दो वर्षों के आईने में मोदी सरकार की दशा एवं दिशा

Modi-governments-social-security-schemesवीरेन्द्र सिंह परिहार

केन्द्र में मोदी सरकार विगत दो वर्षों में सत्ता में आने पर उसकी दिशा एवं दशा कैसी रही? इस पर पूरे देश में विचार-मंथन का दौर चल रहा है। निस्संदेह यह एक सकारात्मक स्थिति है और लोकतंत्र की सच्ची पहचान है कि सरकार के कार्यों की समीक्षा व्यापक स्तर पर की जा रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि जन-मानस अपनी सरकार के प्रति उदासीन नही है और वह उससे सुखद बदलाव की उम्मीदें लगाए हुए है। यँू तो मोदी सरकार ने लोक प्रशासन, सुशासन और यहां तक कि व्यवस्था परिवर्तन की दृष्टि से इन दो वर्षों में बहुत सारे कदम जैसे कि डिजिटल इण्डिया, स्किल इण्डिया, मेक इन इण्डिया, स्वच्छ भारत अभियान, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, फसल बीमा योजना, स्टार्टअप, स्टैण्डअप, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, कौशल विकास योजना, मुद्रा बैंक योजना, उज्जवला योजना, सागरमाला योजनाएॅ चलाई गई हैं। अब विरोधी कहते हैं कि मोदी सरकार के दौर में देश के विकास की दिशा में बेरोजगारी दूर करने और मंहगाई कम करने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ है। पर यह तो अंधविरोध ही कहा जा सकता है। क्योंकि यह तो आईने की तरह साफ है कि विगत दो वर्षों में विकास के नए आयाम खुले हैं। बिजली के क्षेत्र में ही देखा जाए तो बिजली की कमी वाला देश अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली का उत्पादन करने लगा है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तो 157 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 1914 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के पूर्व स्थिति यह थी कि बिजलीघरों मे मात्र एक सप्ताह के लिए कोयला बचा था, वहीं अब किसी भी बिजलीघर के लिए कोयले की कोई कमी नहीं है। पिछले दो वर्षों में 7.4 करोड़ टन कोयले का अधिकतम उत्पादन हुआ है और 2020 तक कोयले का उत्पादन 100 करोड़ टन हो जाएगा। इसी तरह से मुद्रा योजना में दो करोड़ लोगों को 1 लाख 41 हजार करोड़ रुपये के ऋण दो करोड़ लोगों को वितरित किए जा चुके हैं। पाॅच हजार, दस हजार, पन्द्रह हजार रुपये के ये कर्ज छोटे व्यवसायियों, हुनरबाजों को दिया गया। जैसे कोई ठेले पर फल बेंचता है, कोई मोची की दुकान लगाकर बैठा है, कोई टेलर की दुकान लगाकर बैठा है या कोई मैकेनिक की दुकान लगाकर बैठा है या लगाना चाहता है। लेकिन इनके पास पैसा नहीं है, गरीब परिवार से है, बैंक बगैर गारण्टी के पैसा नहीं देते। ऐसे लोगों को मुद्रा योजना के तहत कर्ज दिए गए। ऐसी स्थिति में दो करोड़ लोगों को स्वरोजगार के साधन यदि उपलब्ध कराए गए तो यह कैसे कहा जा सकता है कि बेरोजगारी दूर करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया। इसी तरह से स्टार्टअप और स्टैण्डअप योजना में भी अरबों रुपये के कर्ज दिए गए। इससे बेकारी दूर करने के साथ देश का औद्योगिक परिवेश भी बदलने में मदद मिली। इसी तरह से कौशल विकास योजना के तहत भी कई लाख बेरोजगारों को समुचित प्रशिक्षण देकर उन्हें पैरों पर खड़ा होने योग्य बनाया गया। यू.पी.ए. सरकार के दौर में जहां 4 कि.मी. सड़कें रोजाना बन रही थीं, वहीं अब देश में 28 कि.मी. सड़कें रोजाना बन रही हैं। ऐसा ही कुछ कार्य रेल की पटरियां बिछाने में भी हो रहा है। सागरमाला योजना की दिशा में भी काम शुरू हो गया है, जिसमें परिवहन योग्य नदियों में परिवहन का काम शुरू हो जाएगा। इससे जहां रेल परिवहन और सड़क परिवहन पर बोझ कम होगा, वहीं जल परिवहन तुलनात्मक रूप से काफी सस्था भी पड़ेगा। मंहगाई दर भी विगत दो वर्षों की तुलना में 10 प्रतिशत की जगह 5 प्रतिशत पर आ गई है।

महात्मा गांधी का कहना था कि भारत गाओं का देश है, कृषि प्रधान देश है, पर स्वतंत्र भारत में कुल मिलाकर गाँव और कृषि उपेक्षित ही रहे। पर वर्ष 2016 के आम बजट में कृषि को इतनी प्राथमिकता दी गई कि उपरोक्त बजट को कृषि-बजट कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जिस तरह फसल बीमा योजना लागू की गई, जैविक खेती को प्रोत्साहित किया गया है और गाओं में पाॅच लाख तालाबों को बनाने का प्रावधान किया गया है। उससे न सिर्फ किसानों के चेहरों पर मुस्कुराहट आएगी, बल्कि देश धन-धान्य से भरपूर हो सकेगा। पहले जहाॅ यूरिया खाद की भयावह कमी रहती थी, वहीं विगत दो वर्षों में 17 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन बढ़ाया गया। इतना ही नहीं यूरिया की कालाबाजारी रोंकने के लिए नीम कोटेड यूरिया का प्रावधान किया गया। निस्संदेह सरकार के ऐसे कदमों का सुशासन का प्रतीक और व्यवस्था-परिवर्तन की दिशा में बड़ा कदम कहा जा सकता है। विदेशी मुद्रा भण्डार 350 बिलियन डाॅलर के रिकार्ड स्तर पर पहंुच गया है। पूरे विश्व में जहाॅ मंदी का दौर कायम है और सम्पूर्ण विश्व की औसत विकास दर 3.1 प्रतिशत है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के अनुसार सर्वाधिक गतिशील अर्थव्यवस्था है और उसकी विकास दर 7-6 प्रतिशत है।

नागरिकों के स्वस्थ्य की दृष्टि से आम-आदमी के लिए 1 लाख रुपये तक की स्वास्थ्य बीमा योजना लागू की गई है। पूरे देश में 3000 मेडिकल स्टोर खोले जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, इससे लोगों को काफी सस्ती दर पर दवाएॅ मिल सकेंगी।

कुछ लोग नेपाल का उदाहरण देकर भारतीय विदेश नीति को असफल बताने का प्रयास करते हैं। पर हकीकत यही है कि इन परिस्थितियों में नेपाल के साथ ज्यादा कुछ किया भी नहीं जा सकता था, क्योंकि भारतीय मूल के मधेशियों के प्रति भी अपने उत्तरदायित्व से भारत सरकार अपना मुॅह नहीं मोड़ सकती। लेकिन विदेश नीति के क्षेत्र में भारत ने यह बता दिया है कि वह एक उपेक्षित और भीख का कटोरा लेकर घूमने वाला राष्ट्र नहीं, बल्कि एक प्रमुख शक्ति-केन्द्र है। यह एक ऐसी सरकार है जो अपने नागरिकों के प्रति निहायत संवेदनशील है, तभी तो अरब देशों में जब भारतीय नागरिक संकट में फंसे, तो उन्हें निकालने की त्वरित कार्यवाही की गई। स्थिति यह है कि चीन और पाकिस्तान को छोड़कर अधिकांश मुस्लिम राष्ट्र भी भारत के साथ खड़े हैं। वस्तुतः ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह बनाने का समझौता कर मोदी सरकार ने चीन और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का समुचित जवाब तो दिया है, चाबहार बंदरगाह के माध्यम से वह सिर्फ अफगानिस्तान ही नहीं दुनियां के और कई देशों में अपनी पहंुच बना सकेगा। मोदी सरकार की सफल विदेश नीति का नतीजा है कि अब अमेरिका पाकिस्तान के साथ न खड़ा होकर भारत के साथ खड़ा है और अमेरिका के साथ सामरिक संधि के चलते चीन को भी अपनी दादागीरी दिखाने का कोई अवसर नहीं रह गया है। भारत ने अमेरिका, जापान, अस्टेªलिया, वियतनाम के साथ जिस ढंग से चीन की घेराबंदी की है, उसे विश्व-राजनय का एक नया अध्याय कहा जा सकता है। मोदी सरकार के विश्व व्यापी प्रभाव का करिश्माई नतीजा यह है कि सऊदी अरब की बुर्काधारी महिलाएॅ प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष भारत माता की जय के नारे लगाती हैं। इससे समझा जा सकता है कि भारत का प्रभाव और सम्मान इन दो वर्षों में पूरी दूनिया में कैसे बढ़ा है?

बड़ी बात यह कि विगत दो वर्षों से देश के समक्ष एक प्रेरक और गतिशील नेतृत्व है। प्रधानमंत्री आह्वान करते हंै कि सम्पन्न लोग गैस में सब्सिडी छोड़ें और 1 करोड़ 11 लाख करोड़ लोग सब्सिडी छोड़ देते हैं और उसके प्रतिफल में पाॅच करोड़ गरीब महिलाओं को गैस और चूल्हा मिलने जा रहा है। प्रधानमंत्री देश के नागरिकों से स्वच्छता की अपील करते हैं और देश के नागरिक सजग और जिम्मेदार हो जाते हैं। अमूमन वह कोशिश करते हैं कि कचड़ा डस्टबीन में डालें। शौचालय निर्माण की दिशा में युद्ध स्तर पर काम चल रहा है। लोगों को यह एहसास हो चला है कि उनके बीमारियों का सबसे बड़ा कारण गंदगी और अस्वस्थकर जीवन पद्धति है।

यह सब बातें तो अपनी जगह पर ठीक हैं। घोटाले तो दूर भ्रष्टाचार की चर्चा सुनने को भी नहीं मिलती। इसका मतलब यह कि मोदी सरकार के दौर में सत्ता भोग का नहीं जनसेवा का माध्यम है। भ्रष्ट और नकारा अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए इस शासन-व्यवस्था में कोई स्थान नहीं है। इसी के चलते हजारों अधिकारी-कर्मचारी घरों में बैठा दिए गए, जबकि पहले संस्थागत भ्रष्टाचार के चलते ऐसे तत्वों को विशेष संरक्षण मिलता था। मोदी सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि प्रमोशन उन्हीं अधिकारियों-कर्मचारियों को मिलेगा, जिन्हें भ्रष्टाचार से क्लीनचिट प्राप्त होगी। अभी हाल में प्रधानमंत्री मोदी ने सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ाने के प्रस्ताव को इस आधार पर रोक दिया कि सांसदों को अपने भत्ते स्वतः बढ़ाना उचित नहीं है, बल्कि यह काम किसी आयोग द्वारा होना चाहिए। इससे समझा जा सकता है कि अब तुष्टीकरण का दौर समाप्त हो गया है। इससे यह भी साबित हो गया है कि मोदी सांसदों के बल पर प्रधानमंत्री भले बने हों, पर उनके लिए सभी कार्य एवं निर्णय देश हित से ही परिचालित होते हैं। वस्तुतः प्रधानमंत्री मोदी ने इन दो वर्षों में साबित कर दिया है कि वह एक राजनीतिज्ञ न होकर राजनेता हैं, जिनकी दृष्टि वोट या सत्ता पर नहीं आने वाली पीढ़ियों पर है। बावजूद इसके देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जिन्हें देश में कोई विकास कोई नयापन दिखता ही नहीं। उनके लिए गालिब की यही लाईनें समोचीन होंगी-

‘‘मुझे देखने से पहले साफ कर अपनी आॅखों की पुतलियां गलिब

कहीं ढक न दे अच्छाईयों का भी नजरों की ये गंदगी तेरी।’’

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