प्रवक्ता.कॉम (अभिव्यक्ति का मंच), जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि हम यानि कोई भी हो, आम आदमी या मीडिया से संबंधित, लोग यहां बेबाक अपनी राय रख सकते है,इसलिए मैंने भी इसका सहारा लिया। मैंने पिछले साल ही अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई खत्म की,लेकिन पढ़ाई खत्म होने के बाद पता चला कि यहां नये लोगों को काम मिलना बहुत मुश्किल है। यूं तो मुझे शुरू से ही लिखने का शौक था और मैं अखबारों में समसामयिक मुद्दों पर लिखा करती थी, लेकिन एक क्षेत्रीय न्यूज चैनल में काम करने के दौरान अत्यधिक काम के कारण मैं लिखने के अपने शौक को ज्यादा टाइम नहीं दे पायी। फिर मैंने झारखंड सरकार के ऑफिशियल वेबसाइट में जनसंपर्क अधिकारी के रूप में ज्वाइन किया। यहां सारे काम ऑनलाइन करने के दौरान मैंने पाया कि ऑनलाइन तरीके से भी हम अपनी बात सब तक पहुंचा सकते हैं। तभी एक दिन गूगल में कुछ सर्च करने के दरम्यान मैं प्रवक्ता से रूबरू हुई और मैंने भी अपना एक आलेख प्रवक्ता को भेजा,लेकिन वो नहीं छपा। फिर मैंने एक सप्ताह के बाद दुबारा दूसरा लेख संजीव जी को ई-मेल किया, जो एक दिन बाद ही प्रकाशित हुआ। इस दिन मेरी खुशी का ठिकाना न था। धीरे-धीरे मैंने लिखना शुरू कर दिया और मेरे लेख प्रकाशित होते गए, एक दिन मेरे कॉलेज के एक दोस्त का फोन आया, उसने कहा कि तुम तो बहुत अच्छा लिखती हो, प्रवक्ता पर मेरा उसने लेख पढ़ा था। तब मुझे प्रवक्ता पर बहुत गर्व महसूस हुआ,मुझे इसने लेखक बनाया,मेरे अंदर की लेखन शक्ति को फिर से जगाया जो मैं भूल चुकी थी।
मैं प्रवक्ता की और संजीव सर की तहेदिल से शुक्रगुजार हूं,जो इसने मुझे लिखने का मौका दिया और एक लेखक के रूप में मुझे दुनिया से मिलवाया।