मीना, मीणा, मैना, मैणा, मेंना, मैंणा आदि सभी पर्यायवाची शब्द

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’-  meena caste

जब पहली बार जिस किसी ने भी ‘मीणा’ जाति को जनजातियों की सूची में शामिल करने के लिए किसी बाबू या किसी पीए या पीएस को आदेश दिये तो उसने ‘मीणा’ शब्द को अंग्रेजी में Meena के बजाय Mina लिखा और इसी Mina नाम से विधिक प्रक्रिया के बाद ‘मीणा’ जाति का जनजाति के रूप में प्रशासनिक अनुमोदन हो गया। लेकिन संवैधानिक रूप से परिपत्रित करने से पूर्व इसे हिन्दी अनुवाद हेतु राजभाषा विभाग को भेजा गया तो वहां पर Mina शब्द का शब्दानुवाद ‘मीना’ किया गया जो अन्तत: जनजातियों की सूची में शामिल होकर जारी हो गया। वैसे यह भी विचारणीय है कि मीना और मीणा दोनों शब्दों के लिये तकनीकी रूप से Mina/Meena दोनों ही सही शब्दानुवाद हैं, क्योंकि ‘ण’ अक्षर के लिये सम्पूर्ण अंग्रेजी वर्णमाला में कोई प्रथक अक्षर नहीं है।

 
‘मीणा’ जनजाति के बारे में तथ्यात्मक जानकारी रखने वाले और जनजातियों के बारे में बिना पूर्वाग्रह के अध्ययन और लेखन करने वाले इस बात को बखूबी जानते हैं कि ‘मीणा’ अबोरिजनल भारतीय (Aboriginal Indian) जनजातियों में से प्रमुख जनजाति है। फिर भी कुछ पूर्वाग्रही और दुराग्रही लोगों की ओर से ‘मीणा’ जनजाति को ‘मीणा’ एवं ‘मीना’ दो काल्पनिक जातियों में बांटने का कुचक्र चलाया जा रहा है। इन लोगों को ये ज्ञात ही नहीं है कि राजस्थान में हर दो कोस पर बोलियां बदल जाती हैं। इस कारण एक ही शब्द को अलग-अलग क्षे़त्रों में भिन्न-भिन्न मिलती जुलती ध्वनियों में बोलने की आदिकाल से परम्परा रही है। जैसे-

गुड़/गुर, कोली/कोरी, बनिया/बणिया, बामन/बामण, गौड़/गौर, बलाई/बड़ाई, पाणी/पानी, पड़ाई/पढाई, गड़ाई/गढाई, रन/रण, बण/बन, वन/वण, कन/कण, मन/मण, बनावट/बणावट, बुनाई/बुणाई आदि ऐसे असंख्य शब्द हैं, जिनमें स्वाभाविक रूप से जातियों के नाम भी शामिल हैं। जिन्हें भिन्न-भिन्न क्षे़त्रों और अंचलों में भिन्न-भिन्न तरीके से बोला और लिखा जाता है।

इसी कारण से राजस्थान में ‘मीणा’ जन जाति को भी केवल मीना/मीणा ही नहीं बोला जाता है, बल्कि मैना, मैणा, मेंना, मैंणा आदि अनेक ध्वनियों में बोला/पुकारा जाता रहा है। जिसके पीछे के स्थानीय कारकों को समझाने की मुझे जरूरत नहीं हैं। फिर भी जिन दुराग्रही लोगों की ओर से ‘मीना’ और ‘मीणा’ को अलग करके जो दुश्प्रचारित किया जा रहा है, उसके लिए सही और वास्तविक स्थिति को समाज, सरकार और मीडिया के समक्ष उजागर करने के लिये इसके पीछे के मौलिक कारणों को स्पष्ट करना जरूरी है।
यहां विशेष रूप से यह बात ध्यान देने की है कि वर्ष 1956 में जब ‘मीणा’ जाति को जनजातियों की सूची में शामिल किया गया था और लगातार राजभाषा हिन्दी में काम करने पर जोर दिये जाने के बाद भी आज तक प्रशासन में अंग्रेजी का बोलबाला है। जिसके चलते छोटे बाबू से लेकर विभाग के मुखिया तक सभी पत्रावलि पर टिप्पणियां अंग्रेजी में लिखते हैं। इसके चलते आदेश और निर्णय भी अंग्रेजी में ही लिये जाते हैं। हां राजभाषा हिन्दी को कागजी सम्मान देने के लिये ऐसे आदेशों के साथ में उनका हिन्दी अनुवाद भी परिपत्रित किया जाता है। जिसे निस्पादित करने के लिये केन्द्र सरकार के तकरीबन सभी विभागों में राजभाषा विभाग भी कार्य करता है। राजभाषा विभाग की कार्यप्रणाली अनुवाद या भावानुवाद करने के बजाय शब्दानुवाद करने पर ही आधारित रहती है जिसके कैसे परिणाम होते हैं, इसे मैं एक उदाहरण से समझाना चाहता हूं।
मैंने रेलवे में करीब 21 वर्ष सेवा की है। रेलसेवा के दौरान मैंने एक अधिकारी के अंग्रेजी आदेश को हिन्दी अनुवाद करवाने के लिये राजाभाषा विभाग में भिजवाया, वाक्य इस प्रकार था-’10 minute, Loco lost on graph’ इस वाक्य का रेलवे की कार्यप्रणली में आशय होता है कि ‘रेलवे इंजन के कारण रेलगाड़ी को दस मिनिट का विलम्ब हुआ।’ लेकिन राजभाषा विभाग ने इस वाक्य का हिन्दी अनुवाद किया ‘‘10 मिनट, लोको ग्राफ पर खो गया।’’ इसे शब्दानुवाद का परिणाम या दुष्परिणाम कहते हैं। इसी प्रकार से एक बार एक अंग्रेजी पत्र में भरतपुर स्थित Keoladeo (केवलादेव) अभ्यारण (इसे भी अभ्यारन भी लिखा/बोला जाता है) शब्द का उल्लेख था, जिसका राजभाषा विभाग ने हिन्दी अनुवाद किया ‘‘केओलादेओ’।
मुझे अनुवाद प्रणाली पर इसलिये चर्चा करनी पड़ी, क्योंकि जब पहली बार जिस किसी ने भी ‘मीणा’ जाति को जनजातियों की सूची में शामिल करने के लिए किसी बाबू या किसी पीए या पीएस को आदेश दिये तो उसने ‘मीणा’ शब्द को अंग्रेजी में Meena के बजाय Mina लिखा और इसी Mina नाम से विधिक प्रक्रिया के बाद ‘मीणा’ जाति का जनजाति के रूप में प्रशासनिक अनुमोदन हो गया। लेकिन संवैधानिक रूप से परिपत्रित करने से पूर्व इसे हिन्दी अनुवाद हेतु राजभाषा विभाग को भेजा गया तो वहां पर Mina शब्द का शब्दानुवाद ‘मीना’ किया गया जो अन्तत: जनजातियों की सूची में शामिल होकर जारी हो गया। वैसे यह भी विचारणीय है कि मीना और मीणा दोनों शब्दों के लिये तकनीकी रूप से Mina/Meena दोनों ही सही शब्दानुवाद हैं, क्योंकि ‘ण’ अक्षर के लिये सम्पूर्ण अंग्रेजी वर्णमाला में कोई प्रथक अक्षर नहीं है।
चूंकि उस समय (1956 में) आदिवासियों का नेतृत्व न तो इतना सक्षम था और न ही इतना जागरूक था कि वह इसे जारी करते समय सभी पर्यायवाची शब्दों के साथ उसी तरह से जारी करवा पाता, जैसा कि गूजर जाति के नेतृत्व ने गूजर, गुर्जर, गुज्जर, के रूप में जारी करवाया है। यही नहीं आज तक जो भी आदिवासी राजनेता रहे हैं, उन्होंने भी इस पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया और ‘मीणा’ एवं ‘मीना’ दोनों शब्द चलते रहे, क्योंकि व्यक्तिगत रूप से हर कोई इस बात से वाकिफ रहा कि इन दोनों शब्दों का वास्तविक मतलब एक ही है, और वो है-‘‘मीणा जनजाति’’, जिसे अंग्रेजी में Meena लिखा जाता है। अब जबकि कुछ असन्तोषियों या प्रचारप्रेमियों को ‘मीणा’ जन जाति की सांकेतिक प्रगति से पीड़ा हो रही है तो उनकी ओर से ये गैर-जरूरी मुद्दा उठाया गया है जिसका सही समाधान प्रारम्भ में हुई त्रुटि को ठीक करके ही किया जा सकता है।
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

8 COMMENTS

  1. मीणा कभी जनजाति बनी रहे यह क्षत्रिय जाती है लेकिन मीणा लोग अपने आप को जबरदस्ती जनजाति में रखेगा इन लोगों को अपना इतिहास पता है कि यह राजघराने से है राजवंशी है लेकिन फिर भी आरक्षण के चक्कर में अपने आप को दलित साबित करने पर लगेंगे हैं क्योंकि ज्यादातर राज्य में मीणाआज भी सामान्य वर्ग जा अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं

  2. सुजावः
    अंग्रेज़ी में व्यवहार जब तक हम करते रहेंगे, तब तक ऐसी समस्याएं होगी। इतनी सीधी बात भी शासन कैसे समझ नहीं सकता?
    अंग्रेज़ी मर्यादित है। मीणा जी आप इसे देवनागरी में कोष्ठक में लिखवाने के लिए, कम से कम प्रयास तो कर ही सकते हैं। सारा स्पष्ट हो जाएगा।
    लेखक मीणा जी को– धन्यवाद।

    मधुसूदन

    • Satik sawal, ‘India that is Bharat’ jabtak bana rahega,bharatiy jaati-samskriti ke prati
      berukhi hoti hi rahegi.

      • श्री प्रेम प्रभाकर जी टिप्पणी करने के लिए आपका आभार!

        डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

    • श्री मधुसूदन जी टिप्पणी करने और सुझाव के लिए आपका आभार!

      डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

    • श्री डॉ. मधुसूदन जी टिप्पणी करने और सुझाव के लिए आपका आभार!

      डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  3. यह मुद्दा है ही नहीं ये तो कोर्ट में मामला चल रहा है तो कोर्ट को ही तय करने दीजिये न ??भील जाती के एक व्यक्ति कि पेटिशन है शायद ??अगर आजादी के इतने साल बाद भी भील सहरिया गरासिया आदि आदि जाती के लोगों को ये लगता है कि उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिला तो उसकी भी गलती आप शायद ब्राह्मण के माथे दोंगे??समय आ गया है कि जो सक्षम हो गए है उनको रिजर्वेशन से बहार रखा जाए ताकि उस केटेगिरी में कमजोर लोग उसका लाभ उठा सकें |शुरुवात में इसे जाती कि जगह परिवार के आधार पर कर सकते है पर चूँकि उससे आप के हित प्रभावित होंगे अत उसको आप मानेगे नहीं |

    • श्री पुरोहित जी कभी तो प्रासंगिक टिप्पणी किया कीजिए। मैं कुछ लिख रहा हूँ और आप न जाने किस दुनियां में घूम रागे हैं, फिर भी आपका आभार!

      डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

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