कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी में हैं मोदी के आलोचक!

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-संजय द्विवेदी-
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनाकांक्षाओं के उस उच्च शिखर पर विराजे हैं जहां से उन्हें नीचे ही आना है। चुनावी सभाओं में उनकी वाणी पर मुग्ध राष्ट्र उन्हें मुक्तिदाता मानकर वोट कर चुका है। किंतु हमें समझना होगा कि यह ‘टीवी समय’ है। इसमें टीवी को हर दिन एक शिकार चाहिए। टीवी चैनलों को मैदान में गए बिना और कोई खर्च किए बिना बन जाने वाली ‘उत्तेजक टीवी बहसें’ चाहिए, जो निश्चय ही किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती और उनका एजेंडा पहले से सेट होता है। इसमें अतिथि वक्ता और एंकर की जुगलबंदियां भी अब दिखने लगी हैं। जाहिर तौर इन बहसों का सबसे आसान शिकार ‘सरकार’ ही होती है। कल तक जो सत्ता में थे, वे इसके ‘शिकार’ बने और अब नरेंद्र मोदी सरकार इसके निशाने पर है।

आप देखें तो नरेंद्र मोदी जिन ताकतों के घता बताकर दिल्ली के शासक वर्गों को चुनौती देते हुए वहां पहुंचे हैं। वे आसानी से उन्हें स्वीकार कहां करने वाले हैं। भाजपा और संघ परिवार का संकट यह है कि उनके पास न तो बौद्धिक योद्धाओं की लंबी-चौड़ी जमात है, न ही राजनीतिक-सामाजिक-मीडिया विमर्श को नई राह दिखाने वाले व्याख्याकार। ये व्याख्याकार और टिप्पणीकार वही हैं जिन्हें मोदी और उनकी सरकार पहले दिन से नापसंद है। वे उस सिर्फ उस विचार से नफरत नहीं करते जिसे नरेंद्र मोदी मानते हैं, उन्हें नरेंद्र मोदी से व्यक्तिगत धृणा भी है। शायद इसीलिए सरकार के साधारण फैसलों पर जैसा मीडिया हाहाकार व्याप्त है, वह आश्चर्य में डालता है। नई सरकार भी इससे घबराई हुयी लगती है और उसका प्रबंधन कमजोर नजर आता है। क्या ही अच्छा होता कि रेलभाड़ा बजट में ही बढाया जाता और यदि तुरंत बढ़ाना जरूरी था तो सरकार समूचे तर्कों के साथ जनता के बीच आती और बताती कि रेलवे के आर्थिक हालात यह हैं, इसलिए किराया वृद्धि जरूरी है और किराया बढ़ाने से जो धन आ रहा है उससे सरकार क्या करने जा रही है। नरेंद्र मोदी का सम्मोहन अभी टूटा नहीं है, जनता उनकी हर बात को स्वीकार करती। वे टीआरपी दिलाते हैं, इसलिए उनकी बात जनमाध्यमों से अक्षरशः लोगों को पहुंचती। किंतु मोदी ने भी लंबी खामोशी की चादर ओढ़ ली और लंबे समय बाद एक बयान ट्विटर पर दिया जिसमें समाधान कम तल्खी और दुख ज्यादा था। नरेंद्र मोदी को यह समझना होगा कि वे वास्तव में इस देश के प्रभुवर्गों, शासक वर्गों, वैचारिक दुकानें चलाने वाले बहसबाजों, नामधारी और स्वयंभू बौद्धिकों और टीवी चर्चाओं में मशगूल दिल्लीवालों के नेता नहीं है, वे उन्हें नेता मान भी नहीं सकते क्योंकि मोदी उनकी सारी समझ को चुनौती देकर यहां पहुंचे हैं। मोदी को जनता को प्रधानमंत्री चुन लिया है किंतु यह वर्ग उन्हें मन से स्वीकार नहीं कर पाया है। इसलिए मोदी सही कहते हैं कि“उन पर 100 घंटे में हमले तेज हो गए।” लोकतंत्र की इस त्रासदी से उन्हें कौन बचा सकता है?जबकि उनके पास सांसदों का संख्या बल और जनसमर्थन तो है किंतु बौद्धिकों का खेमा जो यूपीए-3 के इंतजार में बैठा था, उसे मोदी कहां सुहाते हैं।

यह सोचना कितना रोमांचक है कि यूपीए-3 की सरकार केंद्र में बन जाती तो उसके नेताओं की देहभाषा और प्रतिक्रिया क्या होती? जिस लूट तंत्र और दंभी शासन को उन्होंने दस साल चलाया और मान-मर्यादाओं की सारी हदें तोड़ दीं, उसके बावजूद वे सरकार बना लेते तो क्या करते? यह सोच कर भी रूहें कांप जाती हैं। किंतु जनता का विवेक सबसे बड़ा है वो टीवी बहसबाजों और बौद्धिक जमातों पर भारी है। जनता के केंद्र में भारत है, उसके लोग हैं, उनका हित है किंतु हमारी बौद्धिक जमातों के लिए उनकी कथित विचारधारा, सेकुलरिज्म का नित्य आलाप, उनकी समाज तोड़क सोच देश से बड़ी है। वे ही हैं जो कश्मीर में देशतोड़कों के साथ खड़े हैं, वे ही हैं जो माओवादी आतंक के साथ खड़े हैं, वे ही हैं जो जातियों,पंथों की जंग में अपने राजनीतिक विचारों को पनपते हुए देखना चाहते हैं, वे ही हैं जो यह मानने को तैयार नहीं है कि भारत एक राष्ट्र है। वे इसे अंग्रेजों द्वारा बनाया गया राष्ट्र मानते हैं। इसलिए उन्हें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जैसे शब्दों से नफरत है। वे गांधी, लोहिया, दीनदयाल और जयप्रकाश के सपनों का देश बनते नहीं देखना चाहते। उन्हें पता है कि भारत का अगर भारत से परिचय होता है तो उनके समाज तोड़क नकारात्मक विचारों की दूकान बंद हो जाएगी। इसलिए वे मोदी के चुनावी नारे“अच्छे दिन आने वाले हैं” का मजाक इसलिए बनाते हैं क्योंकि कुछ जरूरी चीजों के दाम बढ़ गए हैं। किसे नहीं पता था कि चुनाव के बाद चीजों के दाम बढ़ेंगें? किसे नहीं पता था कि सरकारों को देश चलाने के लिए कुछ अप्रिय कदम उठाने पड़ते हैं? किसे नहीं पता था कि चुनावी नारे और सरकारें चलाने कि वास्तविकता में अंतर होता है? सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना और अपने रचे नकारात्मक विचारों के संसार में विचरण करने वालों की चिंताओं को छोड़िए। यह भी देखिए कि सरकार के कदम उसकी नीयत कैसे बता रहे हैं। कोई सरकार कैसे काम करेगी, उसके प्राथमिक यह कदम बता देते हैं। मोदी का पहला महीना चीनी, रेलवे भाड़ा बढ़ाने वाला साबित हुआ है किंतु हमें यह भी सोचना होगा कि हमारी अर्थव्यवस्था को अभी लंबी यात्रा तय करनी है। देश का बजट ही उसकी दिशा तय करेगा। वित्तमंत्री अरूण जेतली के बजट का अभी सभी को इंतजार है। उससे ही सरकार के सपनों और उम्मीदों की दिशा तय होगी। इतना तय है कि सरकार की नीयत पर अभी शक नहीं किया जा सकता। मोदी ने जिस तरह प्रधानमंत्री पद संभालते ही काले धन का पता लगाने के लिए विशेष जांच दल का गठन किया वह बताता है कि सरकार को अपने संकल्प याद हैं और वह सत्ता पाकर सब कुछ भूल नहीं गयी है। इसके साथ ही मंत्रियों और अपने सांसदों को नियंत्रित करने के लिए, उनके सार्वजनिक व्यवहार व आचरण को ठीक रखने के लिए जो प्रयत्न किए जा रहे हैं वे साधारण नहीं हैं और शायद भारतीय राजनीति में यह पहली बार हैं। पिछली सरकार में प्रधानमंत्री कुछ करने और कहने के पहले को कहीं और से सिग्नल का इंतजार करना पड़ता था। शासक की यह दयनीयता तो मोदी सरकार में शायद ही दिखे।

कमजोर मानसून को लेकर सरकार की चिंताएं लगातार हो रही बैठकों से व्यक्त हो रही है। यह बात बताती है कि सरकार को अपनी चिंताओं का पूर्व में ही आभास है। कृषि मंत्रालय ने देश के 500 जिलों के लिए आकस्मिक योजना तैयार की है। खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने के लिए राज्यों को तीन माह का वक्त और दिया गया है। इसके साथ ही जमाखोरी को रोकने के लिए राज्यों को त्वरित अदालतें गठित करने को कहा गया है। मोदी सरकार के एक महीने आधार पर उनकी सरकार के बारे में कोई राय बना पाना संभव नहीं दिखता। किंतु जो लोग नरेंद्र मोदी को जानते हैं उन्हें पता है कि मोदी जल्दी ही दिल्ली को समझ जाएंगें और सत्ता के सूत्रों को पूरी तरह नियंत्रण में ले लेगें। गुजरात जैसे छोटे राज्य में शासन करना और दिल्ली की सरकार चलाना दोनों एक ही चीज नहीं हैं। संघीय ढांचे में केंद्र की ज्यादातर योजनाओं का क्रियान्वयन राज्यों की मिशनरी ही करती है। जाहिर तौर पर मोदी राज्यों को विश्वास में लेकर एक वातावरण बना रहे हैं, जो विकास और सुशासन की ओर जाता हुआ दिखता है। एक ऐसे समय में जब देश निराश-हताश हो चुका था, दिल्ली की राजसत्ता पर मोदी का आना निश्चय ही नई सरकार के साथ ढेर सारी अपेक्षाओं को बढ़ाता है। जाहिर तौर पर यह यूपीए-3 नहीं है, इसलिए इससे उम्मीदें ज्यादा हैं और यह आशा भी है कि कम से कम यह सरकार भ्रष्ट और जनविरोधी नहीं होगी। इतना तो देशवासी भी मानते हैं कि यह सरकार फैसले लेने वाली और सपनों की ओर दौड़ लगाने वाली सरकार होगी। यह भी अच्छा ही है कि नरेंद्र मोदी के आलोचक इतने सशक्त हैं कि वे उन्हें भटकने भी नहीं देंगे।

6 COMMENTS

  1. India needs NAMOMETER to check political promises.

    https://www.politifact.com/truth-o-meter/promises/obameter/
    https://www.politifact.com/truth-o-meter/promises/obameter/browse/

    આઓ મિલકર સંકલ્પ કરે,
    જન-જન તક ગુજનાગરી લિપિ પહુચાએંગે,
    સીખ, બોલ, લિખ કર કે,
    હિન્દી કા માન બઢાએંગે.
    ઔર ભાષા કી સરલતા દિખાયેંગે .
    બોલો હિન્દી લેકિન લિખો સર્વ શ્રેષ્ટ નુક્તા/શિરોરેખા મુક્ત ગુજનાગરી લિપિમેં !

    ક્યા દેવનાગરી કા વર્તમાનરૂપ ગુજનાગરી નહીં હૈ ?
    https://youtu.be/d5gCPwhj-No

  2. SAVDHAN!!!!

    DESH ME AB KONGRESI MANSIKTSAVALE OR KONGRESI MILKAR 65 SAL SE LUTI HAI DESH KI DHANRASI KO DESH ME ARAJKTA FELANE KE LIYE PRAYOG KAR SAKTE HAI !!!

    YE KONGRESI TV CHENAL OR SAMACHAR AGENCY YO KO KARODO DEKAR PRAJA KO GUMRAH KARNE KI KOSIS KAR SAKTE HAI —YE KONGRESI DHARNA KARVAKE DANGE KAR SAKTE HAI ===

    JO LOG 65 SAL ME KUCHH NAHI KAR SAKE VO 30 DIN ME MEDAN ME AA GAYE ACHCHE DIN KO LEKAR ISSE INKI MANSIKTA KA PATA CHALTA HAI —–

    BADI BESARMI KI BAT YE HAI KI CHOR SAB KE SAB AB SAHUKAR KI LANGOTI ME NAJAR AATE HAI OR SUFIYANI BATE BHI KARTE HAI LAGTA HAI PRAJAKI MAR SE BHI YE NAHI SUDHRE —

    YE SAB MIDIYA OR KONGRES KE TUKDO PAR PALNEVALE PATRAKARO KE DIMAG KI UPAJ HAI —

    AB DESH KO KONGRESI MANSIKTA MESE BAHAR LANE KI JARURAT HAI ——-

  3. Duplicate comment detected; it looks as though you’ve already said that BUT IT WAS NOT PUBLISHED. WHY?

    “हड़बड़ी की गड़बड़ी में बड़बड़ी करते वो लोग हैं जो अब तक की अव्यवस्था से लाभान्वित रहे हैं| दूसरों के कंधे पर चढ़ उन्होंने सदैव अपना ही भला सोचा है| यदि महेंद्र गुप्ता जी की टिप्पणी पढ़ी होती तो कुछ भेजे में जाता लेकिन भीतर जाने से पहले ही कठोर खोपड़ी से टकरा अशक्त हो जाता है| इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो, स्वयं नष्ट हो जाएंगे|”

  4. kunen mein girane se bache aur khai mein gire. yahi hua hai desh ke matdataon ke sath. nirasha adhik is liye hai ki modi se ye sab ummid nahin thi jo we kar rahe hain. kewal udyogpatiyon ke hit mein sare nirnay ho rahe hain.

    • अब तक मैं आपके रोग निवारण संबंधी आलेखों और आपकी टिप्पणियों के कारण आपका आदर करता आया हूँ लेकिन आपकी राजनीतिक टिप्पणी ने मुझे अचम्भे में डाल दिया है| तनिक सोचिये उद्योगपतियों के बिना विकास एवं प्रगति कैसे हो पाएगी? एक सामान्य नागरिक की दृष्टि से मैं केवल समाज में जीवन को सरल सुखद बनाती आवश्यक उपलब्धियों, पीने का पानी, बिजली, आवास, खाद्य पदार्थ, विद्या, आजीविका, स्वास्थ्य सेवा, यातायात के साधन, इत्यादि के लिए सुशासन में सरकार और उद्योगपतियों में परस्पर सहयोग की महत्वता को पहचानता हूँ| इसी प्रकार समाज को प्रभावित करते सभी व्यवसायों द्वारा राष्ट्र निर्माण हित सरकार से सहयोग करना बहुत आवश्यक है| कुशल शासन व्यवस्था के अंतर्गत सरकार द्वारा ऐसे उपक्रम सामान्य नागरिक के हित में ही होने की संभावना है| आज तक अराजकता के बीच भय और शंका में रहते हम देश के प्रति अपना उत्तरदायित्व ही भूल गए हैं और सदैव की भांति हड़बड़ी में शासन को दोष देने लगते हैं| जागो, अब पहली बार मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शासन की स्थापना हो पाई है| अच्छे नागरिक की मर्यादा में मोदी-शासन की ओर आपका और सभी का विश्वास और सहयोग बहुत आवश्यक है|

  5. डाक्टर Dhanakar ठाकुर ने जो लिखा है,वह देवनागरी लिपि में कुछ यों होता.
    “राज्य में शासन करना और दिल्ली की सरकार चलाना दोनों एक ही चीज नहीं हैं।
    इसलिए अमिन हमेशा किसी सीएम के पीएम बनाने का विरोधी रहा हूँ – पर यह याद रखने की हर आलोचक राहुल का समर्थक नहीं है . आलोचना जरूर सुने और सही निर्णय लें …रेल भाड़ा वढ़ाना था अगर संसद के द्वारा होता तो अच्छा था और क्रमशा – किसे एके नियुक्तिमके लिए अध्यदेश लाना भी गलत था – नर्मदा का स्तर बढ़ाने से बचना था – ईरानी को संस्कृति विभाग का MOS( स्वतंत्र परभर )मिलना अच्छा रहता ..समय जरूर लगेगा पर समय किसी के साथ हमेशा नहीं रहता”
    अब बताइये हड़बड़ी में गड़बड़ी कौन कर रहा है? क्या नमो एक अनाड़ी ड्राइवर की तरह नहीं व्यवहार कर रहे हैं?

  6. राज्य में शासन करना और दिल्ली की सरकार चलाना दोनों एक ही चीज नहीं हैं। isliye amin hameshaa kisee cm ke pm banane ka virodhee rahaa hun- par yah yaad rakhne kee har alochak Rahulkaa samarthak nahee hai. Alochnaa jaroor sune aaur sahee nirnay len…rail bhadaa badhan atha apar sansad ke dwaraa hota toachhaa tha aur kramsha- kise eke niyuktimke liye adhydesh lanaa bhee galt thaa – narmada ka star badhane se bachnaa thaa- iranee ko sanskriti vibhag kaa MOS( swatantra parabhar)milanaa achh rahtaa..samy jaroor lagega par samy kisee ke saath hamesha nahee rahtaa..

  7. बेचारे उतावले इसलिए भी हैं कि अगर इस सरकार ने कुछ अच्छे काम कर छवि बना उसे तोडना कठिन होगा इसलिए शुरू से ही शोर मचाओ यह कुछ मीडिया घरानो का भी काम है तो कुछ कांग्रेस से वेतन भोगी पत्रकारों का

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