न खेद प्रकट किया है। भारतीय सभ्यता, संस्कृति और भाषा से इनका रिश्ता हमेशा छ्त्तीस का रहा है। बड़े दुःख के साथ इतिहास के पुराने पन्ने खोलने पड़ रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू की रंगीन मिज़ाज़ी के प्रमाण अनेक पुस्तकों और लेडी माउन्टबैटन के साथ उनके प्रकाशित प्रेम-पत्रों में दर्ज़ है, जिन्हें नेट पर जाकर कोई भी पढ़ सकता है। पत्नी कमला नेहरू के देहान्त के बाद भारत कोकिला सरोजिनी नायडू की पुत्री पद्मजा नायडू से नेहरूजी के रिश्ते पत्नी की तरह थे। उनके प्रधान मंत्री बनने के बाद वे उनके साथ त्रिमूर्ती भवन में ही रहती थीं। नेहरूजी ने उनसे वादा किया था कि देश आज़ाद होने के बाद वे उनसे शादी कर लेंगे। लेकिन लेडी माउन्ट्बैटन के भारत आगमन के बाद सारे समीकरण बदल गये। जैसे-जैसे नेहरूजी और लेडी वायसराय के संबन्ध अन्तरंग होते गए, पद्मजा दूर होती गईं। एक दिन पद्मजा ने रोते हुए त्रिमूर्ति भवन हमेशा के लिये छोड़ दिया। नेहरूजी की बेवफ़ाई को जीवन भर सीने से लगाकर उन्होंने कुंवारा और एकाकी जीवन ही व्यतीत किया। और भी किस्से हैं ………..चर्चा फिर कभी।

इन्दिरा गांधी ने नेहरू जी की इच्छा के खिलाफ़ विधर्मी से व्याह रचाया। महात्मा गांधी ने नव दंपत्ति का गांधीकरण किया, सिर्फ़ नाम से, जो आज भी चल रहा है। एक पुत्र की उत्पत्ति के बाद यह संबन्ध भी सिर्फ कागज पर ही रह गया। फ़िरोज़ गांधी को अकेले ही जीना पड़ा। विवाहेतर संबन्धों पर मौन ही रहा जाय तो अच्छा।

युवा हृदय सम्राट राजीव गांधी को कोई स्वदेशी लड़की कभी भायी ही नहीं। खानदान में अबतक हिन्दू और मुसलमान का ही प्रवेश हुआ था। अब विदेशी क्रिश्चियन की बारी थी। उन्होंने इस कमी की पूर्ति की। धर्म निरपेक्षता के लिये यह आवश्यक भी था। सोनिया गांधी भारत की राजमाता (खुर्शीद आलम के शब्दों में) बनीं। शहज़ादा पीछे क्यों रहते? उन्हें हार्वार्ड यूनिवर्सिटी के अपने असफल शिक्षा-अवधि के दौरान कैलिफोर्नियायी गर्ल-फ्रेन्ड पसन्द आई। शादी हिन्दुस्तान के शहन्शाह बनने के बाद होनी थी। फिलहाल नमो ने सारा खेल बिगाड़ दिया है। अब आशा के केन्द्र समलैंगिक रह गये हैं। आम जनता ने तो चार राज्यों में धूल चटा दी है, अब समलैंगिक वोट-बैंक ही शायद नैया पार लगाये।

इस मामले में सपनों के सौदागर अरविन्द केजरीवाल पीछे क्यों रहते। उनके प्रवक्ता कहते हैं कि युगों-युगों से विश्व के हर कोने में समलैंगिक संबन्ध रहे हैं। अतः इसे वैधानिकता प्रदान करना आवश्यक है। कोई इनसे पूछे कि क्या युगों-युगों से बलात्कार, वेश्यावृत्ति, हत्या, लूटपाट और भ्रष्टाचार का अस्तित्व नहीं रहा है? क्या इनको वैधानिक मान्यता देना आवश्यक नहीं है? केजरीवाल पिछले चुनाव में भाजपा से ४ सीटें कम पाकर दूसरे नंबर पर हैं। सरकार बना नहीं पा रहे हैं। शायद समलैंगिक वोट-बैंक पर उनकी भी नज़र हो।

देश के हिन्दू और मुसलमान किसी विषय पर विरले ही एकमत होते हैं। अगर ये दोनों समुदाय समलैंगिक संबन्धों की एकसाथ मुखालफ़त कर रहे हैं, तो इसे नज़र अन्दाज़ करना पूरे समाज और संस्कृति के लिये घातक होगा। इस देश के हिन्दू और मुसलमानों का मूल (Origin) एक ही होने के कारण उनकी मौलिक संस्कृति एक है। सामाजिक और जीवन-मूल्य भी एक ही है। ये दोनों समुदाय जिनकी इस देश में संयुक्त आबादी ९६% है, कभी भी समलैंगिकता की वैधानिकता को स्वीकर नहीं कर सकते। यह अप्राकृतिक संबन्ध विकृत मानसिकता की उपज है। मनुष्यों के अतिरिक्त किसी भी योनि – पशु-पक्षी, पेड़-पौधे में ऐसे संबन्ध आज तक प्रकाश में नहीं आये हैं – होते ही नहीं हैं। ऐसे संबन्ध प्रकृति द्वारा प्रदत्त सृष्टि को निरन्तर आगे बढ़ाने के लिये पुरुष और स्त्री के नैसर्गिक संबन्धों को खुली अनैतिक चुनौती है। इसका पूरी शक्ति से विरोध होना चाहिए। उन अनैतिक शक्तियों को, जो इसे संवैधानिक जामा पहनाने की खुलेआम मांग कर रहे हैं को बेनकाब और ध्वस्त करने का समय भी आ गया है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला संविधान सम्मत, मानवाधिकार सम्मत, धर्म सम्मत, लोक सम्मत और सर्वजनहितकारी है। इस फ़ैसले के लिये सुप्रीम कोर्ट की जितनी प्रशंसा की जाय, कम होगी। जजों को कोटिशः बधाई। सभ्यता, संस्कृति, जीवन-मूल्यों और नैतिकता विरोधी ताकतों को आन्दोलन, जनजागरण और चुनाव के माध्यम से सबक सिखाना सभी हिन्दुस्तानियों का दायित्व और पुनीत कर्त्तव्य है।

6 COMMENTS

  1. Homosexuality is a social evil.We don’t find any evidence in nither sindhu civilization nor Vedas.this culture was completely come from western.

  2. श्री. विवेक वाघमारे जी की टिप्पणी पर –मेरा विचार।
    हिंदु संस्कृति के इतिहास से पता चलता है, कि, वह विकसनशील, और उत्क्रान्तिशील है।उसे किसी काल में बाँध कर और सीमित कर देखा नहीं जा सकता।उसने द्रौपदी के पाँच पति देखे हैं, वैसे दशरथ की तीन पत्नियाँ भी देखी है।इस लिए किसी ऐतिहासिक उदाहरण से ही, उसके किसी आचार की पुष्टि स्वीकार नहीं।
    इतना तो आपको भी मानना होगा, कि,
    (१) समलैंगिकता प्रकृति में परस्पर पूरक नहीं है।
    (२) जन्म दे कर वंश की श्रृंखला आगे बढाने का काम. समलैंगिकता नहीं कर सकती।
    (३) समलैंगिकों का जन्म भी समलैंगिकों उदर से नहीं होता।
    ==>(४)शोध चल रहे तो हैं, कि, समलैंगिक मानसिकता किस कारण से पैदा होती है? कुछ उत्तर दिए जा रहे हैं।
    (५) पर यह आंतरिक मानस की खोज होने से, आधुनिक विधाओं की सीमा के बाहर है।
    (६) क्या किसीके मन के विचारों को आप कोई उपकरण से जान सकते हैं? नहीं। यह (आज तो) असंभव है, आगे भी इसकी (मैं )अपेक्षा नहीं करता।
    ===>(७)प्रकृति में जो भी परस्पर पूरक प्रक्रियाएं हैं, वे ही टिकती और पनपती दिखाई देती है। फिर इसी कारण उनकी चक्रीय़ वृद्धि होती चली जाती है।
    (८) इसी लिए नर और नारी के लैंगिक संबंध का, विवाह के रूपमें स्वीकार हुआ है। उसको सुचारु रूपसे परम्परा में ढाला गया है।
    (९) “खजुराहो में चित्रित” होते हुए भी ऐसे समलैंगिक अपवादात्मक व्यवहार को समाज ने परम्परा बनाकर मान्यता दी नहीं थी। यह हमारी सामाजिक व्यवस्था का एक दृष्टिकोण है।
    (१०) कुछ विद्वान भी आज इसे हमारी जाति संस्था का सकारत्मक योगदान मानते है।

  3. समलैंगिकता १८६० तक भारतीय तथा हिन्दू संस्कृति का हिस्सा थी| आज भी खजुराहो के शिल्प कोई भी जाकर देख ले| कई समलैंगिक और जिन्हें किसी लैंगिकता के आधुनिक व्याख्या में नहीं बिठाया जा सकता ऐसी मुद्राएँ हैं| हिन्दू संकृति काफी प्रगल्भ और सर्वसमावेशक थी| यह तो मुस्लिम और अंग्रेजी राज्यकर्ताओंने उनकी संकुचित रेगिस्तानी खानाबदोश संस्कृति हमपे थोपी है|
    (एडमिन अगर जनतंत्र में विश्वास रखता है तो यह प्रतिक्रिया मान्य कर प्रदर्शित होने दे|)

    • वाह खूब ! कुतर्क की हद हो गई. कभी खजुराहो गए हैं आप? जिन तथाकथित मंदिरों की दीवारों पर ऐसे चित्र उकेरे गए हैं, उनमें पूजा नहीं होती है. हिन्दू धर्मावलम्बी किसी सिरफिरे द्वारा कला के नाम पर कुछ आपत्तिजनक चित्र बना देने से वह धर्म का अंग नहीं बन जाता. कृपया अपनी सोच में परिवर्तन लाइए. मुझे आश्चर्य होता है कि ऐसे घृणित काम का भी समर्थन करने वाले लोग हैं.

    • श्री. विवेक वाघमारे जी की टिप्पणी पर –मेरा विचार।
      हिंदु संस्कृति के इतिहास से पता चलता है, कि, वह विकसनशील, और उत्क्रान्तिशील है।उसे किसी काल में बाँध कर और सीमित कर देखा नहीं जा सकता।उसने द्रौपदी के पाँच पति देखे हैं, वैसे दशरथ की तीन पत्नियाँ भी देखी है।इस लिए किसी ऐतिहासिक उदाहरण से ही, उसके किसी आचार की पुष्टि स्वीकार नहीं।
      इतना तो आपको भी मानना होगा, कि,
      (१) समलैंगिकता प्रकृति में परस्पर पूरक नहीं है।
      (२) जन्म दे कर वंश की श्रृंखला आगे बढाने का काम. समलैंगिकता नहीं कर सकती।
      (३) समलैंगिकों का जन्म भी समलैंगिकों उदर से नहीं होता।
      ==>(४)शोध चल रहे तो हैं, कि, समलैंगिक मानसिकता किस कारण से पैदा होती है? कुछ उत्तर दिए जा रहे हैं।
      (५) पर यह आंतरिक मानस की खोज होने से, आधुनिक विधाओं की सीमा के बाहर है।
      (६) क्या किसीके मन के विचारों को आप कोई उपकरण से जान सकते हैं? नहीं। यह (आज तो) असंभव है, आगे भी इसकी (मैं )अपेक्षा नहीं करता।
      ===>(७)प्रकृति में जो भी परस्पर पूरक प्रक्रियाएं हैं, वे ही टिकती और पनपती दिखाई देती है। फिर इसी कारण उनकी चक्रीय़ वृद्धि होती चली जाती है।
      (८) इसी लिए नर और नारी के लैंगिक संबंध का, विवाह के रूपमें स्वीकार हुआ है। उसको सुचारु रूपसे परम्परा में ढाला गया है।
      (९) “खजुराहो में चित्रित” होते हुए भी ऐसे समलैंगिक अपवादात्मक व्यवहार को समाज ने परम्परा बनाकर मान्यता दी नहीं थी। यह हमारी सामाजिक व्यवस्था का एक दृष्टिकोण है।
      (१०) कुछ विद्वान भी आज इसे हमारी जाति संस्था का सकारत्मक योगदान मानते है।

  4. Osho ne samlaingikta को मानव समाज के लिए khatarnak बताया था .इस सम्बन्ध में ईसाई मठों म व्याप्त madhyakaleen यूरोप के बारे में भी कहा था jiske लिए ईसाई समुदाय उनसे नाराज हो गया था.एड्स के खतरों के बारे में इसी samlaingikta को jimmevar सर्वप्रथम बताया था.
    bipin kumar sinha

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