जगदीश्वर चतुर्वेदी
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने दलतंत्र आज सबसे बड़ी चुनौती है। दलतंत्र की गिरफ्त से राज्य को मुक्त कराने के नाम पर चुनाव जीतकर आने के बाद भी उन्हें दलतंत्र से राज्य प्रशासन को मुक्त कराने में सफलता नहीं मिली है। विगत डेढ़ साल की मंत्रीमंडल की कार्यप्रणाली यह मांग कर रही है कि ममता बनर्जी मंत्रीमंडल में फेरबदल करें। राज्य प्रशासन को दलतंत्र की मानसिकता से मुक्त करें। ममता के करीबी सूत्र बताते हैं वे दलतंत्र को तोड़ना चाहती हैं लेकिन उनके दल के लोकल क्षत्रप दलतंत्र के ढ़ांचे को राज्य प्रशासन का सिरमौर बनाए रखना चाहते हैं। हाल ही में केन्द्र सरकार से समर्थन वापसी के बाद केन्द्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा देकर आए सात मंत्रियों को जिस तरह राज्य के विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री के ऊपर सलाहकार बनाया गया है उससे यह साफ नजर आ रहा है कि ममता बनर्जी को लोकल क्षत्रपों ने घेर लिया है।
यह सच है कि ममता अपने दल की निर्विवाद नेत्री हैं,लेकिन उससे भी बड़ा सच यह है कि वे लोकल नेताओं से बेहद डरी हुई हैं। लोकल नेताओं के दबाब के कारण वे कठोर प्रशासनिक फैसले नहीं ले पा रही हैं। आज ममता के अंदर लोकल नेताओं को लेकर जिस तरह का भय है वैसा भय पहले कभी नहीं देखा गया। वे अपने ही लोगों से डरी हुई हैं और प्रशासनिक स्तर पर रद्दोबदल के लिए कठोर फैसले नहीं कर पा रही हैं। लोकल क्षत्रपों के दबाब के चलते ही पिछले सप्ताह ममता सरकार ने एक विलक्षण फैसला लिया । केन्द्र सरकार से इस्तीफा देकर आए सातों केन्द्रीय मंत्रियों को राज्य के विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री के ऊपर सलाहकार बनाया गया है।
ममता बनर्जी के नए फैसले के अनुसार पूर्व केन्द्रीय रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को राज्य पर्यटन मंत्रालय में सलाहकार बनाया गया है, इसी तरह पूर्व केन्द्रीय रेलमंत्री मुकुल राय को परिवहन मंत्रालय, पूर्व केन्द्रीय शहर विकास राज्यमंत्री मंत्री सौगत राय को उद्योग एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय,पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री सुदीप बंद्योपाध्याय को शहरी विकास मंत्रालय,पूर्व केन्द्रीय पर्यटनमंत्री सुल्तान अहमद को राज्य अल्पसंख्यक मंत्रालय ,पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण राज्यमंत्री शिशिर अधिकारी को राज्य के ग्रामीण विकास मंत्रालय और पूर्व केन्द्रीय सूचना-प्रसारण राज्यमंत्री सीएम जटुआ को सुंदरवन मंत्रालय में सलाहकार बनाया गया है।
जानकारों का मानना है कि केन्द्र से मंत्रीपद छोड़कर आए सातों मंत्रियों के मन में कहीं न कहीं असंतोष है और उनके असंतोष को शांत करने के लिए यह फैसला लिया गया है। इस फैसले का एक अर्थ यह भी हो सकता है कि मौजूदा राज्यमंत्रियों के कामकाज से ममता बनर्जी असंतुष्ट हैं और वे इन मंत्रालयों में स्थितियों को अपने अनुरूप विकसित होते नहीं देख पा रही हैं और इससे परेशान होकर ही उन्होंने यह फैसला लिया हो। लेकिन नौकरशाही परेशान है कि एक मंत्रालय में पहले से ही मुख्यमंत्री और मंत्री का दबाब था अब सलाहकार का दबाब रहेगा,ऐसे में किस नेता की मानें ,इसे लेकर विभ्रम बना हुआ है।इसके अलावा इन सातों सलाहकारों को ऑफिस,सचिव,पगार आदि की सुविधा भी दी गयी है।
ममता के करीबी सूत्रों का मानना है कि जिन नेताओं को सलाहकार बनाया गया है वे अधिकतर समय दिल्ली में अपने मंत्रालय के ऑफिस तक नहीं जाते थे। पूर्व रेलमंत्री मुकुल राय तो कभी दिल्ली गए ही नहीं यही हाल बाकी मंत्रियों का था। ऐसी स्थितियों में यह कहना कि इन सातों नेताओं के केन्द्रीयमंत्री के रूप में अनुभव का लाभ उठाने के लिए उनको सलाहकार बनाया गया है ,सही नहीं लगता। सवाल यह है कि जब मंत्री हैं तो उनके ऊपर सलाहकार को क्यों बिठाया गया ?अफसर किसके प्रति जबाबदेह होंगे ? संवैधानिक पद के प्रति या असंवैधानिक पद के प्रति ? शंका व्यक्त की जा रही है कि इससे प्रशासनिक स्तर पर अराजकता और भी बढ़ेगी।दलतंत्र का हस्तक्षेप बढ़ेगा । आमलोगों के हित में जल्दी फैसले लेने में असुविधा होगी। उल्लेखनीय है कि देश में कहीं पर भी मंत्रियों के ऊपर सलाहकार बिठाने का चलन नहीं है।
अराजक राजनीति हमेशा अवैध सत्ताकेन्द्र के जरिए संचालित होती है। इसे समानान्तर सत्ता केन्द्र भी कहते हैं। यह कॉकस की तरह काम करता है और इसकी लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली में कोई दिलचस्पी नहीं होती। अराजक राजनीति की जितनी घोषणाओं में रूचि होती है उतनी घोषणाओं के कार्यान्वयन में दिलचस्पी नहीं होती। मंत्रालयों में काम कम होता है मीडिया इवेंट ज्यादा होते हैं। सामाजिक –आर्थिक विकास की चिन्ता कम होती है और सारहीन मसलों पर एक्शन ज्यादा होते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में यदि ममता सरकार को देखें तो पाएंगे कि राज्य सरकार ने अराजक-दिशाहीन राजनीति का एक चक्र पूरा कर लिया है। मसलन् आज स्थिति यह है कि विगत 16 महिनों में भवन निर्माण के क्षेत्र में मात्र तीन प्रकल्पों को मंजूरी दी गयी है इनमें दो प्रकल्प राज्य के मंत्री की जमीन पर बन रहे हैं और एक प्रकल्प अन्य कंपनी का है।
यही स्थिति सॉल्टलेक स्थित सेक्टर पांच के आईटी इलाके की है। वहां सैंकड़ों बड़ी-बड़ी इमारतें आधी-अधूरी अवस्था में हैं। इन इमारतों के मालिक इनको पूरा करने के मूड में नहीं हैं। इन इमारतों के निर्माण का काम ममता सरकार आने के बाद से ठप्प पड़ा है। इनके मालिकों का कहना है कि इन इमारतों को यदि बना दिया जाएगा तो इनका उपयोग कौन करेगा ?
ममता सरकार आने के बाद आर्थिकक्षेत्र में कोई नया निवेश नहीं आया है इसके अलावा सेक्टर पांच से कंपनियां टैक्स ढ़ांचे के दबाब के कारण धीरे-धीरे अपना धंधा समेटकर जाने की तैयारियां कर रही हैं और राजारहाट में जो रौनक वामजमाने में आई थी वह भी खत्म हो गयी है।इस इलाके में विकास का काम पूरी तरह ठप्प पड़ा है और अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है। राज्य सरकार ने 9.19फीसदी की ब्याजदर पर कर्ज उठाया है। बैंक से ओवरड्राफ्ट और कर्ज से सरकार के खर्चे चल रहे हैं। करवसूली के मामले में राज्य पिछड़ गया है।
ममता उस कटी पतंग की तरह हे जिसको भविष्य के कूड़ेदान में भी जगह नसीब नहीं होगी . ममता वह काठ की हांडी हे जो -चढ़े न दूजी बार……
लेखक अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और वामपंथी दिशाहीनता के चलते ममता का विरोध करते दिखाई पड़ते हैं.ममता को सबसे बड़ी समस्या राज्य प्रशाशन के पिछले पैंतीस वर्षों के वामपंथी शाशन के दौरान हुए घोर राजनीतिकरण से ही आ रही है. जो अपनी वामपंथी प्रतिबद्धता के कारन अभी तक ममता को न तो सहयोग दे रहा है और न ही लोक कल्याणकारी कार्यों को लागू होने दे रहा है.