एक थे मन्ना डे

manna dey

कौन कहता है कि मन्ना डे अब नहीं रहे? उनकी सुरीली आवाज़ फ़िजाओं में अनन्त काल तक तैरती रहेगी। बेशक उन्हें उनके समकालीन गायक मुकेश, मो. रफ़ी और किशोर की तरह लोकप्रियता नहीं मिल पाई, लेकिन उनका क्लास और उनकी गायकी हर दृष्टि से अपने समकालीनों से बेहतर थी। मन्ना डे मुकेश, रफ़ी, किशोर या महेन्द्र कपूर के सारे गाने उतनी ही दक्षता से गा सकते थे, लेकिन कोई भी गायक मन्ना डे की तरह नहीं गा सकता था। मो. रफ़ी ने अपने जीवन-काल में ही अपने प्रशंसकों से कहा था – आप लोग मुझे सुनते हैं लेकिन मैं सिर्फ़ मन्ना डे को सुनता हूं। १९५० से १९७० के बीच की अवधि को संगीत की दृष्टि से हिन्दी सिनेमा का स्वर्ण-युग कहा जाता है। इस कालखंड में मुकेश, रफ़ी, महेन्द्र कपूर और मन्ना डे की चार ‘एम’ की चौकड़ी ने अपनी-अपनी विधाओं से हिन्दी गीतों को हिमालय जैसी ऊंचाई प्रदान की। आज की तिथि में चारों ‘एम’ खामोश हैं, परन्तु उनकी सुरीली आवाज़ें सदियों-सदियों तक संगीत प्रेमियों को चरम आनन्द प्रदान करती रहेंगी।

बड़ी मुश्किल से मिलते हैं ऐसे लोग इस ज़माने में,

लगेंगी सदियां हमें आपको भुलाने में।

मन्ना डे एक उच्चस्तरीय गायक थे। उनकी प्रतिभा को बहुत कम संगीतकारों ने पहचाना। श्रोता वर्ग भी उन्हें चरित्र नायकों, बुढ़े फ़कीर या कामेडियनों के गायक मानते थे। इस भ्रम को राज कपूर ने फ़िल्म श्री ४२० के माध्यम से तोड़ा। उन्होंने मन्ना दा का स्वर लिया और अविस्मरणीय़ गीत गवाया – प्यार हुआ इकरार हुआ …. दिल का हाल सुने दिलवाला। ये गाने मुकेश द्वारा गाये गये गीत, मेरा जूता है जापानी….से कम लोकप्रिय नहीं हुए। राजकपूर ने अपनी फिल्म ‘चोरी-चोरी’ के सारे गीत मन्ना डे से ही गवाए और सारे गीत मील के पत्थर बन गये। ‘आ जा सनम मधुर चांदनी में हम…….जहां भी जाती हूं वही चले आते हो – लता के साथ गाये इन युगल गीतों को कौन संगीत प्रेमी भूल सकता है? राज कपूर को प्रतिभा की सही पहचान थी। अगर उनका साथ नहीं मिला होता तो शायद मुकेश भी फिल्मी भेंड़चाल के शिकार हो गये होते। राजकपूर को मन्ना डे और मुकेश पर बहुत भरोसा था। नायक के रूप में अपनी अन्तिम फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में उन्होंने मन्ना डे की आवाज़ में जो गीत – ऐ भाई ज़रा देख के चलो……..गाया था, वह अविस्मरणीय बन गया।

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछ्ड़े चमन…सुर ना सजे क्या गाऊं मैं………कसमें वादे प्यार वफ़ा सब……..यारी है ईमान मेरा…….लागा चुनरी में दाग छुपाऊं कैसे…. मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा…..चलत मुसाफ़िर मोह लियो रे पिंजरे वाली मुनिया…………….नदिया बहे, बहे रे धारा……ज़िन्दगी कैसी है पहेली………….कितने गानों का मुखड़ा लिखें इस लेख में? मन्ना डे ने ३५०० से अधिक गाने गाये और सबके सब बेमिसाल।

मन्ना डे का जन्म १ मई १९१९ को कोलकाता में हुआ था। उस समय के प्रख्यात गायक के.सी.डे उनके चाचा थे। उन्हीं की प्रेरणा से मन्ना डे हिन्दी फिल्म जगत में आये। संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हे भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ और पद्मभूषण’ से सम्मानित किया उन्हें फिल्म जगत में अपने अद्वितीय योगदान के लिए सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ भी प्रदान किया गया। देर से ही सही मन्ना डे के साथ न्याय हुआ। उनके गायन में सागर सी गहराई थी।

प्यार के एक सागर में जब ज़िन्दगी किसी को एक पहेली लगती हो, तो दूर से आती है एक आवाज़ – आंधी कभी, तूफान कभी, कभी मजधार! जीत है उसी की, जिसने मानी नहीं हार। तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूंद के प्यासे हम। वह आवाज़ खामोश हो गई है। मन्ना डे नहीं रहे। विश्वास नहीं होता। संगीत का एक सफर अपनी सदी को छूने से पहले ठहर सा गया। फिर भी दुनिया भर में संगीत के करोड़ों प्रेमी उन्हें उनके गाये गीतों के जरिए अपने करीब महसूस करते रहेंगे। हिन्दी सिनेमा में मुश्किल गीतों की जब भी बारी आयेगी, मन्ना डे याद आयेंगे।

 

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