स्मृतियाँ

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memoriesबीनू भटनागर
समृति के जब जुड गये तार,
पंहुच गये कई वर्षो पार।
मां की ममता कभी मनुहार,
कभी कड़कती हुई फटकार।
बचपन की वो भोली यादें,
कभी यौवन की बिसरी बातें।
सखी सहेलियों की बारातें,
चुपके चुपके मनकी बातें।
सुख समृद्दि वाले दिन रात,
या दुख की जब हुई बरसात।
ये जीवन चलचित्र समान,
कभी रजनी और कभी विहान।
स्मृति के जब भी जुड गये तार
नींद उड़ी अनिन्द्रा द्वार।

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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