मनमोहन सिंह की अं‍तरिम उपलब्धि

सिद्धार्थ मिश्र”स्‍वतंत्र”

समाचार पत्रों में  प्रकाशित हालिया दो बड़ी खबरों ने हम सभी का ध्‍यान आकर्षित किया है । प्रथम मनमोहन सिंह जी की राज्‍यसभा चुनावों के  लिए नामांकन की तथा दूसरी भारतीय इतिहास की सबसे भ्रष्‍ट और बेशर्म सरकार द्वारा शासन के नौ वर्ष पूरे करने की । इन दोनों खबरों में निहित सार क्‍या है  ? स्‍पष्‍ट है कि ये दोनों ही खबरें कहीं न कहीं डाक्‍टर मनमोहन सिंह जी की अक्षमता प्रकट करती हैं । एक लोकप्रिय राजनेता के रूप में एक संप्रभु राष्‍ट्र के मूक-बधिर मुखिया के रूप में । क्‍या ऐसा नहीं है ? हां जहां तक मनमोहन जी की उपलब्धि का प्रश्‍न है तो निश्चित तौर पर तमाम विवादों एवं जलालत के बाद उनकी अंतरिम उपलब्धि है सत्‍ता में बने रहना । उनके इस अदम्‍य चरित्र को देखकर मुझे एक गंवई कहावत याद आ रही है –

लात जूता सहब,बरियार होके रहब ।

अर्थात तमाम विवादों एवं मिट्टी पलीद के बावजूद समस्‍त नैतिकता को ताक पर रखकर सत्‍ता में बने रहना । वाकई इस कला में मनमोहन जी ने अब तक के सबसे भ्रष्‍ट राजनीतिज्ञों को भी मात दे डाली  है । उनकी इस कला के मूल में है उनके नौकरीपेशा होने के संस्‍कार । इन्‍ही संस्‍कारों के बलबूते पर ही उन्‍होने देश की बरबादी की ये दासतां पूरे नौ वर्ष लिखी है । ये मेरे निजी विचार नहीं हैं । आपको अभी कुछ दिनों पूर्व कांग्रेस के दिग्‍गज दिग्‍विजय सिंह का बयान याद होगा,अपने बयान में उन्‍होने सत्‍ता के दो केंद्र होने की बात को स्‍वीकार किया था । इस परिस्थिती में हमें मनमोहन जी की सत्‍ता संचालन में  भूमिका का स्‍पष्‍ट रूप से पता चलता है । शायद इसीलिए उन्‍हे डमी पीएम और कमजोर प्रधानमंत्री की उपमाओं से विभूषित किया गया है । बहरहाल साक्ष्‍य भले ही उनके मुंह पर कोयले की कालिख पोतें उन्‍हे क्‍या फर्क पड़ता है । वो तो नौकरी का साथ निभाते चले जा रहे हैं और वो भी पूरी ईमानदारी से । शायद यही वजह है कि सत्‍ता का प्रथम केंद्र आज भी उनकी ईमानदारी की दुहाई दे रहा है ।

इन सबके अतिरिक्‍त उनकी अन्‍य उल्‍लेखनीय उपलब्धियां भी कम दिलचस्‍प नहीं हैं । प्रथम तो अपने इस पूरे कार्यकाल में अपना वरदहस्‍त सदैव दागियों एवं भ्रष्‍टाचारियों के सिर पर बनाए रखा । साक्ष्‍य भले ही कुछ और कहें किंतु मनमोहन जी की दृष्टि में तमाम दयानिधि मारन,ए राजा,सुरेश कलमाड़ी,पीजी थामस एवं उनके अत्‍यंत प्रिय पवन बंसल जी ईमानदार एवं स्‍तुत्‍य हैं । सही भी है आखिर ईमानदार आदमी ही ईमानदारी की कद्र कर सकता है । उनकी दूसरी उपलब्धि भी कुछ कम नहीं आंकी जा सकती है । अपनी इस उपलब्धि के बलबूते पर ही उन्‍होने भारत की वैश्विक छवि पर दोनों हाथों से कालिख पोती है ।कोयला अथवा कुछ और ये आप सोचिये । उनकी इस उनलब्धि के अंतर्गत आते हैं भ्रष्‍टाचार के कीर्तीमान । अरबों खरबों से भी ज्‍यादा के घोटाले जो आज ये पूर्णतया स्‍पष्ट कर देते हैं कि भारत गरीब देश नहीं है । इसके अतिरिक्‍त इस तमाम आपाधापी में हम मनमोहन जी का गरीबी हटाओ फार्मूला तो भूल ही गए हैं । याद आया ३२ रूपये में   अमीर बनाने का अद्भुत नुस्‍खा । ये नुस्‍खा वैश्विक स्‍तर पर मनमोहन जी और उनके काबिल साथियों के नाम पेटेंट करा देना चाहीए ताकी आने वाली पीढ़ियों को भारतीय विकास में उनके अमूल्‍य योगदान का पता चल सके ।

हां इन तमाम बातों के बीच एक बात और ध्‍यान रखीये कि मनमोहन जी हमारी संवैधानिक संस्‍थाओं एवं आम मतदाताओं के प्रति कत्‍तई जवाबदेह नहीं हैं । हों भी क्‍यों वो तो किसी विशेष की कृपा के बलबूते राज्‍यसभा की गुणा-गणित से सांसद बनते हैं । आप ही बताइये उन्‍हे प्रधानमंत्री बनवाने में इस देश की जनता जर्नादन की क्‍या भूमिका है ? अगर नहीं है तो वो बेवजह अपने मालिकों को नाराज क्‍यों करें ? यही तो है उनकी ईमानदारी जिसके कारण वे आज तक अपने संचालकों की आंखों का तारा बने हुए हैं । जहां तक प्रश्‍न है कैग और जेपीसी जैसी संस्‍थाओं का इसकी मनमोहन जी कोई परवाह नहीं करते । इस बात को प्रमाणित करने के लिए कहीं दूर जाने की आवश्‍यकता नहीं है अभी कुछ ही दिनों पूर्व कांग्रेसी प्रवक्‍ता मनीष तिवारी का बयान स्‍मरण कर लीजीए सब साफ हो जाएगा ।अपने इस बयान में उन्‍होने कैग अध्‍यक्ष विनोद राय  की  विश्‍वसनीयता पर ही सवालिया निशान लगा दिया था । ये सारी कार्रवाई किसके इशारे पर होती है हम सभी जानते हैं । सीधी सी बात है जिस संस्‍था को मालिक स्‍वीकार नहीं करते उसकी परवाह वे क्‍यों करें । रही बात न्‍यायपालिका की तो कुर्सी बने रहने तक वो भी विवश है । अब आप चाहे लाख तोते की वकालत करो लेकिन पिंजरे में रहने वाला तो पिंजरे की ही वकालत करेगा न । वकालत भी इतनी पुरजोर की सामने वाले के हाथों के तोते ही उड़ गए । जहां तक जनता का प्रश्‍न है तो वैसे भी आम जन का दिल तो वैसे भी तोते तोते हो ही गया है  । इस सबके बीच इस कड़े कंपटीशन के दौर में नौ वर्ष में कुर्सी बचाने का जश्‍न तो बनता ही है न बास……….. एंड द पार्टी कंटीन्यूज ।

 

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