कोपनहेगन सम्मेलन का अर्थ और उसके परिणाम

3
153

globalwm2_fix-1_1251910811_mकभी महात्मा गाँधी ने कहा था- इंसान की जरुरतों को प्रकृति तो पूरा कर सकती है लेकिन इंसान के लालच को नहीं। आज इंसान का लालच सभी सीमाओं को लांघ चुका है। इस लालच पर किस तरह से लगाम लगाया जाये, यही है इस सम्मेलन का प्रमुख मुद्दा।

192 देश के प्रतिनिधि इस सम्मेलन में भागीदारी करने के लिए आ रहे हैं। सभी मिल-बैठकर विचार करेंगे कि कैसे इस पृथ्वी को ग्रीन हाउस गैस के खतरों से बचाया जाय?

पर्यावरण के प्रति गहन चिंता का कारण

धीरे-धीरे ग्रीनहाउस गैस ने अपना रंग दिखाना शुरु कर दिया है। पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता चला जा रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। सागर के जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। समंदर से सटे निचले इलाकों की बस्तियां या तो जल समाधि ले चुकी हैं या लेने के कगार पर हैं। मौसम का मिज़ाज़ पूरी तरह से बदल चुका है। फसल बर्बाद हो रहे हैं। सुनामी और साइक्लोन आज एक आम बात बन चुकी है। समग्रत: इंसान का जीना बदस्तूर मुहाल होता चला जा रहा है। शायद इसलिए लगभग सभी देश इस समस्या से इत्तिफ़ाक रखते हुए इस सम्मेलन में आज से शिरकत करेंगे।

समाधान

समस्या का कारण है- वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैस की अधिकता। अस्तु इस गैस की मात्रा में कमी लाकर इस समस्या से निदान पाया जा सकता है।

क्या समस्या का समाधान आसान होगा?

शायद समस्या का समाधान इतना आसान नहीं है। विकास का कार्य भविष्य में भी चलता रहेगा। कल-कारखाने बंद नहीं किये जायेंगे। गाड़ियों का भी सड़क पर दौड़ना बंद नहीं होगा।

एक बीच का रास्ता है कि घातक गैसों के उत्सर्जन में कमी लाया जाये। उर्जा के उपयोग में कमी और उसकी बर्बादी को रोकने की दिषा में सकारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं। ऐसे भी रास्ते अपनाये जा सकते हैं जिससे ग्रीन हाउस गैस का जमावाड़ा वायुमंडल में न हो सके। इस दिशा में पेड़-पौधे हमारी मदद कर सकते हैं। कम-से-कम हम इनकी मदद से कार्बन डाईआक्साईड पर काबू तो जरुर पा सकते हैं।

कोपनहेगन सम्मेलन के बाद क्या फ़र्क आ सकता है ?

इस सम्मेलन में सभी देश एक ऐसी संधि पर हस्ताक्षर करेंगे, जिसके बाद सभी देश ग्रीन हाउस गैस की मात्रा में निश्चित प्रतिशत तक कटोती 2020 तक करने के लिए बाध्य होंगे। खासकर के विकसित देश। उल्लेखनीय है कि वायुमंडल में एकत्र 80 फीसद एकत्र ग्रीन हाउस गैस की मात्रा के लिए ये विकसित देश ही जिम्मेदार हैं।

पुनश्‍च यहाँ यह रेखांकित करना जरुरी होगा कि इस सम्मेलन के पूर्व क्योटो सम्मेलन में भी इस तरह की संधि पर हस्ताक्षर किये गये थे, परन्तु उसके परिणाम बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहे है, जबकि क्योटो सम्मेलन का लक्ष्य 5.2 फीसद ग्रीन हाउस गैस की मात्रा को 1990 के लेवल से 2012 तक कम करना था। ऐसा मानना है कि कोपनहेगन सम्मेलन में इससे कहीं बहुत बड़े लक्ष्य को 2020 तक पा्रप्त करने की मंशा भागीदार देशों की है।

अमीर देशों पर ज्यादा दबाव क्यों?

विकसित देश ही ग्रीन हाउस गैस की मात्रा को ज्यादा बढ़ाने के जिम्मेदार हैं। चूँकि विकसित देश पूरी तरह से कल-कारखानों से लैश है। लिहाजा सबसे अधिक गैसों का उत्सर्जन यहीं होता है और भविष्य में भी स्थिति में कोई बदलाव आने की संभावना नहीं है। आश्‍चर्यजनक रुप से केवल 30 विकसित देश 50 फीसद ग्रीन हाउस गैस की मात्रा का उत्सर्जन करते हैं। इनका प्रति देश गैस उत्सर्जन की मात्रा विश्‍व औसत से दोगुना और भारत से दस गुना है।

बाली सम्मेलन

बाली सम्मेलन के अनुसार सभी देशों खासकर के विकसित देशों को उर्जा के उपयोग में कमी लानी चाहिए। फिर भी विकसित देश बाली सम्मेलन के निहितार्थों पर पानी फेरने पर तुले हुए हैं। इस सम्मेलन में विकासशील देशों को राहत देते हुए कहा गया था कि वे उर्जा के उपयोग और ग्रीन हाउस गैस को कम करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य नहीं रहेंगे, क्योंकि विकासशील देश मूल रुप से अपने देशवासियों की आधारभूत जरुरतों को पूरा करने में ही असमर्थ हैं। गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी इत्यादि इन देशों की मुख्य समस्या है और स्वाभाविक तौर पर इनकी चिंता का विषय भी यही है। लिहाजा विकासशील देश चाहते हुए भी विकास से मुख नहीं मोड़ सकते।

संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की चिंता कितनी वाजिब है

सैद्वांतिक तौर पर सभी देश इस विषय पर एकमत लगते हैं। पर हकीकत में ऐसा नहीं है। विकासशील देश चाहते हैं कि विकसित देश ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में अधिक से अधिक की कटौती करे और साथ ही साथ उन्हें तकनीकि और आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करवाये। वहीं विकसित देश इस मामले में तनिक भी गंभीर नहीं है।

कोपनहेगन सम्मेलन के परिणाम

कोपनहेगन सम्मेलन को बाली सम्मेलन के दूसरे चरण के रुप में नहीं देखा जा सकता है। बावजूद इसके सभी देश एक निश्चित फीसद तक ग्रीन हाउस गैस की मात्रा को कम करने का वायदा तो इस सम्मेलन में जरुर कर सकते हैं। कुल मिलाकर हमारा विनाश तय है।

-सतीश सिंह

3 COMMENTS

  1. इंसान आज भी एक जिद्दी बच्चे की तरह है ,जो रोज नए खिलौने तोड़ता है . अब उसे परिपक्व होकर महात्मा गाँधी की तरह सोचना चाहिए.

  2. सतीश जी ने प्रासंगिक विषय को रेखाकित किया है. कहने योग्य महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रीनहाउस गैसों का निश्चित, प्रमाणिक स्वदेशी समाधान अग्निहोत्र है.विश्व के अनेक वैज्ञानिक अनगिनत प्रयोग करके साबित करचुके हैं कि इस तकनीक से रेडियोधर्मिता तक समाप्त हो जाती है. इस तकनीक को सीखने के लिए गूगल में ढूढें . agnihotra बस इतना लिखें, अछाखासा विवरण मिलजाएगा.
    विशेष बात यह है कि गोबर, घी शुद्ध स्वदेशी गऊ का प्राप्त करने का प्रयास करें तो अछे परिणाम आयेंगे. चावल भी बिना पोलिश के हों तो अछा है. साबित होचुका है कि फ्रेज़ियन आदि विदेशी गउओं में बीटा केसीन A-1 नामक प्रोटीन मिला है जो मधुमेह, गठिया,केंसर जैसे अनेक घातक रोगों का कारण है.जबकि भारतीय गोवंश में A-2 प्रोटीन पायागया है. यह रोग निरोधक शक्ति को वर्धित करता है. इसमें सेरिटोनाईन ,सेरिब्रोसाईड तथा स्ट्रोंटीयम नामक अमूल्य तत्त्व पाये गये हैं जो मानसिक क्षमता और रोगों को रोकने की शक्ती को बढ़ा देते हैं. स्मरणीय है कि हम किसी ना किसी बहाने अपने अमूल्य गोवंश को समाप्त करते जारहे हैं. देखना चाहिए कि कहीं हम किसी शत्रु शक्ति की शरारत का शिकार तो नहीं बनरहे?

  3. हम कभी भी इतिहास से नहीं सिखतें ,हमेशा मुसीबत आनेपर ही उसका हल धुन्दते है ,मिसाल के तौर पर भारत में हर रिक्शा ,टक्सी या
    कोही भी मोटर गाड़ी को सी N G GAS से CHALANA क़ानूनी करना जरुरी है जिस से हजारो टन कार्बन वातावरण में फ़ैल रहा है
    कितने गैर क़ानूनी कारखाने देश में चल रहे है और विषैला गैस वातावरण में फैला रहे है ,लेकिन हमारे निकम्मे नेता सिर्फ खुर्सी
    और आनेवाले चुनाव के लिए क्या तिकड़म बजी करनी है ,विपक्षी के घोटाले उजागर करना ,बंडखोरी करना , जनता का पैसा हडपना
    इस में मग्न है ,अपना घर पैसो से भर गया तो उनको दुनिया की चिंता करने की जरुरत ही क्या है ,जिस देश में चपरासी की नौकरी के
    लिए १०-१२ वि कक्षा जरुरी है वहां नेता बनने के लिए कोई पात्रता नहीं रखी गयी है ! मेरे मानना है की अगर पर्यावरण मंत्री की जगह
    पर्यावरण वैद्न्यानिक ,शिक्षण मंत्री के लिए शिक्षण के लिए उच्च शिक्षित नेता चाहिए ! यहाँ पर भेड़ बकरी की तरह नेता चुने जाते है !
    जो पैसा देता है उसे वोट दो फिर उमेदवार का चरित्र ख़राब क्यों ना हो ! ये सब नयी पीढ़ी को बदलना है !

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here