संर्दभःमोदी ने उठाया वाडरा-डीएलएफ से जुड़ा भूमि सौदे का मामला
प्रमोद भार्गव
सत्ता के दुरूपयोग से आर्थिक साम्राज्य कैसे खड़ा किया जा सकता है,इसका ताजा उदाहरण एक समय दुनिया की सबसे ताकतवर महिला हस्ती रहीं सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाडरा हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा की एक चुनावी सभा में वाडरा और डीएलएफ के बीच गलत तरीके से हुए सौदे को उठाया। मोदी ने दावा किया कि इस सौदे को मंजूरी हरियाणा सरकार ने आदर्श चुनाव अचार संहिता लागू होने के बाद दी है। मोदी ने इस मुद्दे को उठाते हुए चुनाव आयोग से कार्रवाई की आशा जताई थी। आयोग ने मामले को संख्यान में लेते हुए मामले की छानबीन शुरू कर दी है। आयोग की जांच का निष्कर्ष कुछ भी निकले,अलबत्ता यह तो बहुत पहले ही तय हो चुका है कि वाडरा ने अपना आर्थिक साम्राराज्य सत्ता के दुरूपयोग से खड़ा किया है। किंतु इस प्रसंग का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि मोदी चुनावी सभाओं में तो सोनिया के दामाद के खिलाफ खूब हुंकार भरते है,लेकिन कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के नजरिए से कोई कार्रवाई नहीं करते।
44 साल के रॉबर्ट वाडरा सिर्फ दसवीं तक पढ़े हैं। अपने देश में दसवीं पास को बाबू की नौकरी की पात्रता भी नहीं है। लेकिन जब आप किसी राजनीतिक घराने के वंश-वृक्ष से जुड़े हों तो आपको तुच्छ सरकारी नौकरी करने की जरूरत ही क्या है ? यही हाल राबर्ट का है। रॉबर्ट की गैरकानूनी अकूत संपत्ति का खुलासा अमेरिकी अखबार वाॅल स्ट्र्रीट जनरल भी कर चुका है। यह खोजी रपट जमीन-जायदाद के जानकारों से बातचीत,रोबर्ट वाडरा की कंपनियों की फाइलें और जमीनों से संबंधित दस्तावेजों के आधार पर तैयार की गई थी। अखबार की बेबसाइट पर भी यह खबर दर्ज है। खबर के अनुसार वाडरा ने 2007 में एक लाख रूपए की धनराशि से कंपनी शुरू की। कंपनी ने 2012 में 12 मिलियन डॉलर यानी करीब 72 करोड़ की संपत्ति बेच भी दी। बावजूद उनका 42 मिलियन डॉलर यानी लगभग 253 करोड़ से ज्यादा के भूमि और भवनों पर मालिकाना हक है। मसलन वाडरा की कंपनी ने पांच साल के भीतर सत्ता की जादुई छड़ी हवा में लहराकर 325 करोड़ रूपए से अधिक की संपत्ति बना ली। संपत्ति में यह रहस्मायी बढ़ोत्तरी चैंकाने वाली है।
सोनिया गांधी के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार सिंहसनारूढ़ हुई,तब तक वाडरा सस्ते गहनों के निर्यात का व्यापार बहुत छोटे पैमाने पर करते थे। 2007 में वाडरा जायदाद के कारोबार में उतरे और स्काई लाइट हास्पिटेलिटी प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी बनाई। कॉर्पोरेट ऑफ़ आॅफेयर्स मंत्रालय के मातहत काम करने वाले रजिस्ट्रार ऑफ़ कंपनीज के मुताबिक इस कंपनी की शुरूआत वाडरा ने महज एक लाख की पूंजी से की थी,जिसने बहुत छोटे समय में चैंकाने वाली तरक्की करके मेहनतकश कारोबारियों को हैरत में डाल दिया। क्योंकि ऐसा क्रोनी कैपिटल मसलन आवारा पूंजी के इस्तेमाल बिना संभव नहीं है ? इस लंपट पूंजी की लंपटता के बरक्ष अच्छे-अच्छों के ईमान डोल जाते हैं। फिर जिस समय वाडरा ने जायदाद के कारोबार की बुनियाद रखी थी,तब वे न केवल जबरदस्त आर्थिक संकट झेल रहे थे,बल्कि अपने परिवार में हो रहीं लगातार अकाल मौतों के चलते मानसिक परेशानी से भी गुजर रहे थे। इस विपरीत परिस्थिति में उन्हें इस लंपट पूंजी ने जीने की नई जमीन तैयार करने का काम किया।
रॉबर्ट वाडरा की इस अनुपातहीन संपत्ति का दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ खुलासा आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल भी कर चुके हैं। उनके मुताबिक 2007-08 में वाडरा ने 50 लाख की पूंजी से अपने और अपनी मां के नाम से पांच कंपनियां पंजीकृत कराई थीं। कालांतर में 2012 तक वाडरा 300 से 500 करोड़ के मालिक बन बैठे। भूमि और भवन निर्माण की बड़ी कंपनी डीएलएफ ने वाडरा को 65 करोड़ रूपए वापिसी की कोई षर्त तय किए बिना ब्याज मुक्त कर्ज दिया। इस दया के आलावा पांच फ्लैट भी वर्तमान बाजार मूल्य से कम कीमत पर दिए। कोई भी पेशेवर व्यापारी बिना किसी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ के ऐसी अनुकंपा नहीं बरतता।
केजरीवाल ने प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण के साथ कहा था कि हरियाणा में कांग्रेस सरकार है। सरकार ने अदृश्य इशारे पर डीएलएफ को अनुचित लाभ पहुंचाया। कानून ताक पर रखकर 1700 करोड़ रूपए की 350 एकड़ जमीन डीएलएफ को दी। इसमें 75 एकड़ जमीन हरियाणा विकास प्राधिकरण की थी। यही नहीं राज्य सरकार ने किसानों के साथ धोखाधड़ी करते हुए गुड़गांव में जो 30 एकड़ जमीन सरकारी अस्पताल के निर्माण के लिए अधिग्रहण की थी,वह जमीन विशेष आर्थिक क्षेत्र निर्माण के लिए डीएलएफ को स्थानांतरित कर दी। इसी दौरान वाडरा ने डीएलएफ के 25 हजार शेयर खरीदे और सेज में पचास फीसदी के भागीदार भी बन गए। इससे इस भूमि के अधिग्रहण और उसके उपयोग में परिवर्तन के सवाल भी खड़े हुए ? जो भूमि जन सामान्य के स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए अस्पताल के निर्माण के लिए तय थी,उसके बुनियादी उपयोग को दरकिनार कर कारोबारी लाभ में बदल दिया गया। गुड़गाव के आईएएस आधिकारी अशोक खेमका ने जब भूमि के उपयोग संबंधी परिर्वतन की जांच शुरू की तो हरियाणा सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया था। और फिर सरकार के पिट्ठू अधिकारियों से जांच कराकर मामले की लीपापोती कर दी गई थी।
वाडरा ने अपने दामन पर लगे दागों को धोने के लिए उस समय यह भी दावा किया था कि उन्हें अचल संपत्ति खरीदने के लिए कार्पोरेशन बैंक ने कर्ज दिया था। जबकि बैंक की संबंधित शाखा ने इस दावे का तत्काल खंडन कर दिया था। इस कर्ज की हकीकत का पता लगाने की कोशिश किसी भी जांच एजेंसी ने नहीं की ? इन हालातों को सत्ता का दुरूपयोग करके आर्थिक सामा्रज्य खड़ा कर लेना न कहा जाए तो क्या कहा जाए,यह राजनीति से जुड़े लोग ज्यादा अच्छे से जानते हैं ? मोदी ने महज बहुचर्चित मुद्दा एक बार फिर से उछालने का काम भर किया है। आगे वे इसकी तह में पहुंचने की कोशिश करेंगे,ऐसी उम्मीद उनसे नहीं है। शगुफा छोड़ना महज चुनाव का सियासी फंडा है।