राष्ट्र के भीतर एक देश उगने के मायनें

संदर्भ: श्री श्री के आयोजन में सेना का सहयोग

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के अगुआ, अमेरिका के प्रथम उप राष्ट्रपति और दि्वतीय राष्ट्रपति एडम स्मिथ ने कहा था “ध्यान रहे लोकतंत्र चिरायु नहीं होता,यह शीघ्र चूक जाता है , थक जाता है और ख़ुद को क़त्ल कर लेता है. ऐसा कोई अब तक लोकतंत्र नहीं जिसने ख़ुदकुशी न की हो!” मैं इस कथन से पूर्णतः सहमत नहीं हूं किन्तु अतीव लोकतंत्र की नई उपजती मुक्त  अवधारणा के विरुद्ध तो हूँ ही!!
पिछले दिनों देश भर में यमुना का नाम जितना पिछले दशक भर में न लिया गया था उतना मात्र सप्ताह भर में रटा गया. विश्व भर के जानें मानें आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी के संस्थान द्वारा यमुना किनारे आयोजित एक विशाल, भव्य व गुरुतर कार्यक्रम के कारण यमुना के नाम पर इतनी चिंता व्यक्त हुई. सब कुछ शुभ ही हुआ, कार्यक्रम भी, कार्यक्रम पर हाहाकार भी, यमुना पर चिंता भी, सेना के योगदान पर प्रलाप भी और सेना द्वारा बनें पुल का अंततः सदुपयोग भी!!

अंततः जिस युग में हम रह रहें हैं उसमें अब प्रलाप का –जिसे विधवा विलाप भी कह सकते हैं- भी अपना महत्व हो गया है. कलयुग में हमारी सकारात्मक शक्ति बढ़ गई है हम नकारात्मक बातों से भी सकारात्मकता के राग गानें में सक्षम हो गए हैं!! कल्पना कीजिये कि यदि श्री श्री के कार्यक्रम में सेना द्वारा पुल बनाये जानें व यमुना के पर्यावरण का विषय अनर्गल प्रलाप के रूप में न उपजता तो ये चिंता के दो मुख्य विषय लगभग अछूते ही रह जाते!

श्री श्री आयोजन में सेना के उपयोग व उसके द्वारा दो पुलों को बनाये जानें की चर्चा करेन तो कहा गया कि सेना का क्या अब यही उपयोग रह गया है कि वह बाबाओं की सेवा करे, यह भी कहा गया कि इस अभियान से सेना का मारल डाऊन हो गया है, और यह भी कुप्रचारित किया गया कि सेना स्वयं को हतोत्साहित महसुस कर रही है. प्रश्न यह है कि सेना क्या केवल विदेशी आक्रमणों के समय देश की सीमाओं की रक्षा के लिए बनी है, या प्राकृतिक आपदाओं के समय देश के नागरिकों व भौतिक संपत्तियों की रक्षा के लिए बनी है?! तो फिर इससे भी बड़ा ब्रह्म प्रश्न यह है कि देश की सीमाएं, देश के संसाधन, देश के नागरिक जिसके लिए सेना बनी है ये सब किसके लिए बने हैं?- उत्तर एक ही है व स्वयंसिद्ध है – कि ये सब देश की निराकार किन्तु महाकार संस्कृति के लिए बनें हैं. कल्पना कीजिये कि यदि देश की सीमाएं सुरक्षित रहें, संसाधन फलते फूलते रहें, नागरिक समृद्ध होते रहें किन्तु देश की संस्कृति पर आक्रमण होते रहे और उसका ह्रास होते रहे तो ऐसा संस्कृतिहीन भूखंड(देश) किस काम का, आखिर हम तो देश नहीं अपितु राष्ट्र की अवधारणा वाले लोग हैं. श्री श्री के कार्यक्रम में सेना द्वारा पुल बना दिए जानें को लेकर छाती पीट-पीटकर रोने वाले बताएं कि यदि देश के भीतर ही एक पराये देश का निर्माण हो रहा हो तो देश की सेना क्यों न सीमाओं के भीतर  सांस्कृतिक अधिष्ठानों के कार्यक्रमों को सफल बनानें में सहयोग करती दिखलाई पड़े! श्री-श्री के कार्यक्रम की आलोचना के लिए कुछ मीडिया संस्थान तो बाकायदा सुपारी लिए दिखाई दिए थे. जिन्होनें कभी सेना व सेना के निराश्रित परिवारों व यमुना का कभी नाम न लिया था वे यमुना की कसमें खाते दिखलाई पड़ रहे थे. ऐसे प्रपंची, विखंडी, वितंडी, शिखंडी मीडिया कर्मियों और संस्थानों को जवाब देना चाहिए कि राष्ट्र की सीमाओं की  भीतर जो एक नए देश को जन्म देनें और आकार देनें का कार्य चल रहा है उस षड्यंत्र से कौन सी सेना निपट सकती है? इस कार्य के लिए तो श्री श्री जैसे गुरुओं की आध्यात्मिक सेना ही लगेगी जिसकी सेवा हमारी गौरवशाली सेना ने की है, और करती रहेगी. प्रपंची मीडिया जान लें और कान खोल कर सुन ले कि सांस्कृतिक राष्ट्र के भीतर कानूनी देश के उपजानें के षड्यंत्र को श्री श्री जैसे अनेकों संत व आध्यात्मिक शक्तियां ही रोक सकती हैं जो देवयोग से इस राष्ट्र में बड़ी संख्या में सक्रिय हैं. आस्ट्रेलिया, मेक्सिको के राष्ट्राध्यक्षों से इस प्रकार के विलक्षण कार्यक्रम उनके देशों में आयोजित किये जानें के लिखित आग्रह प्राप्त होनें के बाद तो कम से कम इन सुपारी हत्यारों को कुछ समझ आनी चाहिए थी! गत वर्ष केरल में पम्पा नदी के किनारे एक सप्ताह तक कई इसाई देशों आये हुए ईसाइयों का विराट सम्मेलन चला था तब कई हजार एकड़ में विकसित फसलों को नष्ट कर दिया गया था, तब ये तथाकथित सेकुलर, प्रगतिशील सुपारीबाज चुप क्यों थे?! आश्चर्य की बात तो यह थी कि तब पम्पा नदी के शुद्धिकरण व सफाई अभियान का दायित्व स्वयं श्री श्री ने उठाया था! यही नहीं बल्कि श्री श्री रविशंकर के ‘आर्ट आॉफ लिविंग फाउंडेशन’ ने कई समाप्ति की कगार पर पहुँच गई नदियों जैसे कर्नाटक की कुमुदवती, अर्कावती, वेदवती, पलार तथा तमिलनाडु में नगानदी तथा महाराष्ट्र में घरनी, तेरना,बेनीतुरा व जवारजा नदी को नया जीवन प्रदान किया है. श्री श्री रविशंकर स्वयं कहते हैं- ‘नदियों¨का पुनरुद्धार करना जीवन का पुनरुद्धार करने जैसा है.’

ग्रीस के प्रसिद्द संगीतकार यांन्नी ने ताजमहल के समक्ष यमुना किनाते 1997 में संगीत का विशाल कार्यक्रम आयोजित किया था तब सेना ने चार पुल बनाये थे तब भी इन तिकड़मी मीडिया संस्थानों के मूंह में दही जमा हुआ था. स्थिति निस्संदेह यही है कि हिन्दू संस्कृति के किसी आयोजन का नाम आते से ही ईन विदेशी धन के प्रवाह वाले व्यक्तियों, मीडिया संस्थानों, एनजीओ और भांडों के मूंह खुल जाते हैं. श्री श्री के सांस्कृतिक कार्यक्रम में जिसमे विश्व भर के 35 लाख नागरिक जुटे और जिनमें कई राष्ट्राध्यक्ष, राजनयिक, रक्षा विशेषज्ञ, मंत्री, सेनाधिकारी, संस्कृतिकर्मी, लेखक, कवि, चित्रकार आदि सम्मिलित थे में यदि सेना पुल नहीं बनाती तो भी यह कार्यक्रम संपन्न हो जाता इसकी बाह्य भव्यता कुछ प्रभावित हो सकती थी किन्तु इस तय मानिए कि इससे कार्यक्रम का अंतस, आंतरिक स्वरूप, आभा, औरा, ईश्वरीय लक्षणा व आकाशीय व्यंजना पर तनिक सा प्रभाव भी न पड़ता!!

बिकाऊ मीडिया द्वारा श्री श्री के कार्यक्रम में सेना के उपयोग पर छाती पीटने वाले और पानी पी-पीकर कोसनें के बाद आध्यात्मिक शक्तियां बकौल नीरज यह विचार अवश्य करें कि –

फूल बनकर जो जिया , वो यहाँ मसला गया!

जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए!!

और जलाल में आए अनवर जलालपुरी ने लिखा :
ख़ुदगर्ज़ दुनिया में आख़िर क्या करें
क्या इन्हीं लोगों से समझौता करें

शहर के कुछ बुत ख़फ़ा हैं इस लिए
कि चाहते हैं हम उन्हें सजदा करें !

 

अब हम ही विचार करें, हमें इस विचार के लिए किसी आध्यात्मिक गुरु, पंथ, या आश्रम की आवश्यकता नहीं है कि हम सजदा किसे करें उन्हें जो राष्ट्र के भीतर एक देश बना डालनें की कुत्सित मुहीम में लगे हैं या उन्हें जो राष्ट्र के भीतर एक आत्मा को और अधिक सुगढ़ करनें के अभियान में लगें हैं. नकाबों को पहचानना होगा, खिजाबों की आड़ में लज्जा है या षड्यंत्र यह भी देखना आवश्यक होगा.

उल्लेखनीय: श्री श्री के इस कार्यक्रम में पूर्णतः जैविक कृषि करनें वाले 51 कृषकों को भी समानित किया गया. मुझे प्रसन्नता है कि इन 51 सम्मानित कृषकों में से एक किसान मेरें जिले के ग्राम मड़ाई के प्रभुदयाल पुंडे भी हैं. उन्हें हार्दिक बधाई और बैतूल के नाम को यमुना किनारे तक ले जानें हेतु अभिनंदन !!

 

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