मीणा जी, ब्राह्मणों के मूल देश के बारे में जरा बताएँगे!

कौशलेन्द्र

प्रिय भारतीय अनार्य ……..एवं …..विदेशी आर्य बंधुओ !

 सादर नमन ! ! !

निवेदन है कि मीणा जी के विचारों पर आक्रोशित होने की नहीं बल्कि चिंतित होने की आवश्यकता है….कारण यह है कि यह मात्र मीणा जी का ही नहीं बल्कि मीणा जी जैसे अनेकों लोगों का विचार है…अतः उनके विचारों की उपेक्षा नहीं की जा सकती . डॉक्टर कपूर जी ! धर्मपाल जी की पुस्तकों का मैंने भी अवलोकन किया है …उनके तथ्य प्रामाणिक हैं क्योंकि भारत में तत्कालीन प्रवासी यूरोपियन्स ने अपने स्वजनों-बंधुओं और इंग्लैण्ड के तत्कालीन राजपरिवार के लोगों को जो व्यक्तिगत पत्र लिखे थे धर्मपाल जी ने उन्हें अपने लेखों का आधार बनाया है.

मीणा जी ! दूसरी बात प्रक्षिप्तांशों की है …आर्ष ग्रंथों के अध्ययन के समय हमें इसका भी ध्यान रखना होगा. थोड़ी सी सावधानी से ही प्रक्षिप्तांशों को आसानी से पहचाना जा सकता है .वर्ण व्यवस्था पर टिप्पणी के समय हमें यह भी विचार करना है कि “जन्मना जायते शूद्र , कर्मणा जायते द्विजः” की स्पष्ट व्यवस्था भी उन्हीं आर्यों की ही देन है …तो भाई हमें तो स्वयं के हिन्दू होने पर गर्व है . मीणा जी आपकी बात पर आते हैं.

 मैं आपके विचारों का सारांश प्रस्तुत कर रहा हूँ –

१ -“भारत में आर्य बाहर से आये , वे क्रूर थे और उन्होंने यहाँ के मूल निवासियों और उनके धर्म पर अधिकार कर लिया और फिर उसे विकृत कर दिया .” आदरणीय मीणा जी ! यहाँ के मूल निवासियों एवं बाहर से आये आर्यों की वर्त्तमान समाज में सामाजिक एवं बायोलोजिकल पहचान करनी होगी ताकि उन्हें आर्यों के चंगुल से बचाने के लिए एक बृहत् अभियान प्रारम्भ किया जा सके .

२- आर्यों ने भारतीय समाज को अपने तरीके से ….अपने लाभ के लिए स्तेमाल करने के लिए कई प्रकार के धर्म ग्रंथों की रचना की जिनमें स्त्रियों, वैश्यों और शूद्रों को हेय और पापी निरूपित किया गया. आर्यों के सिरमौर ब्राह्मणों के “ब्राह्मण-धर्म” का एक धर्मग्रन्थ मनुस्मृति” है आदरणीय जी ! यह भी पहचान की जानी चाहिए कि आर्यों द्वारा रचित मनुस्मृति के अतिरिक्त अन्य धर्म ग्रन्थ और कौन-कौन से हैं, उनका अध्ययन कर यदि उनमें आपत्तिजनक बातें पायी जाती हैं तो उनका बहिष्कार किया जाना चाहिए. साथ ही भारत के मूल निवासियों के मौलिक धर्म ग्रंथों को प्रकाश में लाया जाना चाहिए. हम चाहेंगे कि धर्म ग्रंथों का वर्गीकरण हो जाना चाहिए – “आर्य रचित गलत धर्म ग्रन्थ” और “मूल भारतीयों द्वारा रचित अच्छे वाले धर्म ग्रन्थ ”

 ३- मीणा जी का स्पष्ट संकेत ब्राह्मणों और क्षत्रियों की ओर है …. “ये ही बाहर से आये हुए क्रूर आर्य हैं ?” यह शोध का विषय होना चाहिए ….वंश परम्परा से ज्ञात हुआ है कि मैं ब्राह्मण हूँ …अर्थात बाहर से आया हुआ क्रूर आर्य . तब ऐसे लोगों के लिए अब क्या व्यवस्था होनी चाहिए ? क्या हमें यह देश छोड़कर कहीं और जाना होगा ? हाँ , तो कहाँ ? डी.एन.ए. रिपोर्ट्स से तो पता चला है कि भारत में रहने वाले सभी द्रविणों, आदिवासियों और उत्तर भारतीयों के जींस में समानता है. ब्राह्मण ( क्रूर आर्य ) होने और विदेशी होने के कारण नैतिक दृष्टि से मुझे यह देश त्याग कर अपने मूल देश में चले जाना चाहिए . मैं व्यक्तिगत रूप से भारत को छोड़कर धरती पर कहीं भी जाने के लिए तैयार हूँ …मुझे मेरा मूल देश बताया जाना चाहिए.

४- “आज़ादी से पूर्व हिन्दुओं के धर्म ग्रंथों को पढ़ने का अधिकार सभी को नहीं था. इन धर्म ग्रंथों को सभी के लिए सुलभ और बोधगम्य बनाया जाना चाहिए. ताकि लोग इन ग्रंथों की वास्तविकता को जान सकें. ” मीणा जी ने यह स्वीकारा है कि इन ग्रंथों में अच्छा भी है और बुरा भी. अच्छी बात है यदि वे “सार-सार को गहि लहे…थोथा देय उडाय” के अनुरूप आर्यों के बर्बरतापूर्ण ग्रन्थों में से मूल भारतीयों के लिए कुछ अच्छा शोध करके उन्हें उपादेय बनाना चाहते हैं. किन्तु कदाचित इसकी आवश्यकता ही न रहे यदि हमें मूल भारतीयों द्वारा रचित धर्म ग्रंथो का पता चल जाय तो . क्योंकि निश्चित ही आर्यों की अपेक्षा मूल भारतीयों द्वारा रचित उनके धर्म ग्रन्थ अनुकरणीय होंगे . जहाँ तक संस्कृत में रचित धर्म ग्रंथों की बात है ….आज तो लिप्यन्तरण और भाषांतरण की सुविधाएं सर्व सुलभ हैं जिसको जिस भाषा में अच्छा लगे पढ़ ले …यह कोई समस्या नहीं रह गयी है …आर्य रचित ग्रंथों पर कोई प्रतिबन्ध भी नहीं हैं. हमारे इस छोटे से कस्बे में तो एक मुसलमान की दूकान पर हिन्दी भाषा में वेद-पुराण-उपनिषद्…आदि बिक रहे हैं …खाली समय में खान साहब खुद भी उन्हें पढ़ते रहते हैं.

५ – “मीणा जी की चिंता के विषय हैं – मुसलमान, क्रिश्चियन, आर्य और आतंकवादी हिन्दू ठेकेदार. ये लोग भारत के मूल धर्म को नष्ट कर देने में लगे हुए हैं” मैं एक आर्य ब्राह्मण यह वचन देता हूँ कि यदि मीणा जी मूल भारतीय धर्म की स्थापना के लिए कोई पथ निर्धारित करते हैं तो मैं उसमें अपना निर्दुष्ट सहयोग अवश्य दूंगा. किन्तु यह न समझा जाय कि मैं इस बहाने से भारत में ही टिके रहने की दुष्ट कूट नीति का सहारा ले रहा हूँ . मीणा साहब यदि कहेंगे तो ही मैं यह कार्य करूंगा अन्यथा तो मैं वचन दे चुका हूँ कि मैं भारत छोड़ने के लिए तैयार हूँ.

6- “ब्राह्मणों ने हज़ारों साल पहले हिन्दू धर्म पर कब्ज़ा कर लिया था. उनका धर्म असमानता, अन्याय और भेदभाव से भरा है. किन्तु वे धर्मनिरपेक्षता, मानवता आदि गुणों का ढोंग करते हैं. ” मीणा जी ! अन्य ब्राह्मणों की तो नहीं जानता किन्तु मैं धर्म निरपेक्षता के अवैज्ञानिक सिद्धांत का दृढ विरोधी हूँ. जहाँ तक मेरा विचार है वैदिक ब्राह्मण तो शिक्षा संस्कार और भिक्षा तक ही सीमित रहा है ….उसने समाज से जितना लिया है ( भर पेट भोजन और एक कोपीन ) समाज को उसकी अपेक्षा कई गुना ज्ञान के रूप में वापस भी किया है.जहाँ तक मानवता के ढोंग की बात है मेरा स्पष्ट मत है कि ब्राह्मणों की उदारता व् समदर्शिता के कारण ही अन्य वर्णों को ब्राह्मणों के समान स्तर पर लाने के प्रयास हुए हैं. विचारणीय बात है कि यदि ब्राह्मण समाज का सर्वेसर्वा था तो वह यथास्थिति बनाए रख सकता था . और सामाजिक तरलता कभी आ ही नहीं पाती.

 ६- “ऐसे दुर्बुद्धि और चालाक लोगों को यह बात आज नहीं तो कल स्वीकार करनी ही होगी कि इक्कीसवीं शताब्दी में धार्मिक भेदभाव, जातिपांत, छुआछूत, जन्मजात उच्च कुलीनता जैसे अमानवीय, अवैज्ञानिक, विघटनकारी, भेदभावपूर्ण, अतार्किक और अलोकतान्त्रित बातें धर्म की आड़ में भी लम्बे समय तक नहीं चल सकती!” मीणा जी आपने कई बातों को एक साथ रख दिया है, एक ही वर्ग में. छुआछूत को यदि आप हाइजेनिक प्वाइंट ऑफ़ व्यू से देखें तो यह वैज्ञानिक है. बहुत से रोग छुआछूत के कारण ही फैलते हैं. इसमें जातिगत नहीं अपितु स्थितिगत दृष्टिकोण ही अभिप्रेत है …आर्यों का भी यही दृष्टिकोण रहा है . इसीलिये इस अस्पर्श्यता की श्रेणी में घर का ही पीड़ित सदस्य राजयक्ष्मा का रोगी भी आता है. विश्व के अनेकों देशों में जातियां एवं वर्ग हैं …उनके नाम भिन्न हो सकते हैं …पर श्रेणियां हैं …और इन श्रेणियों को समाप्त नहीं किया जा सकता. सरकार एक ओर इन्हें समाप्त करना चाहती है दूसरी और सरकारी अभिलेखों में इनको लिखने का अनिवार्य नियम बनाती है. परीक्षाओं के परिणामों में भी श्रेणियां होती हैं, नौकरियों के पदों में भी श्रेणियां हैं, अच्छे-बुरे की श्रेणियां हैं, बदमाश और शरीफ की श्रेणियां हैं, निर्धन और धनवान की श्रेणियां हैं , रूखेस्वभाव और सरस स्वभाव की श्रेणियां हैं ….कितनी गिनाऊँ ? स्वयं आपने क्रूर आर्यों और मूल भारतीयों की दो श्रेणियों का उल्लेख किया है . मानव समाज में योग्यता-क्षमता के आधार पर श्रेणी विभाजन एक अनिवार्य आवश्यकता है यह अवैज्ञानिक कैसे हो सकती है ? एक समान योग्यता-क्षमता असंभव है इसलिए वर्ग विहीन समाज की कल्पना एक यूटोपिया ही है.

 ७- अब तर्क ही तुम्हारा ॠषि हुआ करेगा|’ किन्तु यह कैसे निर्धारित होगा कि तर्क कौन सा है और कुतर्क कौन सा है ? मैं पुनः विनम्र निवेदन करता हूँ कि मीणा जी किसी विचार के प्रतिनिधि हैं …..इसलिए हमें उनके विचारों को गंभीरता से लेना चाहिए …और यथा संभव आर्यों को भी अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए . कारण यह है कि अब आर्यों और अनार्यों की पहचान शायद ही हो सके ..क्योंकि डी.एन.ए. टेस्ट में तो सबको एक ही बता दिया गया है . और जब तक यह नहीं हो पाता तब तक आर्यों को यहाँ से भगाया नहीं जा सकता.. दूसरी बात इतनी बड़ी संख्या में आर्यों को भारत से कहाँ भगाया जाएगा ….भगा भी दिया जाय तो इन्हें स्वीकार कौन करेगा ? यह स्पष्ट है कि हर समाज में सुस्थापित किये गए सिद्धांतों…. आदर्शों… मानदंडों …. आदि में काल-क्रम से क्षरण होता है …समय-समय पर समाज-सुधारक इनका परिमार्जन भी करते हैं. किसी सिद्धांत में से जब तर्क और प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है तब वह रूढ़ी बन जाती है …तब समाज के लिए वह लाभ के स्थान पर हानि का ही कारण बनती है. महान लोग इसमें पुनः सुधार करते हैं ….पुनः कुछ समय बाद अमहान लोग विकृत कर देते हैं ….और यह क्रम इसी तरह चलता रहता है. इसमें किसी प्राचीन सिद्धांत को दोष देने का कोई औचित्य नहीं है.

मीणा जी ! ब्राह्मणों के मूल देश के बारे में अवश्य बताइयेगा……मैं अपने मूल देश जाना चाहूंगा -:)

10 COMMENTS

  1. श्री राम तिवारी जी को दीर्घ टिप्पणी के लिए धन्यवाद| उसी टिपण्णी का विस्तार करते हुए एक या दो लेख लिखने का अनुरोध करता हूँ|
    आपका अलग दृष्टिकोण जानने की इच्छा है|

  2. सारा विश्व हम भारतियों की संतान है, भारत इस धरती पर समस्त मानव सभ्यता का पितृ देश है, जानते हैं क्यों ? २२५० वर्ष पूर्व चलते हैं…. इब्राहीम का आगमन इस धरती पर होता है, इब्राहीम के माता पिता हिन्दू थे. इब्राहीम ने इस्लाम धर्म की स्थापना की जो कालांतर में ३ (पंथों )धर्मों में विभजित हो गया. १. मूसा द्वारा स्थापित यहूदी २. ईसा द्वारा स्थापित क्रिस्चन (मसीही ) ३. मोहम्मद साहब द्वारा स्थापित किया हुआ मोहम्मदी (मुस्लिम) . जो इतिहास कार हैं उन्हें थोड़ा मंथन और रिसर्च करना पड़ेगा. लेकिन ये हकीकत है. मक्का में स्थापित शिव मंदिर था मक्केश्वर शिव मंदिर राजा विक्रमादित्य द्वारा स्थापित. इब्राहीम मूर्ती पूजक नही था लेकिन धर्म स्थापन के दौरान उसने इस मंदिर को तोडा नही था, ये मंदिर तोडा गया था मुहम्मद साहब के द्वारा फिर भी शिवलिंग को वहीँ स्थापित रहने दिया गया क्योंकि शिव भगवान हैं इश्वर हैं खुदा हैं गाड हैं इस सृष्टि के. इब्राहीम के समकालीन ग्रंथों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट हो जाएगी. आर्य अनार्य की जो बहस है वो सर्वथा फिजूल है, बकवास है. हम भारतीय ही इस धरा के मूल निवासी हैं ना की बाहर से आए आक्रमणकारी. समय मिला तो और लिखूंगा अपने भारत देश के बारे में ….इति शुभम

  3. विचारो का उज्जवल प्रवाह तर्क की उतम शेली से युक्त ये लेख मीनाजी की पुनुद्धार के लिए मील की चट्टान साबित होगा

    धन्यवाद

  4. निश्चय ही यह आलेख संवेदनाओं के धरातल पर वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ प्रस्तुत किया गया है.आदरणीय डॉ पुरषोत्तम मीणाजी के आलेख को भी जिन्होंने नहीं पढ़ा होगा वे भी इस आलेख की विषयवास्तु में उसका प्रभाव महसूस कर सकते हैं.
    निसंदेह यह एक बेहतरीन चारित्रिक और सामाजिक विशेषता तो भारतीय समाज {हिन्दू भी}में है की वह सारे संसार में न केवल सहिष्णुता बल्कि अहिंसा का भी प्रवर्तक रहा है,अब देखने वाली बात ये है की दुनिया में वो कौन सी जगह है जहां भारत जैसी सहिष्णुता और अहिन्सात्मकता का प्रभाव है?चूँकि भारत जैसा उज्जवल धवल मानवीय चरित्र विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं है अतेव ये स्वभाविक ही है कि भारत कि अनेकता में एकता के लिए जिम्मेदार तत्वों में वे आर्य भी हैं जिन्होंने वेदों का सृजन हजारों वर्षों में इस भारत भूमि के पञ्च नद pradesh में किया था.तथाकथित क्रूर ब्रह्मण भी उन्ही के वंशज हैं.जो लोग आज विना सोचे समझे ,विना पुरातन ग्रन्थों कि भाषा को समझे ही सिर्फ खट्टर काकाओं कि तर्ज पर बात -बात में मिथकों को इतिहास वनकर पेश कर देते हैं,उन्हें इस आलेख से जरुर दिशा निर्देश लेना चाहिए.
    हालाँकि प्रस्तुत आलेख में कुछ विवादस्पद स्थापनाओं को जबरन ठुंसा गया है जैसे कि ‘धर्म निरपेक्षता का अविज्ञानिक सिद्धाब्त’ “वर्ग विहीन समाज कि कल्पना एक उटोपिया”
    यह सर्वमान्य सार्वभौम सत्य है कि कोई भी विचार ,सिद्धांत,परिपूर्ण नहीं है.सभी कुछ अनित्य और परिवर्तनशील है.वेद,पुराण,,आरण्यक,वेदान्त,षड्दर्शन,,न्याय,वैशेषिक,उत्तर मीमांसा,पूर्व मीमांसा,तथा नवाचार इत्यादि को तथाकथित अनार्यों ने ही ज्यादा पुष्पित -पल्लवित किया है.जब उत्तर भारत विदेशी आक्रान्ताओं के लगातार हमलों से लहू लुहान हो रहा था जब तक्षशिला नालंदा और काशी के शिक्षा केन्द्रों ,पुस्तकालयों को जलाया जा रहा था तब उत्तर से दक्षिण की ओर पलायन करने वाले निरीह ,दुर्वल,धनहीन,-भूंखे-प्यासे ब्राह्मणों {मीणा जी के लिए क्रूर}ने दक्षिण भारत के तत्कालीन समृद्ध {अनार्य}सत्ता केन्द्रों में शरण ली थी.सम्पूर्ण उत्तर भारत को शकों,हूणों,कुषाणों,यवनों,अरवों,तुर्कों,मंगोलों,और आधुनिक उन यूरोपियनों ने हजारों बार लुटा -रौंदा है.आतातियों को भारत की समृधि ने वापिसी की संभावनाएं ही नहीं छोडी .वे अधिकांस हमलावर यहीं रच-वस् गए ,हो सकता है कि तथाकथित आर्य भी इसी तरह कभी शायद १० हजार वर्ष पूर्व मध्य एशिया से आये हों जिनकी एक शाखा जर्मनी और दूसरी ईरान तरफ बढ़ती चली गई.लेकिन यह शतप्रतिशत सच है कि वेद,भारत भूमि पर रचे गए,मनु स्मृति तो मात्र २००० साल पुराणी ही है फिर आर्य और ब्राहमण विदेशी कैसे हो गए?जहां तक उनके द्वरा शोषण के निमित्त इन ग्रन्थों कि रचना का या समाजिक नियमन कि बात है तो यह कैसे हो सकता है कि गोपियों को यमुना में नग्न देखने कि चाहत वाला एक ग्वाला {सामंत}कृष्ण धनवान था तो उसका समकालीन ब्रह्मण सुदामा नंगे पैर डगर-डगर भीख क्यों मांग रहा था?यदि वामन ही समस्त सामाजिक विद्रूपताओं के लिए उत्तरदाई हैं तो ब्रह्मण भृगु ने लक्ष्मीपति {पूंजीपति}विष्णु को लात क्यों मरी थी?यदि मनु स्मरति के सूत्र दलित विरोधी या वर्ण वादी हैं तो क्षत्रिय मनु को जिम्मेदार क्यों नहीं मन जाए?जब आततायी मुग़ल उज्वेगिस्तान से आगे बढ़ते हुए सिन्धु पार करते हुए हिन्दुस्तान पर चढ़ बैठे तब भारत के क्षत्रिय और अन्य शूरमा क्या कर रहे थे?जबकि हेमू उर्फ़ रजा हेमचन्द्र {कश्मीरी पंडित}उनसे संघर्ष कर रहा था.मुहम्मद बिन -कासिम से लगातार संघर्ष करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए रजा दाहिर सेन {ब्रह्मण} ने अपनी शहादत देकर किस का सामाजिक -आर्थिक शोषण किया?पंडित जवाहरलाल नेहरु,पंडित गोविन्द्वाल्लाव पन्त,चंद्र्शेखेर आज़ाद{तिवारी] रामप्रसाद विस्मिल ,मंगल पाण्डे,झाँसी कि रानी,ताते टोपे ,सावरकर और चाफेकर बंधू यहाँ तक कि राष्ट्रीय swym सेवक संघ में भी तथाकथित जातिवादी ब्रह्मण वादी सोच को महत्व नहीं है. हालाँकि मैं संघ के सम्पूर्ण दर्शन को अवैज्ञनिक ही मानता हूँ.किन्तु कुछ लोग आर एस एस या हिन्दू कौम के बहाने सम्पूर्ण ब्राह्मण और होंदु समाज पर अनावश्यक तोहमत लगाकर अपनी स्व्र्थजनित विचारधारा को थोपना चाहते हैं,तो मेरा ये नेसर्गिक कर्तव्य है कि पूरी वैज्ञानिकता के साथ सच को प्रस्तुत करूँ.

  5. इसे कहते है माखन लगा कर जूता मरना…बहुत खूब कौशलेन्द्र बधाई एक शानदार तर्क पूर्ण लेख के लिए

  6. कौशलेन्द्र जी आपके तर्क पूर्ण जवाबों ने कईयों को लाजवाब कर दिया. हठधर्मिता का तो कोई इलाज है नहीं. सही कहा आपने की आर्य अनार्य समस्या रोष का नहीं चिंता, चिंतन और मन का विषय है. एक ख़ास बात आप ने जो की है वह यह है कि अगड़े-पिछड़े, आर्य-अनार्य, मनु वादी और ब्राहमण वादी कह कर हिन्दू समाज को १०० साल से कठघरे में खड़े करने वालों को किसी ने तो कठघरे में खड़ा करने का प्रयास बड़े तर्क पूर्ण ढंग से किया है. धन्यवाद है डा. मीना जी का जिनके कारण आप सरीखी अनेक विभूतियाँ और प्रतिभाएं सामने आ रही हैं, हमें उनके विचारों को जानने का अवसर मिल रहा है.

  7. आदरणीय कौशलेन्द्र जी, अब ऐसे ही कड़े व करारे जवाबों की आवश्यकता है इन सेक्युलरों को…
    आपके जवाब बेहद सटीक लगे…
    देखते हैं, अब मीणा जी क्या उत्तर ढूंढ कर लाते हैं…वे तो अब भी ब्राह्मणवाद व मनुवाद को गालियाँ देंगे…आर्य, अनार्य चिल्लाने लगेंगे…
    पर अभी तक उनका आगमन क्यों नहीं हुआ?

  8. आज कौन दलित है, कौन अस्पृश्य है? स्पष्ट रूप से श्री मीणा जी द्वारा बताए गए विदेशों से आए आर्य। भारत के हिन्दू संविधान निर्माताओं, लोकतंत्र और राजनीतिज्ञों ने इन आर्यों को उनकी औकात तो दिखा ही दी है। शिक्षा में आरक्षण, नौकरी में आरक्षण, राजनीति में आरक्षण, पदोन्नति में आरक्षण, ठेकेदारी में आरक्षण, सरकारी शराब की दूकानों से लेकर राशन की दूकानों में आरक्षण ने तथाकथित आर्यों को दलित और अस्पृश्य तो बना ही दिया है। शिक्षा के मौलिक अधिकार से भी इन आतताई आर्यों को एक आर्य अर्जुन सिंह ने ही वंचित कर दिया. अब इस देश में रहकर भूखों मरने के अलावा क्या विकल्प है। मुसलमानों के लिए मदरसा है, सच्चर आयोग है, मुलायम हैं, लालू हैं, दिग्विजय सिंह हैं, लोन हैं, रब्बानी है, अफ़ज़ल हैं. कसाब हैं, पाकिस्तान है, इरान है; इसाइयों के लिए चर्च है, कानवेन्ट हैं, सोनिया हैं, अमेरिका है, यूरोप है और इस देश के मूल निवासियों (हिन्दुओं) के लिए संविधान है। दुनिया का कौन देश इन रुढिवादी, मनुवादी आर्यों को स्वीकार करेगा? मीणा जी चाहकर भी, पूरी ज़िन्दगी शोध करने के बाद भी आर्यों के मूल देश का पता नहीं बता सकते। इन आर्यों से छुटकारा पाने का सिर्फ़ एक ही उपाय है – इन्हें पानी के जहाजों में भरकर हिन्द महासागर के बीचोबीच ले जाया जाय और वहीं जल समाधि दे दी जाय। इससे कम की सज़ा के ये हकदार नहीं हैं।

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