मोदी सरकार का मैंनेजमेंट तंत्र

0
228
हिमांशु शेखर
नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली नई सरकार कई तरह से अपने कामकाज को अलग दिखाने की कोशिश कर रही है। इन्हीं कोशिशों में एक कोशिश यह भी है कि सरकारी अधिकारियों को प्रोत्साहित करने के लिए वैसे लोगों को बुलाया जा रहा है जो अब तक निजी क्षेत्र की कंपनियों में मैनेजमेंट और प्रोत्साहन जैसे विषयों पर व्याख्यान देते रहे हैं। अब तक केंद्र सरकार के दो अलग-अलग मंत्रालयों ने चेतन भगत और शिव खेड़ा को बुलाकर अधिकारियों के प्रोत्साहन के लिए कार्यशाला का आयोजन किया है। चेतन भगत अंग्रेजी के जाने-माने लेखक हैं। पिछले कुछ सालों में वे खास तौर पर युवा वर्ग में बेहद लोकप्रिय हुए हैं।
बतौर लेखक सफल होने के बाद चेतन भगत ने अपनी पहचान एक ऐसे वक्ता के तौर पर भी बनाई है जिसे निजी कंपनियां और शैक्षणिक संस्थाएं अपने यहां के लोगों को प्रोत्साहित करने के मकसद से भाषण देने के लिए बुलाते हैं। शिव खेड़ा ने भी लोगों को प्रेरित करने वाली कुछ बेहद लोकप्रिय किताबें लिखी हैं और वे भी प्रेरक भाषण देने देश-विदेश के कई संस्थानों में जाते हैं।
यहां यह समझना भी जरूरी है कि नरेंद्र मोदी खुद प्रबंधन को लेकर बेहद सजग दिखते रहे हैं। जब से वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब से ही उन्होंने गुजरात में शासन करने के अलावा वहां प्रबंधन की तकनीक को लागू करने में भी काफी दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि राज्य में जो काम हो, उसकी सही मार्केटिंग हो। इस दिशा में उन्हें काफी कामयाबी भी मिली। उन्होंने न सिर्फ अपने कामों की मार्केटिंग की बल्कि उन्होंने गुजरात को ‘ब्रांड गुजरात’ और खुद को ‘ब्रांड मोदी’ के तौर पर भी स्थापित किया। इसके अलावा उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे विशेषज्ञों से अपने अधिकारियों और कर्मचारियों का संवाद भी कराया। इन सबका जमीनी स्तर पर कितना असर हुआ, यह कहना तो मुश्किल है लेकिन इसे एक पहल के तौर पर तो देखा ही जा सकता है।
नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में चेतन भगत और शिव खेड़ा जैसे विशेषज्ञों को बुलाकर इनका संवाद सरकारी अधिकारियों से कराने की पहल केंद्रीय ऊर्जा, कोयला तथा नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने की। उन्होंने अपने मंत्रालयों के अधिकारियों को प्रेरित करने के लिए चेतन भगत को बुलाया। उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय सूचना प्रसारण और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर थे। इसके बाद जावड़ेकर ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को प्रोत्साहित करने के लिए शिव खेड़ा का भाषण कराया। इन आयोजनों में क्या-क्या हुआ, यह जानने से यह समझने में आसानी होगी कि ऐसे आयोजनों का आखिर मकसद क्या है और इन आयोजनों के पीछे क्या सोच काम कर रही है।
पीयूष गोयल के मंत्रालयों में आयोजित कार्यक्रम को नाम दिया गया-संपर्क, समन्वय एवं संवाद। मंत्रालय के मुताबिक इस आयोजन का उद्देश्य सभी तीन ऊर्जा क्षेत्रों के बीच बेहतर तालमेल विकसित करना तथा राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए मंत्रालयों के कामकाज में समन्वय लाना है। इस सम्मेलन में तीनों मंत्रालयों के लगभग 350 अधिकारियों ने हिस्सा लिया। इस आयोजन की पहल करने वाले मंत्री पीयूष गोयल इस आयोजन का मकसद स्पष्ट करते हुए कहते हैं, ‘अब समय राजनीति से ऊपर उठकर काम करने का है और प्रणाली के अंदर जो बांधाएं हैं उन्हें दूर करना आवश्यक है। तीनों मंत्रालयों को जनता में स्पष्टता, पारदर्शिता तथा एकता का संदेश देना होगा। तीनों मंत्रालय सकल घरेलू उत्पाद विकास में 1.5 प्रतिशत से 2.0 प्रतिशत का योगदान कर सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि इन मंत्रालयों के अधिकारी आपसी तालमेल के साथ काम करें और इसके लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया।’ गोयल ने इस मौके पर कहा, ‘अधिकारियों को इस तरह से काम करना चाहिए कि लोग उन पर भरोसा कर सकें। हमें खुद को जनता का सेवक के तौर पर देखना होगा तब ही सरकार की छवि बदलेगी। जनता हमें बाबू लोग कहकर बुलाती है, हमें इसे बदलना होगा। इसलिए मेरा आप सभी लोगों से अनुरोध है कि आज जिस कार्यक्रम में हम बैठे हैं, उसमें होने वाली बातचीत को आप गंभीरता से सुनेंगे और इसे अमल में लाएंगे।’ इसके बाद चेतन भगत ने तकरीबन एक घंटे तक तीनों मंत्रालयों के अधिकारियों को संबोधित किया। उन्होंने देश-दुनिया के कई उदाहरणों और घटनाओं के जरिए अधिकारियों को प्रोत्साहित करने की कोशिश की। इस कार्यक्रम में आए अधिकारियों को एलेक्स फग्र्युसन की आत्मकथा दी गई। फग्र्युसन की पहचान मैनचेस्टर यूनाइटेड के सफल प्रबंधक के तौर पर रही है। वे 1986 से लेकर 2013 तक दुनिया के बेहद लोकप्रिय फुटबाॅल क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड के प्रबंधक रहे।
गोयल की इन बातों को ध्यान से समझने की कोशिश की जाए तो यह पता चलता है कि यह सरकार सरकारी संस्थानों के कार्यप्रणाली में बदलाव लाने की इच्छा के साथ काम करना चाहती है। गोयल की बातों से यह भी लगता है कि सरकार निजी क्षेत्र की अच्छी चीजों को सरकारी कर्मचारियों के कामकाज में शामिल करना चाहती है। इसलिए ही सरकार वैसे लोगों को अधिकारियों के बीच प्रेरक भाषण देने के लिए ला रही है जिनका इस्तेमाल निजी क्षेत्र लंबे समय से करता रहा है। निजी क्षेत्र वाली कार्यसंस्कृति सरकारी संस्थानों में लाने की कोशिश की एक बड़ी वजह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहे जा सकते हैं। मोदी के कामकाज के बारे में अब तक जितना कहा गया है, उन सभी में यह बात समान है कि उनका काम करने का तरीका पारंपरिक नहीं है और वे बाकियों की तुलना में थोड़ा हटकर काम करते रहे हैं। गुजरात में भी उन्होंने इसी तरह से काम किया है। वे निजी क्षेत्र के साथ तालमेल बैठाकर चलने की राय रखने वालों में हैं। गुजरात में उनके साथ काम करने का अनुभव रखने वाले सरकारी अधिकारी खुद मानते हैं कि नरेंद्र मोदी निजी क्षेत्र के बाॅस की तरह काम का हिसाब लेते हैं। ऐसे में यह बेहद स्वाभाविक लगता है कि नरेंद्र मोदी की सरकार में काम करने वाले मंत्री भी कामकाज के मामले में उन्हीं का तौर-तरीका अपनाएं। गोयल और जावड़ेकर की कोशिश को इससे जोड़कर भी देखा जा सकता है।
प्रकाश जावड़ेकर की अगुवाई वाले सूचना प्रसारण और पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों को प्रेरित करने के लिए शिव खेड़ा को बुलाया गया। प्रकाश जावड़ेकर इस कोशिश को प्रशासनिक सुधार से जोड़कर देखते हैं। उनका मानना है कि ऐसे कार्यक्रमों के जरिए सरकारी अधिकारियों को संवेदनशील बनाया जा सकता है और इससे जनता के साथ दोतरफा संवाद कायम हो सकेगा। इस मौके पर जावड़ेकर ने कहा, ‘अफसरशाही को लेकर लोगों की सोच बदलने की जरूरत है। अधिकारियों को सकारात्मक सोच के साथ काम करना होगा ताकि लोगों की जरूरतें पूरी की जा सकें। अधिकारियों को इस दिशा में काम करना चाहिए कि वे आम जनता में यह विश्वास जगा सकें कि सरकारी अधिकारी उनकी परेशानियों को ठीक से समझते हैं और इसके समाधान के लिए प्रतिबद्ध हैं।’ इसके बाद शिव खेड़ा ने कई तरह के उदाहरणों के साथ अधिकारियों को प्रेरित करने के मकसद से अपनी बात रखी।
पीयूष गोयल और प्रकाश जावड़ेकर की इस पहल पर बहुत सवाल उठाने की गुंजाइश नहीं है लेकिन जिन दो वक्ताओं का चयन इन दोनों मंत्रियों ने किया, उसे लेकर कई तरह के सवाल उठे। चेतन भगत को बहुत सारे लोग तो लेखक ही नहीं मानते। हालांकि, यह बात अलग है कि उनकी किताबें भारत में अंग्रेजी भाषा में लिखी जाने वाली किताबों में सबसे अधिक बिकती हैं। लेकिन सरकार और नीतिगत मसलों पर भगत की समझ को लेकर सवाल उठते रहे हैं। एक बार उन्होंने अपने एक लेख में रक्षा क्षेत्र में भारत के भारी-भरकम खर्चे का हवाला देते हुए इसके निजीकरण का सुझाव दे दिया था। इसके बाद काफी बवाल मचा। चेतन भगत अखबारों में जो लेख लिखते हैं, उनमें उनके विचारों को लेकर कई बार विवाद हुआ है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कई गंभीर मसलों पर चेतन भगत ने बेहद बचकाने विचार अपने लेखों में जाहिर की है। वहीं शिव खेड़ा की किताबें भी काफी बिकी हैं, लेकिन अफसरशाही या सरकारी क्षेत्र के कामकाज में सुधार की उनकी समझ को लेकर कई लोग सवाल उठा रहे हैं। किसी खास किताब का बेस्टसेलर हो जाना अलग बात है और प्रशासन चलाना या इसे दिशानिर्देश देना बिल्कुल अलग बात है। लेकिन फिर भी अगर इन दोनों लोगों को बुलाया गया है तो इसके भी अपने तर्क संबंधित मंत्रियों के पास होंगे। इनके तर्कों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने इन मौकों पर क्या बोला। इन आयोजनों में मंत्रियों के विचारों की चर्चा इस आलेख में पहले ही की गई है।
बहरहाल, इन सबसे अलग इन दोनों आयोजनों के संदर्भ में यह समझना भी बेहद जरूरी है कि चाहे ऊपर के स्तर पर सरकारी क्षेत्र के कामकाज में कितना भी सुधार हो जाए लेकिन आम जनता का वास्ता पड़ता है नीचे के अधिकारियों से। जिन मंत्रालयों में ये आयोजन हुए हैं, उन मंत्रालयों तक तो आम आदमी अपने किसी काम के लिए पहुंच ही नहीं पाता। आम आदमी का पाला पड़ता है नगर निगम के अधिकारी, प्रखंड के अधिकारी से, थाने से और ऐसे ही अन्य सरकारी संस्थानों से जो सीधे-सीधे जनता के बीच काम करते हैं। इसलिए अगर सरकार सही मायने में सरकारी तंत्र को जनता की जरूरतों के हिसाब से ढालना चाहती है तो सरकार को नीचे के स्तर पर काम करना होगा। क्योंकि बगैर नीचे के स्तर पर सुधार किए जनता को लाभ नहीं मिलने वाला। चेतन भगत और शिव खेड़ा जैसे लोगों की बातों का कितना असर दिल्ली के मंत्रालयों में बैठे अधिकारियों पर होगा, यह कहना तो मुश्किल है लेकिन नीचे के स्तर पर सुधार की जरूरत को लेकर किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
यहां यह बात ध्यान रखने की है कि जनता का ज्यादातर काम उन सरकारी कार्यालयों से पड़ता है, जो राज्य सरकारों के अधीन हैं। ऐसे में केंद्र सरकार के प्रवक्ता यह कहकर पल्ला झाड़ सकते हैं कि वे कुछ नहीं कर सकते। उन्हें यह समझना होगा अगर केंद्र सरकार ने अपने उन कार्यालयों की कार्यसंस्कृति बदल दी जिनका सीधा संपर्क जनता से है तो इससे पूरे देश में सरकारी कार्यसंस्कृति में सकारात्मक बदलाव का माहौल बनेगा। इससे राज्य सरकारों पर भी दबाव बढ़ेगा। फिर इसके बाद राज्य सरकार के उन विभागों और कार्यालयों के कामकाज में भी सुधार होगा जिनसे आम जनता का वास्ता रोज का है। ऐसा किए बगैर बड़े नाम वाले वक्ताओं को बुलाकर दिल्ली में भाषण दिलाने का कोई लाभ कम से कम आम लोगों तक तो पहंुचता नहीं दिखता। भले ही इससे काॅरपोरेट घरानों की परियोजनाओं को आसानी से मंजूरी मिलती चली जाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here