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आगरा का मनकामेश्वर मन्दिर

मनकामेश्वर मन्दिर

mankameshwar mandirडा. राधेश्याम द्विवेदी

मन्दिर की अवस्थितिः-
आगरा शहर के चारो दिशाओं के अद्भुत प्रसंगों को अपने में आत्मसात करते हुए यह पावन स्थल शहर के बीचोबीच में स्थित है। एक तरह से इस शहर की प्राचीन आवादी रावतपाड़ा के बीचोबीच यह मंदिर बना है। यह भी कहा जा सकता है कि इस पावन स्थल के कारण ही यहां श्रद्धालुओं ने अपनी बस्ती बसाई है। यहां से यमुना की धारा लगभग पौन किमी. है। भगवान शिव के दर्शन से मानव मात्र की सारी इच्छायें पूर्ण होकर मन को दिव्य शान्ति की अनुभूति होती है। इस दिव्य दरवार से कोई भक्त खाली नहीं जाता है। यहां कुछ परिवार तो नियमित दर्शन, पूजन तथा अपनी हाजिरी लगाते है। कई परिवार तो पीढ़ी दर पीढ़ी इन स्थानों से श्रद्धाापूर्ण जुड़े हंै।

एतिहासिक महत्व:-
एतिहासिक दृष्टि से भगवान शिव का कोई ओर छोर तो नहीं है। यद्यपि इस स्थान का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। इतिहासकार आगरा को 500 से 600 साल पुराना ही बताते हैं। परन्तु इस देवस्थान की स्थापत्य तथा मूर्ति कला का अवलोकन एवं परीक्षण करके पुरातत्वविद् डा. वकाउल हसन सिद्दीकी ने इस मंदिर व मूर्ति को 3000 वर्ष पुराना माना है। 1980 में तत्कालीन महंथ स्व. उद्धवपुरी ने उक्त पुराविद् को बुलाकर शिवलिंग की प्राचीनता का परीक्षण कराया था। इसके विपरीत आगरा के ख्याति प्राप्त इतिहासकार डा. आर्शीवादी लाल श्रीवास्तव ने आर्यो के आगमन से जोड़ते हुए इसे आर्यगृह का एक अन्य प्राचीन स्थान होने का अनुमान लगाया है।

पौराणिक महत्व:-
पौराणिक दृष्टि इस मंदिर का इतिहास लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पुराना हमें द्वापर युग की याद दिलाता है, जब भगवान शिव कैलाश पर्वत से इस स्थल पर आये थे। वह ब्रज मण्डल में अवतार लेने वाले भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहां से हर रोज निकलते थे। लौटकर आने पर यहीं विश्राम किया करते थे। यह पहले यमुना नदी का किनारा था और यह श्मसान भूमि थी। उन्होने सोचा था कि यदि श्रीकृष्ण को अपने गोद में लेकर क्रीडा करने को पाऊंगा तो यहां एक शिवलिंग स्थापित कर इस स्थल को चिरस्थाई बना दूंगा। परिणाम स्वरूप यहां शिवलिंग की स्थापना बाबा भोले ने की थी। जब बाबा गोकुल पहुंचे थे तो मैया यशोदा तो दूर से डर रही थी, परन्तु जब बालक कन्हैया ने संकेत दिया तो भगवान भोले ने दर्शन पाया था। यहां एक शिव लिंग स्थापित कर शिवजी ने यह संकेत किया था कि जो कोई इस मंदिर में उनके लिंग का दर्शन व पूजन करेगा उसकी सारी मनोकामनायें पूरा होगी। तभी से इसका नाम मनःकामेश्वर पड़ गया था।
आगरा का यह गौरवशाली इतिहास रहा है कि प्रेम के प्रतीक ताज महल की नगरी में एसे पौराणिक मन्दिर होने का गौरव प्राप्त हुआ है। अग्रवन के टीले पर बसे हुए इस नगर के चारो कोनो पर एक एक शिव मंदिर, उनके ग्यारहें अवतार रूद्र तथा भौरव नाथ आदि मंदिरों का निर्माण हुआ है। यहां नियमित तथा सप्ताहान्त बन्दी के दिन सोमवार को दर्शनार्थियों की भारी संख्या देखा जा सकता है। असाधारण वास्तुकला, अभिनव ले आउट तथा पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान यह बना हुआ है। शानदार डिजाइन, रंगीन परिदृश्य, मनोरंजक अक्षर, संगीतमय परिवेश, रंगमंच की सामग्री आदि सभी दुर्लभ सामग्रिया आदिं यहां मिलती है। यहां आने पर श्रद्धालुओं को शान्ति तथा दिव्यता का अनुभव होता है। यहां के शिवलिंग के ऊपर चांदी का आवरण लगा हुआ है। मंदिर में एक गर्भ गृह है। इसमें प्रभु का विग्रह भी है। पास में परिवार के अन्य सदस्यों की भी दिव्य मुर्तियां प्रतिष्ठापित हुई हैं। यहां पहुंचने के लिए सीढ़ियों से नीचे उतरना पड़ता है।
पूजा पद्धतियां:-
अन्य शिव मंदिर में दिन में चार बार आरती होती है जबकि इस मंदिर में पांच बार आरती होती है। प्रतिदिन सुवह ब्राह्म मुहूर्त में मंदिर का पूजा व सेवा कार्य शुरू हो जाता है। सुबह चार बजे मंदिर के कपाट खुल जाते हैं। मंदिर की साफ सफाई शुरू हो जाती है। इसी समय बाब को जगाने का क्रम ,अभिषेक मंगला आरती का दौर शुरू हो जाता है। सबसे पहले बाबा के ऊपर भस्म का लेपन होता है। यह गाय के शुद्ध उपलों की राख से भस्म बनायी जाती है।वैदिक अनुष्ठानिक विधि से इस प्रक्रिया में आधे घण्टे का समय लगता है। इसके उपरान्त आधे घंटे तक मंगला आरती की जाती है। उसके बाद षोडसोपचार से श्रृंगार किया जाता है। इसमें लगभग 45 मिनट का समय लगता है। तब तक नियमित श्रद्धालुओं का आगमन शुरू हो जाता है।
अभिषेक केे उपरानत भगवान तथा भक्त का मिलन होता है। अब नियमित पूजा करने वाले भक्त पूजन करते रहते हैं। इसके बाद आरतियों का क्रम शुरू हो जाता है। सुवह से शाम तक आठ बार आरती होती है। सवसे अंत में नौंवी शयन आरती होती है। यह शोडसोपचार प्रधान महन्थ जी स्वयं करते हैं। उनकी सहायता के लिए पुजारीगण भी सहयोग करते हैं। हर माह के प्रत्येक पक्ष में त्ऱयोदश को प्रदोष होता है। इस दिन दो आरती विशेष रूप से होती है। यह विशेष आरती भगवान शिव के एकादश स्वरूप की होती है। श्री मनःकामेश्वर प्रभु के श्रृंगार में आधे घंटे का समय लगता है जबकि सोमवार के श्रृंगार में लगभग ढ़ाई घंटे का समय लगता है।
सोमवार का विशेष आयेजन:-
प्रत्येक सोमवार को तो इस क्षेत्र में निकलना मुश्किल हो जाता है। यहां जाम की स्थिति बन जाती है। सुदूर से आने वाले भक्तों का सैलाब यहां देखा जा सकता है। मेला जैसा दृश्य हो जाता है। सावन तथा मलमास के महीने में यहां विशेष रौनक देखी जा सकती है। लोग गंगाजी से पैदल चलकर कांवर में जल लाकर यहां शिव जी को चढ़ाते है। महाशिवरात्रि का दिन भी यहां विशेष ही रहता है।
महाशिवरात्रि पर्व:-
यहां भगवान शिव का विवाह समारोह मनाया जाता है। भोले बाबा का दूल्हे के रूप में श्रृंगार किया जाता है। इस श्रृंगार का दर्शन के लिए भक्तों के भीड़ का पूरा रेला देखने को मिलता है। पूरे दिन मंदिर में जागरण होता है। बाबा के विभिन्न स्वरूपोंकी झांकियां बनाई जाती है। भक्त पूरे दिन और पूरी रात मंदिर में जागरण, और बाबा के विभिनन रूपों के दर्शन करते है। महाशिवरात्रि को अन्य मंदिरों में चार बार तो इस मनकामेश्वर मंदिर में पांच बार आरती होती है। महा शिवरात्रि का परायण अगली सुवह को होता है। इस मंदिर के चारो ओर राधा कृष्ण के मंदिर हैं। इसे देखने के लिए बहुत भारी संख्या में भीड़ होता है। मनकामेश्वर एक पीठ या अखाड़े की तरह सुविधा का उपभोग भी करता है। शैव सम्प्रदाय में इस पीठ का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है।
मंदिर में भारतीय परिधान धारण करने तथा चमड़े की बस्तुएं ना घारण करने की परम्परा है। यहां से 17 किमी. दूर इस मठ का समसाबाद रोड पर गांव दिग्नेर में एक अस्पताल एक विद्यालय एक गोशाला चलता है। यहां श्रीगिरिराज गोवर्धननाथजी के मंदिर का निर्माण चल रहा है। रावतपाड़ा में एक पूर्व नर्सरी स्कूल, एक होमियोपैथिक क्लीनिक, एक कम्प्यूटर शिक्षा केन्द्र एक धर्मशाला भी चलाया जाता है।

लखनऊ का मनकामेश्वर मन्दिर:-
आगरा के अलावा लखनऊ और प्रयाग में भी मनकामेश्वर मंदिर का बहुत ही पौराणिक तथा एतिहासिक महत्व रहा है। लखनऊ में गोमती नदी के तट पर यह मंदिर बना हुआ है। यह डालीगंज क्षेत्र में पड़ता है। यह गोमती नदी के बांये तट पर बहुत ही प्राचीन तथा सिद्ध शिव मंदिर है। कहा जाता है कि माता सीता को बन में छोड़ने के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने यहां रूककर भगवान शंकर जी की आराधना की थी। इससे उनके विछिप्त मन को शान्ति मिली थी। उसके बाद ही यहां इस मंदिर की स्थापनी की गई थी। यहां के महन्थ केशव गिरि थे। उनके ब्रहमलीन होने पर देव्यागिरि यह दायित्व निभा रहीं हैं।
गोमती नदी के किनारे बसे लखनऊ व इस मंदिर को रामायण काल से जोड़ा जाता है। यहां पर मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। जैसे ही भक्त इस परिसर में प्रवेश करता है इसे अद्भुत एवं दिव्य शान्ति की अनुभूति होती है। लोग यहां आकर विवाह संतान तथा धन प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं और भोले बाबा को प्रसन्न करके अपनी मनोकामना पूरी करते हैं। बाबा तो एक लोटा जल, बेलपत्र गंगा या गोमती जल से प्रसन्न होकर भक्तों को अपनी दया से अभिभूत करते हैं। आगरा की तरह इस मंदिर का श्रृगार भी अपनी विशिष्ट तरीके से ही किया जाता है। यहां भी भारी भीड़ होती है और इसके लिए प्रशासन को समय समय पर आवश्यक कदम उठाने पड़ते है।

प्रयाग का मनकामेश्वर मन्दिर:-
यह मंदिर प्रयाग किले के पश्चिम में यमुना नदी के तट पर बना हुआ है। यहां काले पत्थर का शिवलिंग और गणेश तथा नन्दी की प्रतिमायें हैं। यहां हनुमान जी की भव्य प्रतिमा तथा एक प्राचीन पीपल का पेड़ भी है। यहां कई विशाल बरगद के पेड़ और उनके नीचे मूर्तियां स्थापित हैं। यह प्राचीन शिव मंदिर इलाहाबाद के बर्रा तहसील से 40 किमी. दक्षिण पश्चिम में स्थित है। इसे भगवान राम के द्वारा स्थापित किया जाना बताया जाता है। यह शिवलिंग सुरम्य वातावरण के बीच एक 80 फिट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थापित है। यह भी कहा जाता है कि यह शिवलिंग 3.5 फिट जमीन के अन्दर भूमिगत है।

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