मोदी सरकार को घेरने में कामयाब रहा है विपक्ष

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-मदन तिवारी-

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भारत की केंद्रीय राजनीति में मोदी सरकार को सत्ता संभाले हुए तकरीबन एक साल का वक़्त गुज़र चुका है।विगत वर्ष अप्रैल – मई के माह में हुए आम चुनावों में जनता ने भाजपा को 281 सीटें देकर केंद्र की राजनीति करने का अवसर प्रदान किया था। बीते एक साल के भीतर मोदी सरकार ने ऐसी कई उपलब्धियां हासिल की है जिसके आने वाले सालों में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। लेकिन इसके साथ ही साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनकी कैबिनेट ने सालभर में कई मोर्चे पर ऐसी गलतियाँ भी की हैं जिस वजह से सरकार को न केवल जनता ने ही नहीं बल्कि विपक्ष ने भी घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

 

भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2014 में 26 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही यह जता दिया था कि आने वाले वक़्त में उनकी सरकार भारत देश के साथ साथ विदेश में भी भारत की ऐसी छवि बनाएगी जो बीते कई दशकों में किसी भी केंद्रीय सरकार ने नहीं बनायीं थी। मौजूदा वक़्त में जब तमाम राजनैतिक विश्लेषक व जनता मोदी सरकार के एक साल पूरे होने पर सरकार के कामकाज का अवलोकन कर रही है तो ऐसे समय में यह सवाल भी प्रासंगिक हो उठता है कि केंद्र सरकार के विपक्षी दल आखिरकार अपने काम में मसलन प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा को घेरने में कितने कामयाब हो सके हैं?

 

गौरतलब है कि लोकसभा चुनावों के परिणाम के बाद लोकसभा की कुल सीटों के दस फीसदी से कम सीटें मिलने की वजह से किसी भी राजनैतिक दलों को संवैधानिक रूप से विपक्ष का पद नहीं दिया गया था, जिसके बाद से ऐसा प्रतीत होने लगा था कि क्या आने वाले सालों में राजग की विपक्षी पार्टियाँ मोदी सरकार के कामकाजों की मुखालफत कर भी पाएंगी या मोदी सरकार इस मामले में खुशनसीब साबित होगी कि सरकार के कामकाज व कार्यप्रणाली का हाल चाल व सवाल जवाब करने वाला सदन में कोई भी नेता मौजूद नहीं रहेगा।

खैर, संवैधानिक रूप से विपक्ष का पद न पाते हुए कांग्रेस, जदयू, आप आदि जैसे राजनैतिक दलों ने साझा रूप से विपक्षी पार्टियों की तरह काम करते हुए भाजपा सरकार व प्रधानमंत्री मोदी पर बेहतर ढंग से सवाल जवाब किये। महज साल भर के भीतर ही मोदी सरकार पर ऐसे कई मौके आये जब विपक्ष ने सरकार पर बेहद तीखे हमले किये। कामकाज संभालते ही प्रधानमंत्री मोदी व उनकी कैबिनेट द्वारा पारित किये गये निजी सचिव नृपेन्द्र मिश्र को लेकर अध्यादेश की बात हो या उसके बाद संप्रग सरकार के द्वारा कई प्रदेशों के राज्यपाल को हटाने का मुद्दा रहा हो। इन जैसे तमाम मुद्दों पर कांग्रेस समेत तमाम अन्य राजनैतिक दलों ने भी मोदी सरकार के कामकाजों पर सवाल उठाते हुए उनकी कई बार घेराबंदी कर चुके हैं।

 

इसके साथ ही मोदी सरकार द्वारा लिए गए भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कदम को भी विपक्ष अपने हाथों में लेते हुए किसानों के समक्ष सरकार को इस अहम् मोर्चे पर कुछ इस तरह से घेरने में कामयाब हो गयी कि देश के किसानों के सामने मोदी सरकार की छवि पूंजीपतियों, उद्योगपतियों, कॉर्पोरेट घरानों की मदद करने वाली सरकार जैसी बन गयी।

 

बहरहाल, इसी सन्दर्भ में बात करते हुए एक बात और निकल कर सामने आती हुई दिख रही है कि बीते आम चुनावों के वक़्त कई बार भाजपा की ओर से अपरिपक्व, राजनीति के लिए अन फिट आदि जैसे कटाक्ष झेल चुके कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी 56 दिनों के आराम के बाद लौटते ही सदन में मोदी सरकार को कई अहम् मुद्दों पर घेरने में सफलता हासिल की है। सूट-बूट की सरकार से लेकर मौजूदा वक़्त में अमेठी के किसानों से मिलने पर राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा नीत राजग सरकार पर चौतरफा हमला किया है।

 

खैर, आने वाले समय में यह देखना और दिलचस्प रहने वाला है कि सदन में संवैधानिक रूप से विपक्ष का पद न मिलने के बावजूद भी आखिरकार कांग्रेस व तमाम अन्य विपक्षी राजनैतिक दल किस तरह से प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा सरकार के कामकाजों पर सवाल उठाने व उन्हें घेरने में कामयाब होते हैं।

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