भ्रष्टाचार के कीचड़ से सना है बसपा का हाथी

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डॉ आशीष वशिष्ठ

मई 2007 को यूपी विधानसभा चुनावों में बसपा को मिली अप्रत्याशित जीत ने राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों और विशलेषकों के सारे समीकरण और भविष्यवाणियों को झुठला दिया था। खुद बसपा सुप्रीमों मायावती को इस बात का अहसास नहीं था कि उनके खाते में इतनी बड़ी जीत आएगी और वो पूर्ण बहुमत सरकार की मुखिया बनेंगी। पूर्ण बहुमत की सरकार बनने से सूबे की जनता ने राहत की सांस ली की चलो कम से कम अब पांच साल तक राजनीतिक उठा-पटक और ड्रामेबाजी से तो राहत मिलेगी और विकास के थमे पहिये को गति और ऊर्जा मिलेगी। सूबे की जनता को मायावती से बहुत उम्मीद और आशाएं थी। आम आदमी की नजर में मायावती की छवि ईमानदार और सख्त प्रशासक की थी। जनता को ये अहसास था कि गठबंधन सरकार की मजबूरियों के कारण वो खुल कर सूबे की जनता के कल्याण और विकास के कार्य नहीं कर पायी थी और इस बार मायावती को पूर्णबहुमत मिला है और मायावती इस अवसर का सदुपयोग कर जनता के मध्य एक बेहतर छवि और छाप छोडेंगी लेकिन पिछले साढे चार साल के कार्यकाल में मायावती ने अपनी सख्त छवि तो लगभग मिट चुकी है और विकास की परिभाषा पार्क, मूर्तियों और स्मारकों के निर्माण तक ही सिमट गयी है।

 

प्रदेश में भ्रष्टाचार का भूत सिर चढ़ कर बोल रहा है। सरकार के आला मंत्री और जिम्मेदारी अफसर अपराध और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। उधोग-धंधे तबाही की कगार में खड़े हैं। सरकारी योजनाओं में सरे आम लूट मची हुयी है, दलित, महिलाएं, बुजुर्ग और किसान अत्यधिक परेशान है। बिल्डर, माफिया, ठेकेदार और दलाल प्रदेश में सक्रिय हैं, और सरकार सारे कानून, आदर्श, सिद्धान्त, नियमों को दरकिनार करके मनमर्जी और हठधर्मिता पर उतारू है। लबोलुआब यह है कि बसपा सरकार में भ्रष्टाचार चरमसीमा पर है और प्रदेश की जनता के हक और हकूक का पैसा सरकारी ऐय्याशी और मस्ती में खर्च हो रहा है। लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार एक तानाशाह की भांति व्यवहार कर रही है और जनता के दुख-दर्दे सुनने का फुर्सत किसी के पास नहीं है।

 

पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग के मुद्दे को जोर-शोर से प्रचारित करना शुरू कर दिया था। लेकिन जिस दलित और ब्राहम्ण के गठजोड़ ने मायावती को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका दिया था उस गठजोड़ के महत्वपूर्ण घटक ब्राहम्ण को बसपा सरकार में दिखावटी और सजावटी तौर पर सरकारी शेल्फों पर सजाया गया था। महत्वपूर्ण पदों पर मायवती ने अपने पुराने सिपाहसिलारों को ही बैठाया। शपथ लेने के साथ ही बसपा सरकार ने लूटपाट का सिलसिला शुरू कर दिया था। आबकारी पॉलिसी में परिवर्तन करते हुये माया सरकार ने सारे ठेके अपने चेहते शराब व्यवसायी को देकर जो भ्रष्टाचार की शुरूआत की थी वो आजतक बदस्तूर जारी है। आज सूबे में शराब उद्योग का लगभग भट्ठा बैठ चुका है सारा बिजनेस दो चार लोगों के बीच ही सिमट कर रह गया है। शराब की दुकानों पर मायावती टैक्स के नाम पर प्रिंट मूल्य से अधिक पैसे खुलेआम वसूले जाते हैं।

 

षराब उधोग के अलावा चीनी मिलों, कपड़ा मिलों और तमाम दूसरे उधोग धंधे बंदी की कगार पर पहुँच चुके हैं। माया सरकार ने औने पौने दामों में चीनी और कपड़ा मिले अपने चेहते को बेचकर अनोखी मिसाल कायम की है। माया को पूर्ण बहुमत मिलने पर सूबे की जनता के बीच यह उम्मीद जगी थी कि माया को स्पष्ट और पूर्ण बहुमत मिला है ऐसे में मायावती अधूरे पड़े विकास कार्यों को दुगनी गति और बिना किसी बाधा के पूरा करवा पाएगी। लेकिन मायावती और उनके सिपाहसिलारों के दिलों-दिमाग में जनसेवा की बजाय सूबे के खजाने को लूटने की योजनाएं ही थी। 2007 से लेकर अब तक मायावती सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसके सूबे की पूरी जनता माया सरकार को सराह सके। अपनी अधूरे सपनों और राजनीतिक रूप से अपने वोट बैंक और बसपा को स्थापित करने के लिये माया जो कुछ भी कर सकती थी उसने किया और येन-केन-प्रकरेण पार्टी का खजाना भरने में दिन-रात एक कर दिया। जिस कांशी राम के नाम से बसपा और मायवती के घर की रोटिया चलती हैं वो कांशीराम किसी जमाने में पुरानी खटारा जीप में घूम-धूमकर बसपा को स्थापित करने में खून-पसीना बहाते थे आज उसी बसपा के छोटे-मोटे नेताओं और कार्यकताओं के पास लग्जरी और विदेशी गाड़ियों की भरमार है।

 

यूपी में मनरेगा और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में मची धांधली ने तो भ्रष्टाचार के सारे नये-पुराने रिकार्ड तोड़ डाले हैं। सीएमओं स्तर के तीन अधिकारियों की हत्या सरकारी योजनाओं में धांधली और भ्रष्टाचार का ही डरावना रूप है। डीआईजी स्तर का अधिकारी सीधे तौर पर सीएम पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है नौकरशाह और दूसरे आला अधिकारी या तो शासन की हां में हां मिलाकर मोटी मलाई काट रहे हैं और जो ईमानदारी और साफ-सुथरे आचरण वाले हैं वो महत्वहीन पदों पर वनवास काट रहे हैं। विकास का काम पूरी तरह से ठप्प है। विकास के नाम पर जो कुछ भी पूरे सूबे में हो रहा है उससे जनता अनजान नहीं है। वोट बैंक और जात-पात की राजनीति की पोशक और हितेशी मायवती का पूरा ध्यान केवल अपने वोट बैंक पर है। सर्वजन के नारे और झण्डे बसपा में चाहे जितने लहराएं जाएं लेकिन असलियत यह है कि दूसरे दलों की तरह मायावती ने भी लगभग हर बिरादरी, कौम और जाति के नेता बसपा की राजनीतिक शेल्फ में सजावटी शोपीस से अधिक नहीं हैं।

 

माया सरकार ने अपनी सारी नाकामियों और अपने ऊपर लगे आरोपों के लिये सीधे तौर पर केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराकर अपने अपराधों और नालाकियों का ढकने का नाटक बखूबी किया है। लेकिन केंद्र से जो भी पैसा प्रदेश को मिला है उसका माया सरकार ने क्या किया उसको बताने की हिम्मत सरकार ने नहीं दिखी। मनरेगा में मची लूट की सीबीआई जांच से इंकार करना सरकार की बईमान नीयत को झलकाता है। सरकारी खजाने में मची लूट और भ्रष्टाचार से सूबे की जनता बहाल है। विपक्ष और आम आदमी की आवजा को कुचलने और दबाने के लिए सरकार ने नियम, कानूनों की धज्जियां और जमकर दुरूपयोग किया।

 

विकास की बजाय सरकार ओछी और घटिया राजनीति ही करती दिखी। दलित महानुभावों और संतों की श्रेणी में खुद को स्थापित करने के लिये मायावती ने जितनी ऊर्जा और पैसा खर्च किया है अगर उसका दस फीसदी भी प्रदेश के जनता पर खर्च होता तो तस्वीर में फर्क आ जाता। बसपा सरकार ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सरकार अपने दामन पर लगे दागों को चाहे राजनीतिक साजिश और नीचा दिखाने की कार्यवाही बताए लेकिन असलियत किसी से छिपी नहीं है। माया के शासन में छोटे-छोटे से काम के लिये जेब ढीली करने का रिवाज आम है। जिस तरह सरकार अपने चेहते औद्योगिक घरानों, ठेकेदारों, व्यवसायियों पर मेहरबान है वो सरकार की निष्पक्षता और चरित्र को उजागर करने को पर्याप्त है। सोनभद्र से नोएडा तक फैला जेपी ग्रुप का साम्राज्य और चड्डा ग्रुप का षराब व्यापार पर एकछत्र राज सारी कहानी को खुद-ब-खुद बयां करता है। प्रदेश में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनना महज एक संयोग और चमत्कार ही तो था। मायावती ने इसके लिये कोई खास पसीना या रणनीति नहीं बनायी थी। माया को इस बात का इल्म बखूबी है कि चमत्कार बार-बार नहीं होते। ऐसे में जो कुछ भी बटोरना है इस बार बटोर लो, क्योंकि ऐसा मौका दुबारा नहीं मिलने वाला। इसी नीति और नीयत के तहत माया सरकार ने सारी लाज, शर्म और कानून-कायदे एक-किनारे रखकर खुद तो जमकर लूटपाट की ही वहीं अपने चेहते व्यापारियों और दुमहिलाऊ अफसरों को भी करवाई। प्रदेश में लाखों करोड़ों रूपये की योजनाओं को चलाने का असली मकसद सरकारी खजाने को मिल बांटकर लूटने के अलावा कुछ और दिखाई नहीं देता है।

 

आज मायावती मुख्यमंत्री के पद पर आसीन है परिणामस्वरूप केंद्र सरकार और जांच एजेंसिया चाह कर भी उनकी कार्यकाल में हुये घपलों, घोटालों और भ्रष्टाचार की जांच कर पाने असहाय हैं। लेकिन जो ऊपर होता है उसे एक दिन नीचे भी आना होता है। और माया सरकार के लिये वो वक्त वो बड़ी जल्द आने वाला है। विधानसभा चुनाव दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं और चार सालों से भ्रष्टाचार और अपनी मूर्तियां लगवाने में व्यस्त रही मायावती ने चुनावी अस्त्र दागने शुरू कर दिये हैं। मुस्लिम समुदाय, गरीब सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण और जाट समुदाय को केन्द्र सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित करने की और चौथी अनुसूचित जाति-जनजाति का आरक्षण कोटा बढ़ाने की है। साढ़े चार वर्ष तक शासन करने वाली मायावती सरकार को अपने कार्यकाल के अन्तिम दौर में आखिर सामाजिक न्याय के इन सवालों पर दर्द इसलिए उभरा है क्योंकि चुनाव सिर पर हैं। जमीनी हकीकत और खुफियां रिपोर्ट सरकार के खिलाफ जनादेश का फरमान सुना रही है और मायावती इनसे अंजान नहीं है। आरक्षण और तमाम दूसरे सवाल और मुद्दे उठाकर मायवती सूबे की जनता का ध्यान भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था, किसान, दलित, महिलाओं और विकास से जुड़े तमाम मुद्दों से जनता का ध्यान बंटाना चाहती है। मायवती सरकार के कर्मों का लेखा-जोखा जनता के दरबार में होना है और यह देखना दिलचस्प होगा कि सूबे की जनता भ्रष्टाचार के कीचड़ से सने हाथी पर सवारी करना चाहेगी या नहीं।

 

डॉ आशीष वशिष्ठ

 

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