मोदी की कार्यकुशलता ने किया सिर ऊंचा

0
257

-प्रवीण दुबे-

Narendra_Modiदस वर्षों में पहली बार देशवासियों का सिर गर्व से ऊंचा हो गया है। हो भी क्यों न, हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी जापान यात्रा के द्वारा जिस प्रकार की छाप छोड़ी है उसकी जितनी सराहना की जाए कम है। एक हिन्दुस्तानी का कार्य-व्यवहार कैसा होता है? मोदी ने इसे सिद्ध करके दिखाया है।
जरा याद कीजिए उन दस वर्षों को जब विश्व बिरादरी में भारत की छवि एक निस्तेज और अप्रभावी राष्ट्र जैसी बन गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने न केवल अपने परम्परागत पड़ोसियों नेपाल, भूटान आदि की अनदेखी की बल्कि विश्व कूटनीति के धरातल पर भी वे कोई भी छाप छोड़ने में असफल रहे। यही वजह रही कि जापान जैसे देश भी भारत से दूर होते चले गए। मोदी ने इस बात को बखूबी समझते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालते ही सबसे पहले सार्क देशों को आमंत्रित किया। मोदी ने नेपाल, भूटान जैसे करीबी पड़ोसियों की यात्रा भी की और उनका दिल जीत लिया। इस सबके पीछे मोदी का एक ही संदेश और एजेंडा था कि पड़ोसी कितना ही छोटा व कम ताकतवर क्यों न हो भारत उससे एक सहयोगी और बड़े भाई जैसे संबंध रखना चाहता है।

सामरिक दृष्टि से से भी विचार किया जाए तो पिछले कई वर्षों में चीन ने नेपाल और भूटान जैसे सीमावर्ती देशों को पुचकारने का काम किया है। इसके पीछे उसका एक ही मकसद रहा है कि वह कैसे भी भारत को उसके परम्परागत पड़ोसियों से दूर करे और इसका सामरिक लाभ उठाए। बड़े अफसोस की बात है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सब कुछ जानते समझते हुए भी इन पड़ोसियों के निकट नहीं पहुंचे।

जहां तक जापान का सवाल है कई दशकों से जापान भारत का बड़ा तकनीकी सहयोगी रहा है। वह जापान ही है जिसके सहयोग के कारण ही भारतवासियों का छोटी कार का और मोटर साइकिल का सपना पूर्ण हो सका था। जापान ने ही मारुति कार और यामा जैसी मोटर साइकिल की तकनीक भारत को दी थी। यह बेहद अफसोसजनक बात है कि 80 के दशक में जिस कांग्रेस के युवा नेता संजय गांधी के प्रयासों से जापान ने भारत को मारुति का तोहफा दिया उसी कांग्रेस के नेता मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल में भारत सदैव अपने जापान जैसे सबसे विश्वासपात्र तकनीकी साझेदार का देश की तरक्की में कोई लाभ नहीं ले सका।

अब नरेन्द्र मोदी ने पिछले दस वर्ष के इस शून्य को भरने की सफल कोशिश की है। मोदी की जापान यात्रा और वहां उनके व्यक्तित्व ने जो जादू किया है उसी का यह परिणाम है कि वहां के प्रधानमंत्री शिंजो आबेे ने सदियों पुरानी जापानी परंपरा के तहत भारतीय प्रधानमंत्री को विशेष सम्मान दिया और इस पार्टी में श्री आबे खुद मेजबान की भूमिका में नजर आए। निश्चित ही यह भारत और जापान के बीच प्रगाढ़ होते संबंधों का संकेत कहा जा सकता है। इसका श्रेय मोदी को ही जाता है। मोदी ने अपनी यात्रा से जापान पर ऐसी छाप छोड़ी कि जापान ने भारत में विकास को गति देने के लिए अगले पांच वर्षों में 2.10 लाख करोड़ रुपए के नए निवेश का प्रस्ताव भारत को दिया। जापान ने बुनियादी ढांचा सुविधाओं और स्मार्ट शहरों के निर्माण सहित कई योजनाओं जिनमें कि बुलेट टे्रन प्रणाली का विकास भी शामिल है के वित्त पोषण के लिए अगले पांच वर्ष में 3500 अरब येन का निवेश करने का भरोसा भी मोदी को दिया। कुल मिलाकर मोदी की जापान यात्रा बेहद सफल कही जा सकता है और यह मोदी की कार्य कुशलता का बेहतरीन प्रमाण भी है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here