बीनू भटनागर
समृति के जब जुड गये तार,
पंहुच गये कई वर्षो पार।
मां की ममता कभी मनुहार,
कभी कड़कती हुई फटकार।
बचपन की वो भोली यादें,
कभी यौवन की बिसरी बातें।
सखी सहेलियों की बारातें,
चुपके चुपके मनकी बातें।
सुख समृद्दि वाले दिन रात,
या दुख की जब हुई बरसात।
ये जीवन चलचित्र समान,
कभी रजनी और कभी विहान।
स्मृति के जब भी जुड गये तार
नींद उड़ी अनिन्द्रा द्वार।