पाठकों और लेखकों के मन में प्रवक्ता के प्रति एक “साफ्ट-कार्नर” हमेशा रहा है / सुरेश चिपलूनकर

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pravaktaबात उन दिनों की है, जब मैं ब्लॉगिंग में अति-सक्रिय था अर्थात २००७.

भाई संजीव सिन्हा अपने ब्लॉग “हितचिन्तक” पर सक्रिय थे.

जैसा कि हमेशा होता आया है, हिन्दूवादियों की वैचारिक मुठभेड़ें लगातार अन्य विधर्मियों से होती रहती हैं, उन तमाम मुठभेड़ों में संजीव सिन्हा लगातार मेरे साथ बने रहे. अतः यह मेरा सौभाग्य कहा जा सकता है कि प्रवक्ता के बिलकुल आरम्भ से मेरा जुड़ाव रहा है.

२००८ से लेकर लगभग २०११ तक हिन्दी की इंटरनेट दुनिया में सतत् यह माना जाता रहा कि “प्रवक्ता” पर सिर्फ हिन्दूवादियों को स्थान दिया जाता है, जबकि यह सही नहीं था. अन्य विचारधाराओं के लेखकों को भी यहाँ शुरू से ही बराबरी का स्थान दिया गया.

२०११ के बाद प्रवक्ता ने “गियर” बदला और कई वेबसाईटों को पीछे छोड़ते हुए आंकड़ों की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ गया. हालांकि यह आंकड़ेबाजी अपनी जगह पर है, लेकिन तमाम पाठकों और लेखकों के मन में प्रवक्ता के प्रति एक “साफ्ट-कार्नर” हमेशा ही रहा है.

गत दो वर्ष से निजी व्यस्तताओं तथा फेसबुक नामक ब्लैकहोल की वजह से मेरा ब्लाग लेखन बहुत कम हो गया है, बीच-बीच में कुछ लेख लिखता हूँ, परन्तु मैंने संजीव भाई को शुरू से यह अनुमति दे रखी है कि वे मेरे ब्लॉग से जब चाहें, जितनी चाहें सामग्री ले सकते हैं.

प्रवक्ता की ऊर्जावान युवाओं से भरी टीम के साथ काम करना बहुत अच्छा लगता है.

मेरी समस्त शुभकामनाएं प्रवक्ता परिवार के साथ हैं, यह पोर्टल उत्तरोत्तर प्रगति करता रहे एवं प्रिंट-इलेक्ट्रानिक मीडिया से हटकर एक महत्‍त्वपूर्ण उच्चांक हासिल करे.

चित्र परिचय : भोपाल मीडिया चौपाल – 2012 में प्रवक्‍ता संपादक संजीव सिन्‍हा और लेखक सुरेश चिपलूनकर (दाएं)

1 COMMENT

  1. सुरेश जी लम्बे अंतराल के बाद आपको यहाँ देखकर बहुत अछा लगा. आशा है कि पहले के सामान आपके लेख फिर से यहाँ पढने को मिलेंगे.

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