मातृत्व अवकाश : महिलाओं से भेदभाव क्यों

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maternity  leaveकिसी भी समाज में बड़े बदलाव उस समाज में महिलाओं की स्थिति और उनकी सामाजिक प्रगति के साथ ही आते हैं | विकासशील से विकसित राष्ट्र की तरफ अग्रसर भारत अपनी शिक्षा व बुनियादी ढांचे में लगातार सुधार करता जा रहा है | परन्तु जहाँ तक महिलाओं के विकास का प्रश्न है, भारत विश्व के कई देशों से पीछे है | यही कारण है कि आज स्वतंत्रता के 66 वर्षों बाद भी अपनी महिलाओं को बचाने के लिए हमें “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे कार्यक्रम चलाने पड़ रहे हैं | भारतवर्ष के अधिकतर राज्यों में लिंग अनुपात महिलाओं के विपरीत गिरता जा रहा है जोकि एक चिंता का विषय है |

विभिन्न किस्म के भेदभाव के अलावा मातृत्व अवकाश स्वीकृत करने के लिए भी महिलाओं के साथ पूरे भारतवर्ष में भेदभाव किया जा रहा है लेकिन महिलाओं के विकास व सुरक्षा की दुहाई देने वाली केन्द्रीय सरकार को इस विषय बारे कोई खबर नही | सरकारी क्षेत्र हो चाहे निजी क्षेत्र, हर क्षेत्र में महिलाओं के साथ इस विषय में समान व्यवहार नही हो रहा | दिल्ली महानगर जोकि देश की राजधानी है, जैसे क्षेत्र में भी महिलाएं मातृत्व अवकाश से वंचित रखी जा रही है और वो भी उस सरकार के तले जिसकी मानव संसाधन मंत्री स्वयं एक महिला है व जिसका मुख्यालय दिल्ली में है |

जो महिलाएं स्थाई तौर पर कार्यरत है उन्हें तो फिर भी मातृत्व अवकाश दे दिया जाता है परन्तु जो महिला कर्मचारी अस्थाई तौर पर या अनुबंध पर कार्यरत है उनको आज भी मातृत्व अवकाश से वंचित रखा जा रहा है | आज के समय में अधिकतर नियुक्तियां क्योंकि अस्थाई या अनुबंध पर की जा रही है, इसलिए महिलाओं के लिए घोर संकट आन पड़ा है | न तो वे अपने प्रबंधकों के खिलाफ कदम उठा पा रही हैं क्योंकि उनकी नौकरी अस्थाई है और न ही अपने जीवन और बच्चे के जीवन के साथ न्याय कर पा रही हैं | स्थाई  कर्मचारियों के समान कार्य करने के वाबजूद एक तो उन्हें वेतन कम दिया जाता है और दूसरी तरफ मातृत्व अवकाश जैसी कई बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा जाता है | इस प्रकार उनके “आगे खाई है तो पीछे कुआं”, जाएँ तो जाएँ कहाँ | आश्चर्य तो इस बात का है कि जो महिला शिक्षक दिल्ली लॉ फैकल्टी में मानवाधिकार व संविधान का पाठ बच्चों को पढ़ाती है वे स्वयं इस भेदभाव का शिकार हो रही है | यह उनकी मज़बूरी समझो या समय का तकाजा कि वे अपने अधिकारों की रक्षा करने में असमर्थ है अर्थात् “दिये तले अँधेरा” है |

लेकिन महिलाओं को यह समझ लेना चाहिए कि पुरुष प्रधान इस समाज में उन्हें अपने अधिकारों को  मांग कर नही बल्कि छीन कर लेना होगा | फैड्रिक एसिल हैनरी ने कहा है कि, “किसी देश के विकास का मापदंड इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश में बच्चों, महिलाओं व बुजूर्गों की स्थिति कैसी है |” इसलिए हमें यह समझना जरूरी है कि स्त्री जब एक बच्चे का पालन-पोषण करती है, तो वह देश की उन्नति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही होती है | यकीनन शिशु को नौ महीने कोख में रखना बेहद जटिल प्रक्रिया है, जिससे माँ को प्रसव के पश्चात् आराम की जरूरत होती है | शिशु को जन्म देने के बाद उसका पालन-पोषण एक निरंतर परिश्रम व संयम का कार्य है | ऐसे में, अगर शिशु अपनी जन्मदात्री के पास न हो, तो क्या उसे इस देखभाल से वंचित किया जाना स्वीकार्य होगा ? यह एक शिशु के व माता के मौलिक अधिकारों का हनन होगा | माँ तो मातृत्व अवकाश की हकदार होनी ही चाहिए, हाल में केरल उच्च न्यायालय ने तो यह अधिकार “सेरोगेट” माताओं या “किराय की कोख” वाली माताओं को भी प्रदान किया है | 2013 में चेन्नई उच्च न्यायालय ने भी ऐसा ही एक निर्णय दिया था | हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय ने नवंबर 2014 में हि.प्र. राज्य बनाम सुदेश कुमारी केस के एक अहम फैसले में यह कहा है कि  महिला कर्मचारी चाहे स्थाई हो या फिर अनुबंध पर हो, वह पूर्ण मातृत्व अवकाश की हकदार है | उन्हें इस सुविधा से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 41, 42 व 43 की उल्लंघना होगी |

इसी प्रकार का एक फैसला दिल्ली म्युनिसिपल कोर्पोरेशन बनाम फ़ीमेल वर्कर्स एवं अन्य (2000)3 SCC 224 में उच्चतम न्यायालय ने भी सुनाया है जिसमें स्पष्ट किया है कि मातृत्व अवकाश के लिए किसी भी महिला कर्मचारी के साथ इस आधार पर भेदभाव नही किया जा सकता कि वह अस्थाई तौर पर कार्यरत है या स्थाई तौर पर | न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि कोई भी महिला कर्मचारी चाहे वह स्थाई, अस्थाई, अनुबंध एवं एडहोक पर कार्यरत हो, मातृत्व अवकाश की एक समान हकदार होगी | कितनी विडंबना है कि ऐसी सरकार में जिसकी मानव संसाधन मंत्री स्वयं एक महिला हो, अपने मातृत्व अवकाश जैसे मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए महिलाओं को न्यायालय के चक्कर काटना पड़ रहे हैं | जबकि आधा दर्ज़न से ज्यादा आयोग दिल्ली में बैठे हैं फिर भी उनकी आँखें महिलाओं के प्रति हो रहे अन्याय को नही देख पा रही हैं |

अत: केन्द्रीय सरकार को चाहिए कि उपरोक्त न्यायालयों के फैसलों को आधार मान कर पूरे देश में एक जैसा प्रावधान करते हुए कामकाजी महिलाओं को एक समान मातृत्व अवकाश दिया जाने सम्बंधी आदेश जारी करें ताकि ‘माँ’ की परिभाषा के साथ न्याय हो सके व शिशु के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा  सके | तभी केन्द्रीय सरकार द्वारा संचालित कार्यक्रम “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का उद्देश्य भी फलीभूत हो पायेगा |

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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