हाँथी जी की शादी थी,
दिन महज बचे थे चार|
दरजी ना कर पाया था,
उनके कपड़े तैयार|
बीमारी से दरज़ी की,
माता जी थीं बेहाल|
ऊनकी दवा कराने दर्ज़ी
चला गया भोपाल|
बिना सूट के कैसे होगी,
शादी,गज घबराया|
सभी जानवरों को उसने,
रो रो कर हाल सुनाया|
बड़े बुज़ुर्गों ने आपस में,
सहमति एक बनाई|
नये तरीके से सज कर,
जायेंगे हाथी भाई|
सभी जानवरों ने हाथी को,
पत्तों से ढकवाया|
रंग बिरंगे फूल सजा कर,
दूल्हा उसे बनाया|
हाथी जी की सुंदर वरदी,
हथिनी जी को भाई|
दौड़ लगा कर दूल्हे जी को,
वरमाला पहनाई|
रुद्र श्रीवास्तव