पलायन किसी समस्या का हल नहीं है

आनन्द स्वरूप द्विवेदी

मई और जून का माह आत्महत्याओं का माह होता है। क्योंकि इसी माह में भारत के अनेक बोर्डों का हाईस्कूल और इन्टर का रिजल्ट आता है। जिसमें असफल या कम नम्बर पाने वाले बहुत से छात्र आत्म हत्या कर लेते। ऐसे अभागे छात्र जीवन को सही से समझ नहीं पाते है, स्वयं तो मरते ही है साथ मे अपने माता पिता को जन्म भर तड़्पने के लिये छोड देते है।ऐसे कायर लोग अपने समाज के साथ साथ उस परमसत्ता के भी अपराधी होते है। जिसने बडे़ अरमानों के साथ किसी विशेष प्रयोजन से इस धरती पर उन्हें भेजा है। ऐसे लोग जान ले इस संसार जिस प्रकार से दिन के बाद रात -रात के बाद दिन होता है उसी प्रकार सफलता और असफलता का क्रम चलता रहता है। व्यकि अगर जीवन कि छोटी-छोटी असफलता से घबरा कर नकारात्मक विचारों में खो जाये तो उसके जीवन में अवसाद, हताशा और कुंठाघर कर जाती है। उसके लिये जीवन एक बोझ हो जाता है। ऐसे व्‍यक्ति के चारों ओर का माहौल अन्धकार पूर्ण हो जाता उसे कुछ सूझता नही है। जिस कारण वह घबराकर आत्महत्या कर लेता है। पर व्यक्ति अगर इस असफलता को नकारात्मक दृष्टि से न देखे और अपनी असफलता को खोज कर पुनः प्रयास करे तो यह असफलता भी उसके लिये वरदान हो जायेगी। बार बार असफल होने पर भी अपने कर्म को करते रहने वाला व्यक्ति एक दिन महानता कि उचाई को अवश्य छूता है।

संस्कृत के महान व्याकरणाचार्य पाणिनि पाठ को ठीक ढ़ग से याद नहीं कर पाते थे तो एक दिन उनके गुरू ने उनका हाथ देख कर कहा कि तुम्हारे हाथ में तो विद्या रेखा है ही नहीं, तुम यहां पर व्यर्थ में अपना समय न नष्ट करो जायो, कोई काम सीख लो और रोजगार करो। पाणिनि गुरू की आज्ञा से घर को चल दिया, रास्ते में कूएं पर पानी पी रहा था तभी उसकी निगाह रहट पर पड़ी जो पत्थर का होने के बाद भी कोमल सन की रस्सी से बार बार घिसने के कारण निशान पड़ गया था। पाणिनि सोचने लगे जब बार बार घिसने से पत्थर पर कोमल रस्सी से निशान पड़ गया है तो मैं विषय को बार बार दोहरा कर क्यों नहीं याद कर सकता। यह सोच कर पाणनि आश्रम लौट आया और उसी पाणिनि ने आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का आधार ग्रन्थ अष्टाध्यायि की रचना कि अतः जीवन निराशा का नाम नहीं है।

व्यक्ति को अपने कर्मों पर भरोसा करना चाहिये हाथ की लकीरों पर नहीं। जिस प्रकार से प्रकृति में सावन और पतझड़ का क्रम लगा रहता है उसी प्रकार जीवन सफलता असफलता का क्रम लगा रहता है। अतः व्यक्ति को आशा नहीं त्यागनी चाहिये क्योंकि आशा जीवन का आधार है। लोग अपनी असफलता के लिये स्वयं को दोषी न मान कर पडोसियों तथा समाज पर उसे डालेगे बात नहीं बनी तो ईश्वर पर डाल दिया। जिसने हमें दो हाथ पैर दिया सोचने के लिये मस्तिक दिया है। उस पर भी बात न बनी तो भाग्य नामक भूत की कल्पना कर उस पर डाल दिया। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि भाग्य नामक वस्तु कहां पर रहती है? हम जो कुछ बोते है वही वही काटते है। हमरी सफलता असफलता के लिये हमारे अलावा कोई दोषी नहीं है क्योंकि हम स्वयं उस परमसत्ता के अंश है जो अनन्त और असीम है। इस किसी अन्य सत्ता मे इतना सामर्थ कहाँ कि हमारे लिये सफलता या असफलता की कामना कर सके। अगर मेहनत करने पर भी हमें सफलता न मिले तो इसका अर्थ है हम मन में कही न कहीं भय या निराशा अवश्य थी। किसी ने ठीक ही कहा है-

सबै भूमि गोपाल कि या मे अट्क कहाँ।

जाके मन मे अटक है,सोई अट्क रहाँ।

हम जो कुछ सोचते है जो कार्य करते है वही कुछ समय बाद सूक्ष्म रूप धारण कर लेता है; मानो बीज रूप है और वही इस शरीर में अव्यक्त रूप में रहता रहता है। वही कुछ समय बाद फल भी देता है। मनुष्य का सारा जीवन इसी प्रकार गढता है। वह अपना अदृष्ट स्वयं ही बनाता है। मनुष्य किसी भी नियम से बद्ध नहीं है। वह अपने नियम में तथा अपने जाल मे स्वयं ही बधा है।–स्वामी विवेकानन्द

 

बाबर ने कहा था कि ग्रहों की चाल आपकी जमामर्दी और नामर्दी की मोहताज है। हम जमा मर्द है तो ग्रह हमारे अनुकूल हम नामर्द है तो ग्रह हमार प्रतिकूल। महान ज्योतिषाचार्य गर्ग और पराशर ने कहा है कि भाग्य कोई स्‍वतंत्र सत्ता नहीं है वरन वह कर्म के आधीन कार्य करता है। आचार्य भट्टॊसल के अनुसार कर्म ही आपकी सफलता का राज है। इनके अनुसार सफलता के लिये तीन आवश्यक तत्व है।-१. एकाग्रता २.निरन्तरता ३. कुशलता। इन तीनों मे से किसी की भी कमी हमे असफल कर सकती है। अतः हमें एकाग्रता, निरन्तरता के साथ कुशलता बनाये रखना चाहिये और कर्म के पथ पर आगे बढना चहिये। निराशा रूप शैतान को आशा और मेहनत रूपी तलवार से काट कर खडे हो कर बोलो – राम काज किन्हे बिन मोही कहाँ विश्राम।

3 COMMENTS

  1. मै इस बात को बिलकुल सही मानता हु क्योकि मै क्रम पैर विस्वास करता हु और दुसरो को भी अशी ही सलाह देता हु की हराया न हिमत और बिसरे न राम क्योकि वह ही करता है सबकी बिगड़ी कम . मै रब से यही फेरयाद करता हु की है मेरा दाता nagaro से गिराना मत चाय लाख saga देना बस इतना अस्सिएर्वाद देना की महानत मेरे हो और रहमत तेरे हो kykoi इंसान मेरा करता है उनका विश्वास नहीं Marta और मै यही भी जनता हु की जब तक साँस है तुब तक आश है .अक बार लास्ट मै बोली की जय श्री राम !

  2. वाकई पलायन किसी समस्या का हल नहीं है. इस विषय पर लेखक महोदय ने अच्छा लिखा है.

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