आम की चटनी

                   aam ki chatni
आवाज़ आ रही खटर पटर,
पिस रहे आम सिलबट्टे पर|
                अमियों के टुकड़े टुकड़े कर ,
मां ने सिल के ऊपर डाले|
धनियां मिरची भी कूद पड़े,
इस घोर युद्ध में, मतवाले|
फिर हरे पुदेने के पत्ते,
भी मां ने रण में झोंक दिये|
फिर बट्टे से सबको कुचला,
सीने में खंजर भोंक दिये|
मस्ती में चटनी पीस रही,
बैठी मां सन के फट्टे पर|
पिस रहे आम सिलबट्टे पर|

आमों की चटनी वैसे ही ,
तो लोक लुभावन होती है|
दादा दादी बाबूजी को,
गंगा सी पावन दिखती है|
भाभी को यदि कहीं थोड़ी,
अमियों की चटनी मिल जाती|
तो चार रोटियों के बदले,
वह आठ रोटियां खा जाती|
भैया तो लगा लगा चटनी,
खाते रहते हैं भुट्टे पर|
पिस रहे आम सिलबट्टे पर|

चटनी की चाहत में एक दिन,,
सब छीना झपटी कर बैठे|
भैया भाभी दादा दादी,
चटनी पाने को लड़ बैठे|
छोटी दीदी ने छीन लिया,
भैया से चटनी का डोंगा,
इस खींचातानी में डोंगा,
धरती पर गिरा हुआ ओंधा|
चटनी दीदी पर उछल गई,
दिख रहे निशान दुपट्टे पर|
पिस रहे आम सिलबट्टे पर|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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