मै और तुम और ये साथ,
संजोये चल रहे हैं साथ साथ,
अन्तर का ये अंतहीन सिलसिला,
पर कोई जोड़ नहीं है बिन सिला।
मै अधीर तुम धीरज,
मै नदी तुम झील,
संजोये चल रहे हैं ये साथ,
बिना बिखराव।
तुम मौन मै वाचाल
मै धरा तुम आकाश,
शान्त सागर तुम मै चक्रवात,
संजोये चल रहे हैं साथ
बिना अलगाव।
मै कविता तुम ज्ञान,
मै दर्शन तुम विज्ञान,
मै भावना तुम विचार,
तभी तो संजोये हैं साथ,
बिना विवाद।
धीरे धीरे ये अन्तर
घट गये हैं,
अन्तर नहीं पूरक,
बन गये हैं।
तभी तो संजोये हैं ये साथ,
विश्वास के साथ,
बस, साथ साथ साथ…