अपनी ग़ज़ल समाज का तू आईना बना…..

इक़बाल हिंदुस्तानी

वो शख़्स है मक्कार कहूं या ना कहूं मैं,

छिपकर करेगा वार कहूं या ना कहूं मैं।

 

रोटी ना अमन चैन पढ़ाई ना दवाई,

ग़ायब सी है सरकार कहूं या ना कहूं मैं ।

 

जिसने हमारे बीच में दीवार खड़ी की,

होगा ही बहिष्कार कहूं या ना कहूं मैं।

 

ताक़त से फ़न पे रोक लगाने चले हैं लोग,

मरता नहीं विचार कहूं या ना कहूं मैं।

 

मेरी ये पूंजी है कि शहर मेरे नाम पर,

करता है ऐतबार कहूं या ना कहूं मैं।

 

अपनी ग़ज़ल समाज का तू आईना बना,

छापेगा हर अख़बार कहूं या ना कहूं मैं।

 

ग़ज़लें किसी की नाम गला पैसा किसी का,

अच्छा है कारोबार कहूं या ना कहंू मैं।

 

दुश्मन भी घर पे आये तो बच्चे मेरे सदा,

करते हैं नमस्कार कहूं या ना कहूं मैं।।

 

नोट-मक्कारः धूर्त, फ़नः कला, ऐतबारः विश्वास, आईनाः दर्पण

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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