मिलावटखोरों को फांसी दो

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निर्मल रानी

 

खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी का सिलसिला हालांकि हमारे देश में कोई नया नहीं है। परंतु इस समय मिलावटखोरी के बढ़ते नेटवर्क को देखकर तो ऐसा प्रतीत होने लगा है कि बाज़ार में उपलब्ध अधिकांश खाद्य सामग्रियां संभवत: नकली या मिलावटी ही हैं। आम उपभोक्ताओं का मंहगाई के इस दौर में इतना बुरा हाल है कि साधारण व्यक्ति अपनी रोज़मर्रा की इस पीड़ा को बता पाने के लिए शब्द तक नहीं जुटा पा रहा है। आमतौर पर उपभोक्ताओं को बाज़ार में मिलावटी, नकली, सड़ा-गला, प्रदूषित, आऊटडेटेड, रासायनिक तौर-तरीकों से पकाया गया, इंजेक्शन व रासायनिक खाद से तैयार पैदावार व सिंथेटिक व यूरिया की मिलावट वाला खाद्य व पेय पदार्थ आदि उपलब्ध हो रहा है। इत्तेफाक से यदि किसी दुकानदार के पास शुद्ध खाद्य सामग्री है भी तो वह इसकी मुंह मांगी कीमत वसूलना चाह रहा है और यदि आपने उसे उसकी मुंह मांगी कीमत किसी कथित शुद्ध खाद्य सामग्री के बदले दे भी दी तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि मापतोल में वह वस्तु आपको पूरी मिलेगी भी या नहीं। प्रत्येक वर्ष दीवाली,होली तथा नवरात्रों जैसे पवित्र धार्मिक त्यौहारों के अवसर पर हमारे देश का चौकस व जागरूक मीडिया ऐसे मिलावटी नेटवर्क का भंडाफोड़ करता रहता है। परंतु इसके बावजूद मिलावट खोरी में लिप्त माफिया है कि अपनी आदतों से बाज़ आने का नाम ही नहीं लेता।

सारा देश इस समय नवरात्रों के व्रत जैसे पवित्र धार्मिक वातावरण में अपनी दैनिक गतिविधयों को अंजाम दे रहा है। श्रद्धालु लोग इन दिनों अन्न का त्याग कर फलाहार को ही अन्न के स्थान पर ग्रहण करते हैं। नैतिकता तथा धर्म का तक़ाज़ा तो यही है कि श्रद्धालुओं तथा भक्त जनों को इन पवित्र नवरात्रों के दौरान शुद्ध से शुद्ध सामग्री उपलब्ध कराई जाए। इनका मूल्य भी वाजिब होना चाहिए तथा इन सामग्रियों की मापतौल भी पूरी होनी चाहिए। परंतु ठीक इसके विपरीत प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी वैसी ही दुर्भाग्यपूर्ण खबर आ रही है कि देश में कई स्थानों पर मिलावटी अथवा ज़हरीला कुट्टू का आटा खाने से सैकड़ों लोग बीमार पड़ गए। जबकि कुछ लोग अपनी जानें भी गंवा बैठे। कुट्टू के ज़हरीले आटे का कहर सबसे अधिक दिल्ली,पंजाब व उत्तर प्रदेश में बरपा हुआ। दिल्ली में 200 से अधिक लोग मिलावटी आटे का पकवान खाने से बीमार पड़ गए इनमें एक व्यक्ति की मृत्यु भी हो गई। जबकि उत्तर प्रदेश में 100 से अधिक लोगों के बीमार होने का समाचार है। आठ व्यक्ति गाजि़याबाद में बीमार पड़े । सौ से अधिक लोग बुलंदशहर में कुट्टू का बना पकवान खाने से गंभीर अवस्था में पहुंच गए। इसी प्रकार मुज़ फऱनगर में 22 लोगों के बीमार होने की खबरें हैं जिनमें 8 व्यक्ति एक ही परिवार के हैं। इसी प्रकार मेरठ में भी एक ही परिवार के 4 सदस्य कुट्टु का आटा प्रयोग करने से अस्वस्थ हो गए। इसी प्रकार पंजाब के अबोहर में कुट्टु के आटे से बने पकौड़े व रोटियां खाने से सौ से अधिक श्रद्धालु फूडपॉयज़निंग का शिकार हो गए। खबर है कि दुकानदार ने इन्हें कुट्टु का पुराना रखा हुआ आटा बेच दिया था। हरियाणा के हिसार में भी इसी कारणवश दर्जनों लोगों के बीमार पडऩे का समाचार है। अभी कुछ समय पूर्व ही गुज़रे शिवरात्रि के पर्व पर भी कुट्टु का ज़हरीला आटा खाने से नोएडा में 60 लोग बीमार पड़ गए थे। इस संबंध में कुछ लोग गिरफ्तार भी किए गए थे तथा उन्हें जेल भी भेजा जा चुका है। परंतु इसके बावजूद मिलावटखोरी का तथा प्रदूषित खाद्य सामग्री बाज़ार में भेजने का सिलसिला यूं ही बदस्तूर जारी है।

गत् दिनों कुट्टु के आटे में मिलावटखोरी करने वालों का जो नेटवर्क उजागर हुआ उसमें भी अब तक ग्यारह लोगों के गिरफ्तार किए जाने का समाचार है। ऐसा आटा आपूर्ति करने वाली नंदू मसाला मिल तथा किचन ब्रांड मिल को काली सूची में डाल दिया गया है। इसके मालिक को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। गौरतलब है कि ऐसी ज़हरीली खाद्य सामग्री के सेवन के बाद उल्टी,पेट दर्द, चक्कर आना, दस्त लगना तथा कमज़ोरी आना जैसी शिकायतें पैदा हो जाती हैं। परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की जान भी जा सकती है। मिलावटखोरी का ऐसा ही एक समाचार फरीदकोट के जैतो कस्बे से भी प्राप्त हुआ है। यहां अखंडपाठ के भोग का लंगर खाने से सौ से अधिक व्यक्ति बीमार पड़ गए जबकि एक ग्रंथी की मृत्यु हो गई। इस घटना में दो बच्चों की हालत अभी भी गंभीर बताई जा रही है।

 

प्रश्र यह है कि क्या मिलावटखोरी का यह सिलसिला भविष्य में भी यूं ही चलता रहेगा? क्या मिलावटखोरों के दिलों से सरकार,शासन-प्रशासन तथा जनता का भय बिल्कुल समाप्त हो चुका है? क्या मिलावटखोर माफिया धर्म व अधर्म के बीच के अंतर को बिल्कुल ही भूल बैठा है। क्या दुनिया को धर्म व नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले भारत वर्ष का यह बेशर्म व अधर्मी मिलावटखोर माफिया हमारे देश की नाक कटवाने पर ही तुला हुआ है? क्या नवरात्रे, क्या दीवाली तो क्या होली। गोया इन मानवता के दुश्मन मिलावटखोरों को अपना पैसा कमाने के सिवा इस बात का कतई एहसास नहीं होता कि वे धार्मिक त्यौहारों के खुशी भरे माहौल में रंग में भंग डालने का काम न करें। मात्र अपनी काली कमाई के चक्कर में इन्हें यह भी नहीं सूझता कि त्यौहार व खुशी के वातावरण में किसी के घर में इनकी करतूतों से मातम भी बरपा हो रहा है। मानवता के यह दुश्मन आखिर चंद पैसों की खातिर किस हद तक आम लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं? नासूर की तरह फैलते जा रहे इस रोग का वास्तविक कारण तथा इसका समाधान आखिर है क्या?

 

वास्तव में मिलावटखोरी, विशेषकर खाद्य सामग्री तथा जीवन रक्षक दवाईयों में होने वाली मिलावटखोरी के जुर्म में हमारे देश के कानून के तहत मात्र तीन वर्ष के अधिकतम कारावास का प्रावधान है। यह बात मिलावटखोरों को भी बखूबी मालूम है। वे जानते हैं कि मिलावटखोरी कर करोड़ों रुपये कमा लेने के बाद यदि वे पकड़े भी गए तो भी अधिकतम कारावास तीन वर्ष का काट कर वे आसानी से फिर बाहर आ जाएंगे तथा अपने इन्हीं काले कारनामों में पुन: संलिप्त हो जाएंगे। जबकि हकीकत तो यह है कि यह राक्षसी प्रवृति के लोग मिलावटखोरी कर धन कमाने की आड़ में आम लोगों की हत्या के प्रयास का कुचक्र रचते हैं। परिणामस्वरूप कई बदनसीब तो मौत के मुंह में समा जाते हैं। जबकि कई लोग गंभीर अवस्था में बीमार पड़ जाते हैं तथा हज़ारों रुपये खर्च करने के बाद किसी प्रकार अपनी जान बचा पाते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जानबूझ कर निरंतर किए जाने वाले ऐसे अपराधों के लिए क्या मात्र तीन वर्ष की ही सज़ा पर्याप्त है? यदि सरकार समझती है कि हां यही सज़ा पर्याप्त है तो हमें इस कटु सत्य को स्वीकार कर लेना होगा कि आने वाले दिन और भी कठिन व चुनौतिपूर्ण हो सकते हैं। क्योंकि मिलावटखोरों, चोरों, बेईमानों, कम तोलने वालों, नकली सामग्री बनाने व बेचने वालों के हौसले बेइंतहा बुलंद होते जा रहे हैं। धन के लालच ने इन्हें इस कद्र अंधा कर दिया है कि इन्हें इस बात की कोई परवाह ही नहीं कि इनके द्वारा बेची जाने वाली खाद्य सामग्री से किसी व्यक्ति की जान भी जा सकती है और कई घर बरबाद भी हो सकते हैं।

 

लिहाज़ा यदि सरकार देश की साधारण, बेगुनाह तथा श्रद्धालु प्रवृति की आम जनता को ऐसे भ्रष्ट व मिलावटखोर दरिंदों के प्रकोप से मुक्त रखना चाहती है तो यथाशीघ्र संविधान में संशोधन करते हुए इनके विरुद्ध ऐसे नए कानून बनाए जाने चाहिए जिसमें कि खाद्य पदार्थों तथा जीवन रक्षक दवाईयों में मिलावटखोरी करने वालों को सज़ा-ए-मौत दिए जाने की व्यवस्था हो। और जो लोग मिलावटखोरी के इस नेटवर्क से जुड़े हों तथा जानबूझ कर केवल अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में ऐसी सामग्री उपभोक्ताओं तक पहुंचा रहे हों उन्हें भी फांसी या कम से कम आजीवन कारावास की सज़ा अवश्य दी जानी चाहिए। मिलावटखोरी का भंडाफोड़ समय-समय पर मीडिया लगातार करता रहता है। परंतु उसके बावजूद सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। और सरकार की यही उदासीनता मिलावटखोरों की हौसला अफज़ाई करने का कारण बन जाती है। अत: देशहित तथा जनहित में ज़रूरी है कि इस राक्षसी प्रवृति पर लगाम लगाई जाए तथा अदालती हुज्जत पूरी कर यथाशीघ्र किसी न किसी दोषी को फांसी के फंदे पर लटका भी दिया जाए ताकि शेष मिलावटखोर सबक ले सकें तथा अपनी हरकतों से बाज़ आएं।

2 COMMENTS

  1. निर्मला जी बधाई आम जनमानस की आवाज का शब्दों का रूप देकर बुलंदी पर पहुचा िदया है । वास्तव में आज के उपभोक्ता के सामने यह समस्या खडी हो गई है कि क्या शद्ध आैर क्या अशुद्ध एेसे में सरकारी मशीन िसर्फ व्यापारियों से जाच के नाम पर रूपयों को वसूल करती है । अब समय आ गया कि आमजन में से कोई एक अन्ना बनकर इनसे आजादी दिलावे

  2. अपनी अधेड़ आयु में शीर्षक पढते ही लेख के भाव जान लेना मेरे लिए स्वाभाविक क्रिया है| इस कारण लेख को पढ़ने से अधिक लेखक के प्रयास और उसके एक अच्छे नागरिक हो समाज के प्रति चिंता की सरहाना करता हूं| मिलावटखोरों को कोई फांसी नहीं देगा क्योंकि जो वस्तु वह बनाता है और बेचता है वह हाथों हाथ बिक जाती है और प्राय देखने में आता है कि मिलावटखोर हम में किसी का भाई, पिता, चाचा, मामा और न जाने किस किस रिश्ते में हमारे संग समाज में रहते स्वयं किसी दूसरे मिलावटखोर से पीड़ित जोर से चिल्लाता है, “मिलावटखोर को फांसी दो!”
    मेरी २००७ भारत यात्रा के समय राजपुरा स्थित गुरु किरपा वैष्णव ढाबा के मालिक के कृत्रिम दूध बनाने के अपराध में पकडे जाने पर एक राजनीतिज्ञ ने उसको क्षमा करने का सुझाव दिया| उस राजनीतिज्ञ के विचार में मिलावट से अधिक मिलावटखोर का पकडे जाना ही उसका अपराध है| मिलावट तो सभी करते हैं| मैं तो कहूँगा, “राजनीतिज्ञ को फांसी दो|”

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