पुरानी दोस्ती,नए आयाम

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Putin_Modiसंदर्भः- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा-

प्रमोद भार्गव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा ने पुरानी दोस्ती को नए आयाम देने का अद्धितीय काम किया है। राजग के केंद्रीय सत्ता में आसीन होने के बाद कांग्रेस और वामपंथी हलकों में ऐसा अनुभव किया जा रहा था कि यह दक्षिणपंथी सरकार रूस को कम महत्व देगी। पश्चिमी देशों में खासकर अमेरिका,ब्रिटेन,आस्ट्रेलिया और फ्रांस से भारत के गहराते रिश्तों के चलते भी यह आशंका अपनी जगह कायम थी। शंका इसलिए भी गहराई हुई थी,क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के आत्मीय संबंधों के बीच भारत जहां पश्चिमी देशों को निवेश के लिए आमंत्रित कर उनसे दोस्ताना संबंध बनाने में जुटा है,वहीं रूस,सीरिया के संदर्भ में पश्चिमी देशों के निशाने पर है। लेकिन सालाना शिखर सम्मेलन में भागीदारी करने से पहले मोदी ने खुलासा कर दिया था कि ‘रूस दुनिया में भारत के सबसे मूल्यावन दोस्तों में से एक है। इसके साथ ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मोदी के रूस पहुंचने पर शांतिऔर अंहिसा के पुजारी महात्मा गांधी की हस्तलिखित डायरी के पृष्ठ और तलवार भेंट करके प्रतिकात्मक संकेत दिया है कि वह भारत के शस्त्र और शास्त्र सम्मत दोनों ही प्रकार के हित साधेगा। मसलन रूस भारत को सुरक्षा संबंधी तकनीक भी देगा और रक्षा के क्षेत्र में भारत को शाक्तिशाली बनाने की दृष्टि से हथियार भी देगा। तय है,पुरानी दोस्ती प्रगाढ़ तो हो ही रही है,परिणाममूलक भी साबित हुई है।

मोदी के रूस पहुंचने पर पहली ही मुलाकत में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मोदी को राष्ट्रपति महात्मा गांधी की डायरी का एक पृष्ठ और अठाहरवीं सदी की भारतीय तलवार उपहार स्वरूप दिए। डायरी के पन्ने पर गांधी की ही हस्तलिपि में कुछ उल्लेखनीय बातें दर्ज हैं। जबकि तलवार पश्चिम बंगाल मूल की है। इस पर चांदी की कलाकृति बनी है। यदि इन दोनों अमूल्य धरोहरों के प्रतिकार्थ निकालें तो रूस का भारत को संकेत है कि वह शास्त्र और शस्त्र दोनों ही स्तर पर भारत की मदद करेगा। गुरूवार 24 दिसंबर 2015 को दोनों देशों के बीच हुए द्धिपक्षीए समझौतों के बाद जो निष्कर्ष सामने आए,उनसे साफ हुआ कि कई हथियारों और रक्षा उपकरणों का उत्पादन भारत में होगा और इस दौरान रूस भारतीय वैज्ञानिकों को निर्माण तकनीक में दक्ष भी करेगा। दरअसल पश्चिमी देशों के बाद रूस,चीन और जापान ही ऐसे देश हैं,जो हथियारों के निर्माण की शास्त्रीय विधि से लेकर शस्त्रों से शत्रु पर आक्रमण व आत्मरक्षा करने में पारंगत देश हैं। रूस से इस तकनीक के हस्तांतरण के बाद भारत भी इन देशों की पांत में शामिल हो जाएगा। हालांकि भारत ने किसी अन्य देश की मदद के बिना मिसाइल क्षेत्र और अंतरिक्ष अभियान में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है।

वैसे भी रूस भूतकाल में भारत का अहम् सैन्य एवं राजनीतिक सलाहकार रहा है। 1971 में पाकिस्तान से भारत के हुए युद्ध के समय रूस ने भारत को खुली मदद की थी। यहां तक की परमाणु हथियारों से लैस अपना जहाजी बेड़ा भारत के रक्षा संबंधी हितों के लिए बंगाल की खाड़ी भेज दिया था। इसी दौर में रूस ने भारत को परमाणु उपकरण दिए। जबकि अन्य परमाणु शक्ति संपन्न देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगाया हुआ था। इसी दौर में रूस ने भारत को अंतरिक्ष तकनीक भी दी और भारत के वैज्ञानिक राकेश शर्मा को चंद्रमा की यात्रा कराई। राकेश शर्मा रूस की मदद से ही भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री बनने में सफल हुए थे। रूस की इस कृतज्ञता से भारत कभी ऋण-मुक्त नहीं हो सकता है। जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी के कार्यकाल तक रूस ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर के मसले पर भी भारतीय प़क्ष का हमेशा पुरजोर सर्मथन किया है।

हालांकि इस यात्रा के प्रमुख आयाम रक्षा और परमाणु क्षेत्र रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में 40 हजार करोड़ रुपए की रूसी वायु रक्षा प्रणाली-एस-400 ट्रिम्फ का सौदा हुआ है। इसकी पांच ईकाइयां खरीदी जाएंगी। इस रक्षा प्रणाली की खूबी यह है कि यह 400 किलोमीटर तक के दायरे में दुश्मन के विमानों,मिसाइलों और द्रोणों को नश्ट करने में सक्षम है। इस सौदे के बाद भारत मिसाइल रक्षा खरीद में दूसरा बड़ा देश बन जाने की कतार में आ खड़ा हुआ है। मध्यम और लंबी दूरी की मिसाइलों से लैस यह प्रणाली 400 किमी की दूरी तक हवाई हमलों को नाकाम करने में समर्थ है। इसके साथ ही जल,थल और नभ तीनों सेनाओं के लिए 25 हजार करोड़ रुपए के दूसरे रक्षा उपकरणों की खरीद को भी हरी झंडी मिली है। पिनाका मल्टी बैरल राॅकेट लाॅन्चर,पेचैरा मिसाइल प्रणाली,नौसेना के लिए फ्लीट स्पोर्टशिप,इलेक्ट्रोनिक युद्ध प्रणाली एवं अन्य कई प्रकार के सैन्य उपकरण खरीद को अमल में लाया गया है।

रूस और भारत मिलकर भारत में 200 कमोव-226 टी हेलीकाॅप्टर का निर्माण करेंगे। रक्षा क्षेत्र के इस साक्षा उत्पादन को मोदी की ‘मेक इन इंडिया‘ पहल के तहत एक मिसाल माना जा रहा है। रूस के साथ परमाणु ऊर्जा और हाइड्रोकाॅर्बन के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय समझौते हुए हैं। इनके अलावा भारत रूस से परमाणु पनडुब्बी पट्टे पर लेने की भी संभावनाएं तलाश रहा है। साथ ही भारत और रूस के बीच समुद्र में तेल और गैस की खोज संबंधी परियोजनाओं पर अहम् चर्चा हुई है। अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरा ऐसा बड़ा देश है,जो इन ईंधनों का बड़ी मात्रा में आयात करता है। इस मकसद पूर्ति के लिए भारत को बड़ी तादात में विदेशी मुद्रा खपानी पड़ती है। अमेरिका ने अपने खर्च का लगभग 80 फीसदी तेल अपने ही देश में उत्पादन करने में कामयाबी हासिल कर ली है। इसलिए अब उसे तेल के क्षेत्र में ज्यादा चिंता नहीं है। मोदी और ओबामा की प्रगाढ़ होती दोस्ती के बावजूद वह भारत को तेल उत्पादन संबंधी अनुसंधान में मदद नहीं कर रहा है। रूस अपनी क्षमताओं के बूते अरब देशों को पीछे छोड़ दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश बन गया है। जाहिर है,रूस उत्पादन की उत्तम तकनीक का जानकार देश है। यह तकनीक भविश्य में यदि रूस भारत को दे देता है तो भारत भी तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में सक्षम हो जाएगा।

सीरिया को लेकर रूस नाजुक दौर में है। पश्चिमी देशों की जबरदस्त जुगलबंदी के चलते इन देशों ने रूस से उपभोक्ता वस्तुओं का आयात कम कर दिया है। इस कारण रूस का बाजार प्रभावित हो रहा है। बाजार की मंदी से उबरने की दृष्टि से रूस की नजर भारत के बाजार पर टिकी है। रूस की मंशा है कि भारत 2025 तक रूस के साथ द्विपक्षीय व्यापार 10 अरब डाॅलर से बढ़ाकर 30 अरब डाॅलर तक पहुंचाने की कोशिश करे। फिलहाल रूस में भारत का निवेश  7 अरब डाॅलर और भारत का रूस में निवेश 3 अरब डाॅलर के करीब है। भारत चीन से आयात कम कर दे तो रूस से आयात बढ़ने का रास्ता खुल सकता है ? दरअसल सीरिया के मुद्दे पर भारत और रूस का मिला-जुला नजारिया है। दोनों देश चाहते हैं कि सीरिया में जारी गृहयुद्ध का ऐसा सामाधान निकले,जिसका नेतृत्व सीरिया की घरेलू राजनीतिक शाक्तियां ही करें। कालातंर में ऐसा संभव होता है तो इस्लामिक स्टेट आॅफ इराक एंड सीरिया के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगेगा। स्थानीय अवाम को आखिर में घरेलू नेतृत्व को स्वीकारने में कोई ऐतराज भी नहीं होगा ? साथ ही भारत रूस से आतंकवाद से निपटने के तौर-तरीकों की भी जानकारी लेगा। जिससे भारतीय सेना और पुलिस के सीमापार से जारी आतंकवाद की मुष्कें कसने में मदद मिले। पुरानी दोस्ती को मिले नए आयामों से यह तय हुआ है कि पश्चिम देशों से भारत की चाहे जितनी निकटता क्यों न बढ़ जाए,अंततः भारत का स्वाभाविक मित्र रूस ही है,क्योंकि जिन रक्षा तकनीकों को देने में अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देश आनाकानी करते रहे हैं,उनके भारत में साझा उत्पादन को रूस सहज रूप से तैयार है।

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