-वीरेन्द्र सिंह परिहार-
अब जब केन्द्र में मोदी सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है। ऐसी स्थिति में ‘अच्छे दिन आ गए’ उस पर एक गहन समीक्षा की जरूरत है। जहां मोदी सरकार एवं भाजपा का दावा है कि ‘अच्छे दिन आए हैं,’ वहीं विरोधी दल मोदी सरकार को घेरने में लगे हेैं। विरोधी दल खास तौर पर यह प्रचारित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं कि मोदी सरकार पूंजीपतियों की पक्षधर और किसान तथा मजदूर विरोधी है। लेकिन गौर करने का विषय यह है कि इस विषय में देश के आम मतदाता की सोच क्या है? इस संबंध में बड़ी हकीकत यही है कि आम मतदाता का विश्वास और भरोसा, कमोवेश नरेन्द्र मोदी पर वैसे ही कायम है, जैसे उन्हें जनादेश देते वक्त था। निःसन्देह अच्छे दिन लाने के लिए मोदी सरकार जो कुछ कर सकती थी, वह किया है। वस्तुतः अच्छे दिन कोई लाने के लिए कोई जादुई छड़ी नहीं है, क्योकि उसके लिए महत्वपूर्ण होता है- शासकों का चरित्र, उनकी कार्यपद्धति, जैसा कि कहा गया ‘प्रजा प्रिये, प्रियं राजा, प्रज्ञा हिते हितं राजा।’ यानी कि जो प्रजा के हित में हो, उसे में राजा का हित हो। कहने का आशय यह कि शासकों का अपना कोई निजी एजेण्डा न होकर जनहित ही एकमात्र एजेण्डा हो। यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार जन कल्याण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस पूरे एक वर्ष के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है, और दिन में 18 घंटे वह सतत कार्यरत रहे। इतना ही नहीं, 17 सितम्बर को मोदी देश के लोगों से यह अपेक्षा करते है कि इस दिन उनका जन्मदिन न मनाकर वह काश्मीर के बाढ़-पीढि़तों की अधिक-से-अधिक मदद करें। अब इसकी तुलना उस दृश्य से करिए जब जून 2013 में उत्तराखण्ड में सर्वनाशी बारिश और बाढ़ के बीच 19 जून को राहुल गांधी का जन्मदिन कैसे राजसी अंदाज में मनाया गया था। इतना ही नहीं वहां के तात्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा भी वहां की जनता को बदहाली और मौत के मुँह में छोड़कर दरबार में अपनी वफादारी साबित करने पहुंच गए थे। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते के बाद ही नरेन्द्र मोदी ने कहा था- कि वह कभी भी अपने लिए कुछ नहीं करेंगे। यानी वह जो कुछ करेंगे, देश के लिए करेंगे। इसमें कोई दो मत नहीं कि मोदी ने अपनी बात को पूरी तरह निभाया है, और उनके दामन में केाई दाग तो दूर छींटे तक नहीं पड़े हैं। मोदी सरकार में किसी मंत्री पर कोई घोटाला तो दूर, भ्रष्टाचार के आरोप तक नहीं लगे हैं, जो कि पिछली सरकार का विशेषाधिकार हुआ करता था।
किसी भी सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह होती है कि देश की सीमाएं सुरक्षित रहे ओैर कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर रहे। चूंकि भारतीय संविधान के तहत कानून-व्यवस्था राज्य सरकारों का विषय है, इसलिए इस विषय पर मोदी सरकार को लेकर ज्यादा चर्चा करने की जरूरत नहीं है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि जहां तक देश की सीमाओं की सुरक्षा का प्रश्न है, उसमें गुणात्मक सुधार हुआ है। यूपीए सरकार के दौर में पाकिस्तान आए दिए दादागिरी और दरिन्दगी दिखलाता रहता था। सीमाओं पर गोलाबारी और घुसपैठ आम बात थी। पर जब मोदी सरकार ने पाकिस्तान कि इन हरकतों का जवाब ‘ईट का जवाब पत्थर’ की तर्ज पर दिया तो विगत कई महीनों से हमारी पाकिस्तान की सीमाओं पर शांति का वातावरण है। इसी तरह से चीन में सैनिक भी आए दिन हमारी सीमाओं पर घुसपैठ करते रहते थे और हमारी धरती पर आकर अपना झण्डा गाड़ देते थे। पर तब की यूपीए सरकार इसका प्रतिरोध करना तो दूर-इसे छिपाने का भी प्रयास करती थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। मोदी सरकार के शुरूआत दौर में भी चीनी सैनिकों ने ऐसी ही दादागिरी करने का प्रयास किया। पर बदले हालात में भारतीय सैनिकों ने इसका पुरजोर विरोध किया। इतना ही नहीं चीन को भी यह समझ में आ गया कि अब भारत वह भारत नहीं बल्कि एक महाशक्ति बतौर उभरता भारत है, और इससे दुश्मनी लेने के प्रयास बहुत गंभीर होंगे। फलतः अब चीनी घुसपैठ के समाचार भी सुनने को नहीं मिलते। यह तो तस्वीर का एक पहलू है, तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि रक्षा योजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है और रूके हुये सेना के सौदों पर तेजी से काम हो रहा है। देश की सशस्त्र सेनाओं को पूरी तरह सक्षम और आधुनिक बनाया जा रहा है, ताकि वह किसी भी चुनौती का सामना कर सकें।
भारत जैसे देश में जहां पर देश की अधिसंख्य जनसंख्या अब भी गरीब है, वहां महंगाई सदैव एक बड़ा मुद्दा रहा है। पिछली सरकार के पराजय का एक बड़ा कारण भी सुुरसा की तरह बढ़ती महंगाई ही थी। लेकिन अब यह पूरे विश्वास से कहा जा सकता है कि महंगाई पूरी तरह नियंत्रित है। यूपीए सरकार के दौर में मुद्रास्फीति की दर जहां दो अंकों से ज्यादा रहती थी, वही अब उसकी दर 4 प्रतिशत से नीचे 3.5 है। इसे मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है और ‘अच्छे दिन आ रहे हैं’ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रधानमंत्री मोदी पर एक बड़ा आरोप विरोधी लगाते है कि वह एक तानाशाह की तरह काम करते हैं और पूरी तरह शक्तियां उन्हीं को पास केन्द्रित है। जबकि असलियत में यह इतना बड़ा झूठ है कि इसका कोई आधार ही नहीं है। पूरे मंत्री स्वतंत्रतापूर्वक कार्य कर रहे हैं, पर उनके कामों पर निगरानी रखना और उन्हें गतिशील बनाए रखना यह प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय का दायित्व है। लोगों को यह पता है कि नीति आयोग बनाकर मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को शामिल कर सिर्फ राजनीतिक रूप से सत्ता का विकेन्द्रीकरण नहीं किया है, बल्कि केन्द्रीय पुल से 10 प्रतिशत और हिस्सा देकर राज्यों का हिस्सा 32 से 42 कर दिया है, इस तरह उन्होने आर्थिक क्षेत्र में भी विकेन्द्रीकरण का कार्य किया है। प्रधानमंत्री का स्वतः कहना है कि राह चलता व्यक्ति भी उन्हे राय दे सकता है और उपयोेगी महसूस होने पर वह उसे भी मानेंगे। उनकी संवदेनशीलता इस स्तर का है कि आगरा की एक नौ साल की बच्ची जब उन्हे यह पत्र लिखती है कि उनके दिल में छेद है और मॉ-बाप गरीब होने के चलते उसकी दवा नहीं करा सकते, तो प्रधानमंत्री इसका त्वरित निराकरण करते हैं। कहने का आशय यह है कि छोटे से छोटे व्यक्ति की भी सुनवाई मोदी-राज में है, जो अच्छे दिनों का प्रमाण ही नहीं गारण्टी भी है।
मोदी सरकार पर सबसे बड़ा आरोप यह है कि वह पूंजीपतियों की पक्षधर तथा किसान, मजदूर विरोधी है। अब जहां तक पूंजीपतियों के पक्षधर होने का प्रश्न है, वहां यह बताना जरूरी है कि वर्तमान दौर कानून के शासन का है, इसलिए पूंजीपति कोई नाजायज लाभ पाएंगे, ऐसी संभावना न के बराबर है। पर इसमें भी बड़ा सच यह है कि देश के औद्योगीकरण की जरूरत है, ताकि देश की आर्थिक तरक्की हो, और युवाओं को रोजगार मिल सके। निश्चित रूप से इसके लिए उद्योगपतियों को सुविधाएं और सहूलियते देनी पड़ेगी। प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण बिल के नाम पर भी पूंजीपति समर्थक और किसान-विरोधी होने को प्रचारित किया जाता है, जबकि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पूंजीपतियों और निजी संस्थाओं के लिए कोई अधिग्रहण नहीं करेंगी। सिर्फ शासकीय योजनाओ और वह भी आधारभूत और विकास संबंधी योजनाओ के लिए हीं किसानों की भूमि का आवश्यक होने पर ही अधिग्रहण करेगी। अब जहां तक किसान विरोधी होने का सवाल है, तो यही मोदी सरकार है जिसने किसानों की फसल की क्षति की सीमा 50 प्रतिशत से 33 प्रतिशत कर दी है और किसानों को प्राप्त होने वाले मुआवजे की राशि डेढ़ गुना कर दिया है। किसानों के प्रति उनकी संवेदना की स्थिति यह है कि गत वर्ष ही जब विश्व बैंक ने किसानों को सब्सिडी बंद करने को कहा तो प्रधानमंत्री मोदी ने दृढ़ता से इंकार कर दिया था। प्रधानमंत्री जनधन योजना में जहां 12 करोड़ से ज्यादा खाते इतने कम समय में खुल चुके है। वहीं गरीबों के लिए अटल पेंशन योजना , सुरक्षा बीमा योजना, जीवन ज्योति बीमा योजनाएं भी शुरू की गई हैं। युवाओं के लिए ‘कौशल विकास योजना’ में पांच हजार से बीस लाख रूपयें तक देने का प्रावधान है।
देश में एक वर्ष में ही 30 प्रतिशत बिजली का उत्पादन बढ़ गया है। यूपीए के शासन में मात्र दो किमी सड़क बनती थी, जो अब दस किमी रोजाना है और शीघ्र ही 30 किमी रोजाना होने जा रही है। जिन 200 कोयला खदानों को यूपीए सरकार ने वेैसे ही लुटा दिया था, उसमें मात्र बीस खदानों से दो लाख करोड रूपयें मिल जाते हैं। देश की विकास दर पिछले वर्ष के 4.5 की तुलना में 7.5 प्रतिशत हो गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक संस्था का कहना है कि वर्ष 2016 में ही आर्थिक प्रगति के क्षेत्र में यानी राष्ट्रीय विकास दर के मामले में भारत चीन से आगे निकल जायेगा। बड़ी उपलब्धि यह कि कही भी देश या विदेश में कोई समस्या आए,सरकार तुरंत ही पहुंच जाती है। वह चाहे जम्मू-काश्मीर हो, बिहार हो, यमन या नेपाल। विश्व मंच पर भारत की आवाज को गंभीरता से सुना जाने लगा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता हैे कि यह एक निहायत ही संवेदनशील और जवाबदेह सरकार है। मोदी सरकार ने अपने एक वर्ष के ही कार्यकाल में लोगों को यह एहसास करा दिया है कि सत्ता भोग का नहीं अपितु सेवा का माध्यम है। सब ऐेसे ही चलेगा, या सब चलता है, कि अवधारणा लोगों के मनोमस्तिष्क से दूर हो रही है। निराशा और हताशा में डूबा राष्ट्र आशा और विश्वास की राह पर त्वरित गति से चल पड़ा है। इस तरह से विरोधी चाहे जो कहे पर यह दीवारों पर लिखी हकीकत है कि यह सरकार ‘जनता की जनता द्वारा जनता के लिए’ है। बाकी पूर्ण परिणाम देखने के लिए अभी मोदी सरकार के चार वर्ष बाकी है।