मै और तुम

0
210

मै और तुम और ये साथ,

संजोये चल रहे हैं साथ साथ,

अन्तर का ये अंतहीन सिलसिला,

पर कोई जोड़ नहीं है बिन सिला।

मै अधीर तुम धीरज,

मै बहाव तुम ठहराव,

मै नदी तुम झील,

संजोये चल रहे हैं ये साथ,

बिना बिखराव।

तुम मौन मै वाचाल

मै धरा तुम आकाश,

शान्त सागर तुम मै चक्रवात,

संजोये चल रहे हैं साथ

बिना अलगाव।

मै कविता तुम ज्ञान,

मै दर्शन तुम विज्ञान,

मै भावना तुम विचार,

तभी तो संजोये हैं साथ,

बिना विवाद।

धीरे धीरे ये अन्तर

घट गये हैं,

अन्तर नहीं पूरक,

बन गये हैं।

तभी तो संजोये हैं ये साथ,

विश्वास के साथ,

बस, साथ साथ साथ…

 

Previous articleशहादत पर सियासत ठीक नहीं…
Next articleचार राग
बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here