मिड डे मील : पौष्टिक बनाम दूषित भोजन खाने को मजबूर बच्चे

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-फ़िरदौस ख़ान

स्कूलों में मिलने वाला दोपहर का भोजन ‘मिड डे मील’ भी बच्चों को कुपोषण से बचाने में सहायक साबित नहीं हो पा रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-3) की रिपोर्ट के मुताबिक़ हरियाणा में 41.9 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में तीन साल से कम उम्र के क़रीब 47 फ़ीसदी बच्चे कम वजन के हैं। इसके कारण उनका शारीरिक विकास भी रुक गया है।

हालांकि हरियाणा के सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से आठवीं बच्चों को दोपहर का भोजन दिए जाने का प्रावधान है। प्राइमरी स्कूलों के हर बच्चे को मिड डे मिल के राशन में प्रतिदिन 145 ग्राम खुराक दी जाती है। मिडिल तक के बच्चों को क़रीब ढाई सौ ग्राम तक खुराक दी जानी तय है। निदेशालय द्वारा जारी मीनू के मुताबिक़ सप्ताह के पहले दिन 80 ग्राम चावल, 50 ग्राम गुड या चीनी, 15 ग्राम सोयाबीन के हिसाब से 145 ग्राम खुराक दी जाएगी। दूसरे दिन पुलाव में 85 ग्राम चावल, 64 ग्राम हरी सब्जी, 10 ग्राम मूंगफली, 5 ग्राम तेल के हिसाब के कुल 164 ग्राम राशन दिया जाएगा। तीसरे दिन पौष्टिक खिचड़ी में 80 ग्राम चावल, 30 ग्राम मूंगदाल, 5 ग्राम रिफाइंड, 10 ग्राम तेल के हिसाब से 125 ग्राम खुराक दी जाएगी। चौथे दिन के दलिया में 85 ग्राम दलिया, 10 ग्राम सोयाबीन, 2 ग्राम घी, 50 ग्राम गुड़ या चीनी के हिसाब से कुल 147 ग्राम खुराक बच्चों को दी जानी निर्धारित है। पांचवें दिन बच्चों को बाकली दी जाती है, जिसमें गेहूं की मात्रा 60 ग्राम, चना 30 ग्राम, घी 2 ग्राम, मूंगफली 10 ग्राम, आलू 50 ग्राम और हरा धनिया 10 ग्राम के हिसाब से कुल 162 ग्राम की खुराक देना तय किया हुआ है।

फ़िलहाल केंद्र सरकार भोजन की लागत के तौर पर प्राइमरी स्तर पर प्रति विद्यार्थी डेढ़ रुपए और अपर प्राइमरी स्तर पर दो रुपए देती है। इसके अलावा प्राइमरी के स्तर पर प्रति विद्यार्थी 100 ग्राम चावल या गेहूं दिया जाता है। योजना में राज्यों का भी योगदान होता है। इस बार योजना के लिए 8000 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया है, जबकि पिछली बार इसके लिए 7324 करोड़ रुपए ही दिए गए थे। मिड डे मिल कि मानदंड के मुताबिक़ प्राइमरी के बच्चों को 12 ग्राम प्रोटीन व 450 ग्राम कैलोरी और अपर प्राइमरी के बच्चों को 20 ग्राम प्रोटीन व 700 ग्राम कैलोरी युक्त भोजन दिया जाना तय किया हुआ है। इसके बावजूद बच्चों को पर्याप्त पौष्टिक आहार नहीं दिया जाता।

इस बारे में राज्यों का कहना है कि लगातार महंगाई बढ़ने से बच्चों को केंद्र के मानदंडों के मुताबिक़ पौष्टिक आहार नहीं दिया जा रहा है। राज्यों ने मिड डे मील योजना के लिए महंगाई के अनुपात में अतिरिक्त राशि दिए जाने की मांग की है। मिड डे मिल के बारे में अध्यापकों का कहना है कि आटा 16 रुपए, चावल 30 रुपए, अरहर दाल 85 रुपए, मूंग दाल 65 रुपए, मसूर दाल 65 रुपए, सफेद चना 50 रुपए, मूंगफली 80 रुपए, खाद्य तेल 70 रुपए, कच्चा सोयाबीन 60 रुपए, चीनी 35 रुपए, गुड़ 35 रुपए, आलू 25 रुपए, गोभी 30 रुपए, मटर 70 रुपए, गाजर 40 रुपए, पत्ता गोभी 30 रुपए, पालक 20 रुपए, शिमला मिर्च 40 रुपए, पेठा 20 रुपए, लौकी 20 रुपए और हरा धनिया 100 रुपए प्रति किलो है। मिर्च मसाले भी इतने ही महंगे हैं। ऐसे में इतने कम पैसों में बच्चों को पौष्टिक आहार देना नामुमकिन है। स्कूल मुखिया को बाजार से गुड, चीनी, तेल या घी, हरी सब्जियां और मिर्च मसाले खुद ही खरीदने पड़ते हैं, जबकि गेहूं व चावल प्रदेश सरकार द्वारा मुहैया करवाए जाते हैं।

अध्यापकों का कहना है कि कई स्कूलों में पर्याप्त बर्तन भी नहीं हैं। कम बजट की वजह से हर रोज किराए के बर्तन नहीं लाए जा सकते इसलिए बच्चों को मिड डे मील के लिए अपने घरों से ही थाली, कटोरी, चम्मच और गिलास लाना पड़ता है। इसके अलावा भोजन खाने के बाद बच्चों को खुद बर्तन साफ करने पड़ते हैं। इस तरह बर्तनों की साफ़-सफ़ाई में छात्रों का घंटेभर का वक्त बर्बाद हो जाता है, जिससे पढ़ाई पर असर पड़ता है।

इतना ही नहीं समय पर राशन नहीं पहुंचने पर अकसर बच्चों को दोपहर का भोजन भी नहीं मिल पाता। कई बार सड़ा हुआ दूषित अनाज भी सप्लाई किया जाता है, जिससे बच्चों को स्वच्छ भोजन दिया जाना मुश्किल हो जाता है। उनका कहना है कि कई बार निदेशालय से मिड डे मील की खुराक का बजट बढ़ाने की मांग भी उठ चुकी है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। इस मामले में शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे विभाग को स्कूलों की मांग से अवगत करा चुके हैं। साथ ही उनका यह भी कहना है कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर का है, इसलिए वे इसमें वे कुछ नहीं कर सकते।

गौरतलब है कि मिड डे मील स्कीम 15 अगस्त, 1995 में शुरू हुई थी। इस योजना का मकसद मिड डे मील के ज़रिये बच्चों को कुपोषण से बचाना है। साथ ही इसके ज़रिये दाख़िला बढ़ाने और स्कूलों में ग़ैर हाज़िर कम करने पर भी जोर देना है। यह दुनिया के सबसे बड़े पोषण कार्यक्रमों में से एक है। देश के क़रीब पचास हज़ार सरकारी स्कूलों और एजुकेशन गारंटी स्कीम केंद्रों के 12 करोड़ बच्चों को इसका फ़ायदा पहुंच रहा है।

मिड डे मील योजना लापरवाही और भ्रष्टाचार की भी शिकार रही है। बच्चों के भोजन में छिपकली, मेंढक व कीड़े मिलना, बच्चों को दूषित भोजन दिया जाना, मिड डे मील के भोजन से बच्चों का बीमार हो जाना और तयशुदा मात्रा से कम भोजन दिए जाने की शिकायतें भी आम रही हैं। पिछले साल अगस्त में कैथल ज़िले के पिलानी क़स्बे में स्थित राजकीय उच्च विद्यालय में मिड डे मील के बर्तनों में ज़हरीला केमिकल डालने की घटना ने स्कूल प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा दिया। मिड डे मील के इस राशन में बड़े-बड़े कीड़े मिले और इन्हीं कीड़ों से युक्त राशन दो महीने से बच्चे खाते आ रहे थे। बर्तनों में जहरीला केमिकल डालने की सूचना मिलते ही नायब तहसीलदार पूंडरी जयभगवान शर्मा स्कूल में पहुंचे और उन्होंने मौक़े पर पहुंच कर पाया कि मिड डे मील के सभी बर्तनों में ज़हर वाला केमिकल था। इसके बाद उन्होंने मिड डे मील के भोजन वाले कमरे का ताला खुलवाया तो वह बच्चों को दिए जाने वाले राशन को देखकर दंग रह गए, क्योंकि चावल और चना आदि में सुरसी और कीड़े पड़े हुए थे। इस नायब तहसीलदार ने स्कूल के मुख्याध्यापक और शिक्षकों को कड़ी फटकार लगाई। मिड डे मील के इंचार्ज सुनील कुमार का कहना था कि सरकार द्वारा भेजा गया भोजन ढाई महीने पुराना है और अब नमी के कारण इसमें सुरसी व कीड़े पड़ गए हैं तो इसमें उनका क्या कुसूर है। कीड़े तो घरों में रखी खाद्य सामग्री में भी पड़ जाते है। इसी तरह पिछले साल सितंबर में फ़रीदाबाद जिले के बल्लभगढ़ के सोतई गांव स्थित सोतई गांव स्थित राजकीय माध्यमिक पाठशाला में भेजे गए खाने में कीड़े पाए गए। फरीदाबाद जिले में मिड डे मील की योजना का चलाने के लिए शिक्षा विभाग ने इस्कॉन संस्था के साथ अनुबंध किया हुआ है जिसके तहत सभी सरकारी स्कूलों में मिड डे मील का भोजन भेजा जाता है। राज्य के अन्य हिस्सों का भी यही हाल है।

मिड डे मिल के अनाज में हेराफेरी की खबरें आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में इस योजना की अनेक खामियां उजागर की गईं हैं, जिससे इस योजना की ज़मीनी हक़ीक़त का पता चलता है। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मिड-डे मिल योजना में केंद्र सरकार की ओर से जारी सहायता राशि का इस्तेमाल दूसरी योजनाओं में हो रहा है। इसके अलावा इस राशि को ऑफ़िस ख़र्च के रूप में भी इस्तेमाल किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि केंद्र सरकार या खुद राज्य सरकार की ओर से जारी फंड को सरकार ने ही इस्तेमाल नहीं किया। वर्ष 2007-2008 में केंद्र सरकार ने मिड डे मिल के लिए आवंटन राशि बढ़ाकर 7313 करोड़ रुपए कर दी थी, जबकि वर्ष 2002-2003 में यह सिर्फ 1099 करोड़ रुपए थी। मिड-डे मिल के लिए कुल बजट आवंटन 19797 करोड़ रुपए का था, जबकि राज्य सिर्फ़ 18205 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाए। इतना ही नहीं मिड डे मिल के तहत स्कूल में बच्चों तक दोपहर का भोजन पहुंचाने में प्रबंधन के स्तर पर भी भारी खामियां दिखीं। कई राज्यों में अनाज पहुंचाने वाली एजेंसी का ख़र्च नहीं दिया गया, जबकि कई राज्यों में यह देखे बिना ही बिल का भुगतान कर दिया गया है कि कांट्रेक्टर सही किस्म के अनाज की सप्लाई कर रहा है या नहीं। साफ निर्देश होने के बावजूद सूखाग्रस्त इलाकों में गर्मी की छुट्टियों में मिड डे मिल नहीं बांटा गया। साफ़-सफ़ाई और पोषण के स्तर पर निगरानी में भी भारी खामी पाई गई।

दरअसल, कुपोषण के कई कारण होते हैं, जिनमें महिला निरक्षरता से लेकर बाल विवाह, प्रसव के समय जननी का उम्र, पारिवारिक खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य की देखभाल, टीकाकरण, स्वच्छ पेयजल आदि मुख्य रूप से शामिल हैं। हालांकि इन समस्याओं से निपटने के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन इसके बावजूद संतोषजनक नतीजे सामने नहीं आए हैं। देश की लगातार बढ़ती जनसंख्या भी इन सरकारी योजनाओं को धूल चटाने की अहम वजह बनती रही है, क्योंकि जिस तेजी से आबादी बढ़ रही है उसके मुक़ाबले में उस रफ्तार से सुविधाओं का विस्तार नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा उदारीकरण के कारण बढ़ी बेरोज़गारी ने भी भुखमरी की समस्या पैदा की है। आज भी भारत में करोड़ों परिवार ऐसे हैं जिन्हें दो वक़्त की रोटी भी नहीं मिल पाती। ऐसी हालत में वे अपने बच्चों को पौष्टिक भोजन भला कहां से मुहैया करा पाएंगे। एक कुपोषित शरीर को संपूर्ण और संतुलित भोजन की ज़रूरत होती है। इसलिए सबसे बड़ी चुनौती फ़िलहाल भूखों को भोजन कराना है। हमारे संविधान में कहा गया है कि ‘राज्य पोषण स्तर में वृध्दि और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में समझेगा।’ मगर आजादी के छह दशक बाद भी 46 फीसदी बच्चे कुपोषण की गिरफ़्त में हों तो ज़ाहिर है कि राज्य अपने प्राथमिक संवैधानिक कर्तव्यों में नकारा साबित हुए हैं।

परिवार एवं कल्याण राज्य मंत्री रेणुका चौधरी भी कुपोषण की इस हालत पर चिंता जताते हुए इसे भयावह और शर्मनाक करार देती हैं। उनका मानना है कि नेताओं समेत शिक्षित वर्ग का एक बडा हिस्सा कुपोषण की समस्या को समझने में नाकाम रहा है। कुपोषण के लिए कृषि में आए बदलाव को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराते हुए वे कहती हैं कि नगदी फसलों के प्रति बढे रुझान के कारण किसानों ने अपनी खाद्यान्न सुरक्षा खो दी है।

आज के बच्चे कल का भविष्य हैं। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि उन्हें भरपेट संतुलित आहार मिले। इसके लिए सरकार को पंचायती स्तर पर प्रयास करने होंगे। हमारे देश में अनाज के भंडार भरे हुए हैं, ऐसी हालत में भी अगर बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं तो इसकी जवाबदेही सरकार और प्रशासन की है।

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फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं.

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