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मार्कण्डेय : जीवन के बदलते यथार्थ के संवेगों का साधक - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
-अरुण माहेश्वरी ‘निर्मल वर्मा की कहानियों में लेखकीय कथनों की एक कतार लगी हुई है। जहां जरा-सा गर्मी-सर्दी लगी कि कमजोर बच्चों को छींक आने लगती है। यदि और सफाई से कहें, तो जैसे रह-रह कर बैलगाड़ी के पहिये की हाल उतर जाती है, ठीक वैसे ही, पात्र जरा-सा संवेदनात्मक…