प्रवक्ता एक ऐसा नाम जो विचारों को रखने का स्थाई मंच बनकर उभरा। यहां कभी भी किसी लेखक से परहेज नहीं किया गया चाहे वह नवोदित हो या पुरोधा, अगर प्रमुखता दी गयी तो विषय बस्तु और प्रस्तुति को। यही कारण है कि आज प्रवक्ता को भारत ही नहीं वरन् विश्व का हिन्दी प्रेमी बौद्धिक जगत का भरपूर प्यार मिला है।
प्रवक्ता पर आज से तीन-चार साल पहले मैने अपना पहला लेख भेजा था। उन दिनों पत्रकारिता का शुरुआती दौर था और लेख आने के बाद मुझे उतनी ही खुशी हुई थी जितनी किसी पत्रकार को अपने समाचार पत्र में बाईनेम स्टोरी छपने पर होती है। इसके बाद मैंने 10-15 लेख व कई समाचार इसके लिए लिखा और प्रमुखता से इसे स्थान भी मिला।
उस दौरान कई ऐसे वरिष्ठ स्तंभकार जिनके लेख पढ़ने के लिए समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था ऐसे में प्रवक्ता ने एक ऐसा मंच दिया जहां हमने अपनी पसंद के अनुसार लेखकों और लेख का चयन कर उसपर मंथन किया।
हालांकि मै प्रवक्ता परिवार का प्रत्यक्ष रुप से हिस्सा नहीं बन सका लेकिन बड़े भाई संजीव सिन्हा जी के स्नेह ने कभी भी इसका अहसास नहीं होने दिया। प्रवक्ता के पांच वर्ष पूरे होने पर पूरे परिवार को दिल से आभार…