संस्कृत अध्ययन अनिवार्य ?लन्दन की एक शाला में ?

4
406

sanskritamडॉ. मधुसूदन

प्रवेश

ॐ -एक लन्दन की शाला में, संस्कृत अध्ययन अनिवार्य।

ॐ- वे संस्कृत पर अधिकार भी जता रहें हैं।

ॐ- कहते हैं : देवनागरी लिखने से उंगलियों की लचक बढती है।

ॐ-संस्कृत अध्ययन से, गणित, विज्ञान और भाषाएँ सीखना सरल।

ॐ-संस्कृत उच्चारण से मस्तिष्क के दोनो गोलार्ध उत्तेजित। (Cerebral Dexterity)

ॐ- और जिह्वा की लचक बढा देता है।

ॐ-पर युरोपीय भाषाएँ बहुत मर्यादित हैं।

 

(१) संस्कृत अध्ययन अनिवार्य

एक शाला ने संस्कृत अध्ययन अनिवार्य कर दिया है। एक, दो नहीं, पर पूरे छः वर्ष, संस्कृत की पढायी प्रत्येक छात्र के लिए अनिवार्य हो गयी है। जिस शाला की बात कर रहा हूँ, वह भारत की शाला नहीं है। तो फिर कहाँ की है? यह शाला है, लन्दन की। लन्दन के मध्य में एक ब्रिटीश शाला ने, संस्कृत का अध्ययन अनिवार्य कर दिया।

 

(२)ऐसा क्यों ?

लन्दन के मध्य में जिस ब्रिटीश शाला ने, संस्कृत अध्ययन अनिवार्य कर दिया है; उस शाला के संस्कृत विभाग के प्रमुख है , श्री. वॉरविक जेसॉप। संस्कृत अध्ययन अनिवार्य क्यों किया गया है? तो वॉरविक जेसॉप बोले, कि, संस्कृत अध्ययन के कारण, गणित, विज्ञान और अन्य भाषाओं का आकलन सरल हो जाता है।

वे कहते हैं, कि संस्कृत, यह विश्वकी पूर्णातिपूर्ण, और तर्क शुद्ध भाषा है।

(३) उसपर किसी का एकाधिकार नहीं

आगे कहते हैं, कि, किसी भाषा बोलने वालों का उसपर एकाधिकार नहीं माना जा सकता, क्यों कि उसका नाम किसी भी भाषा बोलनेवाले समूह से जुडा नहीं है। कहते हैं, कि, सचमुच ’संस्कृत’ का अर्थ तो होता है, संस्कारित की गयी भाषा, परिपूर्ण भाषा; जो रची गयी है, गढी गयी है। अन्य भाषाओं के नाम विशिष्ट समूह से जुडे होते हैं; जैसे जर्मन देशकी जर्मनी, अरबों की अरबी, जापान की जापानी, फ्रान्स की फ्रान्सीसी, इत्यादि। पर “संस्कृत” नाम से अर्थ होता है, एक संस्कारित की गयी भाषा “ideally made up Language” आदर्शवत बनायी गयी भाषा। उसपर किसी (देश) का एकाधिकार नहीं माना जा सकता।

(४) पॉल मॉस, शाला के हेडमास्टर

पॉल मॉस, जो, इस शाला के हेडमास्टर है, कहते हैं; कि, देवनागरी लिपि में लिखने का अभ्यास , बालक की उंगलियों की लचक बढाने में सहायता करता हैं। इस प्रकार का व्यायाम, एक कलाकार की भाँति उस की अंगुलियों पर संस्कार करता है। देवनागरी अक्षरों पर जब घोट घोट कर को लिखने का अभ्यास किया जाता है, तो उंगलियों की अकड धीरे धीरे कोमलता में परिवर्तित होती है। और साथ साथ, संस्कृत उच्चारण का अभ्यास, जिह्वा की लचक भी बढा देता है। ऐसा ध्वन्यर्थक उच्चारण मस्तिष्क के दोनो गोलार्धों को उत्तेजित कर व्यक्ति को निपुण चिन्तक बनाने में भी सहायक होता है।

 

(५) युरोपीय भाषाओं की मर्यादा

पॉल मॉस आगे कहते हैं, कि, आज की युरप की भाषाएं बोलने में जिह्वा और मुख विवर के बहुतेरे भागों का प्रयोग ही नहीं करती। यह उन की सीमा-मर्यादा है। ऐसी सीमा को देवनागरी और संस्कृत भाषा पार कर गयी है, यह कोई साधारण-सा गुण नहीं है। उसी प्रकार लिखने में उंगलियों का विविध वलयांकित हलन-चलन, का प्रयोग जो देवनागरी लेखन में किया जाता है, वह भी युरोपीय लिपियों में अपवादात्मक ही जान पडता है।

पाठक भी, यदि विचार करे, तो उक्त कथन को सही ही पाएंगे। अब, जो बंधु रोमन लिपि मे हिंदी पठन-पाठन का आग्रह रखते हैं, उन्हें भी इस जानकारी से विश्वास हो जाएगा। आप भी यदि, कुछ अक्षरों को लिख कर देखें, तो विश्वास दृढ ही होगा। जैसे क और K, म और M, ल और L, ह और H, जहाँ रोमन अक्षर केवल रेखाओं से ही काम चला लेते हैं, वहाँ देवनागरी में घुमावदार या वलयांकित अंशों का प्रयोग होता है। ॐ की तो बात ही अलग है।

ख, घ, ङ, च, छ, झ, ञ, ठ, ढ, ण, त, थ, द, भ, ष इन १५ अक्षरों को तो रोमन में, लिखा भी नहीं जा सकता।

 

(६)बॅरिस्टर, लिऑन मॅक्लॅरेन

लिऑन मॅक्लॅरेन नामक बॅरिस्टर, जो स्वतः वास्तविक रीति से एक दार्शनिक ही थे, उन्हों ने सेन्ट जेम्स स्कूल्स की स्थापना १९७५ में की थी। इस शाला में, संस्कृत की पढाइ, छः वर्ष के लिए अनिवार्य रखी गयी।बिना छः वर्ष अनिवार्य (compulsory) संस्कृत सीखे कोई इस शाला से उत्तीर्ण हो ही नहीं सकता। इस शाला में, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक ऐसे प्रत्येक अंग का विकास आवश्यक मान कर, उस पर, विशेष ध्यान दिया जाता है।

मेरी(लेखक की) पीढि भी शाला में केवल चार वर्ष ही स्वैच्छ्कि चुनाव से संस्कृत पढी है। पर इस लन्दन की शाला ने तो चमत्कार ही कर दिया, कि, उसने, हमसे भी बढ कर, ६ वर्ष के लिए संस्कृत पढाई को स्वैच्छिक न रखकर अनिवार्य ही कर दिया।

 

(७)अद्वैत वेदान्त से प्रभावित

इस शाला का भोजन भी पूर्णतया शाकाहारी ही होता है।

और अनेक फिलॉसोफी(दर्शन) के पाठ्य क्रम भी, अद्वैत वेदान्त से प्रभावित है।

.उत्तर भारत के शंकराचार्य, श्री शांतानंद सरस्वती, महर्षि महेश, और अद्वैत वेदांत इत्यादि हिंदू दर्शन और दार्शनिकों से मॅक्लॅरेन प्रभावित हैं।

(८) प्राचीनतम संस्कृत लातिनी,ग्रीक की अपेक्षा पुरानी

वॉरविक जेसॉप, जो, गत २० वर्षों से संस्कृत पढा रहें हैं; कहते हैं, कि, “प्राचीनतम संस्कृत लातिनी और ग्रीक से भी पुरानी है।” “Sanskrit in its most ancient form predates both these (Latin and Greek) languages.”

“अंग्रेज़ी सहित, अमरिका से लेकर आईसलॅण्ड और आगे बंगाल तक बोली जाने वाली सारी भारोपिय भाषाएं संस्कृत से निकली हुयी है।”

“Sanskrit is the culmination of millennia of endeavor to refine speech and thought so that the human race can aspire to the heights of civilization and fathom the depths of philosophical profundity.”

संस्कृत, हज़ारो वर्षों की भाषा के परिमार्जन, परिष्कृति और परिशुद्धि की प्रखर तपस्या का चरम बिन्दू है। जो विचार को उसकी समस्त सूक्ष्मता सहित व्यक्त कर सकने के लिए रची गयी थी। मानव जाति ऊंची उठकर गगन को चूमे, और दार्शनिक गहराइयों की थाह ले सके, इस लिए हजारों वर्षों की प्रखर परिष्कृति और तपस्या से प्राप्त उपलब्धि संस्कृत है।

(९) संस्कृत सर्वोच्च शिखर

संस्कृत वह सर्वोच्च शिखर है, जिसे प्रचंड प्रज्ञावान ऋषियों की परम्परा ने हजारों वर्षों के कडे परिश्रम से सहेतु सचेत होकर परिशुद्ध किया है।पाणिनि इस परम्परा की अंतिम कडी थे। वे अपनी अष्टाध्यायी में उनके पहले ६४ वैयाकरणी हुए थे, ऐसा विधान करते हैं। अब ६४ वैयाकरणियों के योगदान से जो भाषा परिष्कृत हुयी है, उसमें कितने वर्ष लगे होंगे? कुछ अनुमान कीजिए।ऐसी भाषा हमें धरोहर के रूपमें मिली हुयी है। हनुमान जी ९वें वैयाकरणी माने जाते हैं। इन सभी वैयाकरणियों ने संस्कृत के परिमार्जन, परिष्कृति में अपना योगदान दिया था, और उसे पूर्णातिपूर्ण बनाया था। यही प्रमुख अंतर है, संस्कृत में और अन्य आधुनिक भाषाओ में।

(१०) सबसे अति महत्वपूर्ण पहलु

सबसे अति महत्वपूर्ण पहलु यह है, कि, इस भाषा के कारण, आप वैश्विक सच्चाइयों की ऊंचाई तक पहुंच पाने का अवसर पाते हैं।

कुछ मॅक्स मूलर के सिद्धान्त मानने वाले पुराने विचार के लोग कहते हैं, कि कोई संस्कृत जैसी काल्पनिक भाषा संस्कृत की माता थी। अब इस सिद्धान्त का कोई अर्थ नहीं रहा, क्यों कि आज तक ऐसी कोई भाषा ढूंढ नहीं पाए हैं। एक कपोल कल्पित कथन, जिसका अस्तित्त्व आज तक प्रमाणित नहीं हुआ, उस को कब तक ढूंढते रहोगे? ऐसा कहना है, इन विद्वानों का। कहा जा सकता है, कि, यह वैसा ही तर्क है, जैसे कोई किसी गौ के अस्तित्व की बात प्रमाणित करने के लिए कहे, कि गौ तो आयी थी घास खा कर चली गयी। अब न घास है, न गौ है। बुद्धूं बनाने के लिए कुछ और कहानी बनाकर लाइए। अब हम भी आपकी चतुराई जान गए हैं।

(११) संस्कृत सर्वाधिक छात्र-प्रिय विषय (Most popular Subject)

संस्कृत हमारा एक सर्वाधिक छात्र-प्रिय विषय है।

जब से NASA के रिक ब्रिग्स ने संस्कृत की प्रशंसा में कहा कि, संस्कृत आप के लिए, एक विशाल और उन्मुक्त करने वाले आध्यात्मिक साहित्य का द्वार खोल देती है। फिर उस आध्यात्मिकता में आप सरलता से प्रवेश कर सकते हैं। तब से पश्चिमी शालाओ में भी कभी नहीं था, वैसा उत्साह दिखाई देता है। कुछ और स्रोतों से पता चला कि, इंग्लैण्ड और अन्य पश्चिमी युरप के देशों में प्रायः ८० शालाएं, संस्कृत का पाठ्य क्रम लागू कर चुकी हैं।

अपनी श्रेष्ठतम समृद्ध धरोहर के ’अधिकारी’ हम कब वापस लौटेंगे? और कब हम अपना अधिकार जताएंगे?

4 COMMENTS

  1. हाँ लन्दन के सेंट जेम्स स्कूल में संस्कृत अनिवार्य विषय है । सुना है कि वहाँ वैदिक गणित भी पढ़ाई जाती है ।
    विदेशियों ने हमारी देववाणी और देवनागरी के द्वारा प्राप्त होने वाले अनुपम लाभों को ज्ञात कर उनको अपना लिया है , जब कि हम भारतीय अपने ही देश में उनको लगभग भूल बैठे हैं । कुछ संस्कृत के प्रेमी विद्वान देववाणी के प्रचार और प्रसार में जुटे हुए हैं।
    विदेशों में भी संस्कृत का पठन- पाठन हो रहा है ।

  2. आज योग और मेडीटेशन , शाकाहारी भोजन, क्रीमेसन, करमा सिद्धांत , गीता , संस्कृत अध्यन ,पाश्चात्य (पश्चिम /विदेसी ) कल्चर की आदत बन चुका है और बनता जा रहा है ।अब इन लोगो को कुछ शांती चाहिए ।भौतिकता से त्रस्त है ये लोग ।दूसरे तरफ मैकाले educated भारत मे रहने वाले कुछ भारतीय भौतिकता मे डूबे है । देश को बेचकर खा रहे है । जब व्यक्ति स्वार्थ मे अंधा हो जाता है तो उसको अच्छी बाते भी बुरी लगने लगती है ।कुछ NRI और कुछ नेक भारतीय भारत मे भारत माता के सम्मान की रक्षा और सुरक्षा मे निरंतर और सतत कार्य शील है।

  3. मधुसूदन जी की टिप्पणी ई – मेल से मिली:

    हमारी दोनों भाषाएँ, हिंदी और संस्कृत परस्पर जुडकर ही सम्पन्न होंगी। संस्कृत के बिना हिन्दी को पनपाना असंभव। संस्कृत से हिन्दी गर्भनाल की भाँति जुडी हुयी है।हिंदी संस्कृत की ज्येष्ठ(?)और श्रेष्ठ पुत्री है। अन्य प्रादेशिक भाषाएं आपस में बहनें हैं।संस्कृत उत्थान के साथ ही, हिंदी समृद्ध होगी। जितनी मात्रा में भारतीय जनसंख्या संस्कृत में शिक्षित होंगी, उतनी मात्रा में हिंदी सहित अन्य समस्त भाषाएँ भी, समृद्ध होंगी। इस सत्य को ओझल करने से ही समस्याएं खडी हो गई।
    सूत्र है, संस्कृत सिंचित हिंदी,सहित अन्य भाषाएँ।
    जिस से अन्य़ भाषाएं भी हिंदी से सरलता से जुड जाएगी।
    हिंदी परिशुद्ध,परिमार्जित,परिष्कृत होगी। उसका बाज़ारु रूप जाकर स्वरूप निखरेगा।

  4. विदेशों में भी संस्कृत के प्रति रूचि बढ़ रही है, यह देखना-सुनना जितना ही सुखद है, अपने ही घर में उपेक्षित संस्कृत को देखना उतना ही दुखद है|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here