नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के साथी “क्रांतिकारी मोहन लहरी” नहीं रहे – विनम्र श्रद्धांजलि

राजीव रंजन प्रसाद

अभी-अभी यह दु:खद सूचना मिली है कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के साथी “क्रांतिकारी मोहन लहरी” नहीं रहे। श्री मोहन लहरी जी का जन्म 1908 को होशंगाबाद में हुआ था तथा 104 वर्ष की संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा के पश्चात कांकेर (बस्तर) के एक गेस्ट हाउस में 29 अगस्त 2012 की मध्य रात्रि को उन्होंने आखिरी सांस ली। श्री मोहन लहरी के साथ आज उस जीवित इतिहास का अंत हो गया जो भारतीय स्वतंत्रता के क्रांतिकारी अतीत से आरंभ हो कर महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव के बस्तर में जारी संघर्ष तक जुडता है। वे प्रखर वक्ता तथा हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जापानी तथा जर्मन भाषाओं के विद्वान थे। मूलत: पत्रकार श्री लहरी, रासबिहारी बोस के साथ मिल कर क्रांतिकारी आन्दोलन के सहभागी बने तथा अपने सबसे ताकतवर हथियार ‘कलम’ से भी अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाते रहे। उन्होंने फिलिपिन की फ्लोरा फ्रांसिस से प्रेम विवाह किया था। चौदह साल के दाम्पत्य जीवन में उनकी एक कन्या भी थी। क्रांतिकारी और उसके परिजनों का जीवन सर्वदा दाँव पर लगा रहता है। वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ जापान में रहे साथ ही जापानी अखबार निशि निशि के लिये पत्रकारिता भी कर रहे थे। उस दिन वे नेताजी के साथ किसी कार्य से बाहर थे जब उनके बंगले को आठ टन का बम गिरा कर नष्ट कर दिया गया। इस हमले में श्री मोहन लहरी की पत्नी तथा पुत्री मारे गये। श्री लहरी कुछ समय तक मानसिक रूप से आहत रहे तथा अस्पताल में भी थे।

जापान से अपने परिजनों की निरंतर तडपाती यादों से भाग कर वे नेताजी के निर्देश पर रंगून आ गये। श्री लहरी जनरल आंग सांग से भी संपर्क में भी थे। बर्मा पहुँच कर उन्होंने वायस ऑफ बर्मा नाम का अखबार निकाला और कलम से स्वतंत्रता की लडाई लडने लगे। उनसे बात करने वाले जानते हैं कि किस रुचिकर तरीके से श्री लहरी स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत लौटने की घटना का वर्नन करते थे, जब नेताजी के साथी होने के कारण उनके पीछे बहुत समय तक जासूस लगे रहे। आखिर श्री लहरी एक समय में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सरकार के मिनिस्ट्री आफ प्रेस पब्लिसिटी एंड प्रोपागेंडा के प्रोग्रामिंग आफिसर रहे थे। अपनी जासूसी से तंग आ कर दबंग श्री लहरी नें सीधे ही प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा। इसके बाद नेहरू जी से उनकी दार्जलिंग में मुलाकात हुई। पंडित नेहरू नें उन्हें चाईल्ड वेल्फेयर काउंसिल, मध्यप्रदेश का अध्यक्ष बना दिया। कर्मठ श्री मोहन लहरी नें स्वयं घूम घूम कर सिवनी, छिन्दवाडा जैसी जगहों में अनेक आँगनबाडियाँ खोली हैं।

श्री लहरी नें दो किताबे भी लिखी थी – ‘नेताजी स्पीक्स’ जिसका ट्रांस्लेशन हुआ है बांगला में ‘आमी सुभाष बोलछी’ और हिन्दी में भी किसी जमाने में ये किताब आई थी; दूसरी किताब थी ‘टोकियो टू इम्फाल’ जो उन्होंने बर्मा में लिखी थी, जिसे रंगून में बर्मा पब्लिशर्स नें प्रकाशित किया था। ये दोनो ही किताबें अब उपलब्ध नहीं हैं। आत्मा से पत्रकार श्री मोहन लहरी क्रोनिकल से भी कुछ समय तक जुडे थे। बाद में भोपाल में रह कर वे स्वतंत्र पत्रकारिता करने लगे। उसी दौरान बस्तर रियासत के अंतिम महाराजा तथा तब विधायक रहे प्रवीर चन्द्र भंजदेव नें श्री लहरी का कोई आलेख पढ कर उनसे संपर्क किया तथा फिर उन्हें अपने साथ बस्तर ले आये। श्री लहरी लगभग साढे छ: साल तक प्रवीर चन्द्र भंजदेव के सलाहकार भी रहे तथा तत्कालीन बस्तर की ज्वलंत राजनीति में अपनी प्रखर सोच का योगदान देते रहे। प्रवीर से किसी अनबन के कारण स्वाभिमानी श्री लहरी कांकेर आ गये तथा 1965 से ले कर आज तक के अपने जीवन का शेष हिस्सा उन्होंने कांकेर में रह कर ही गुज़ारा।

मेरा सौभाग्य है कि श्री मोहन लहरी से पत्रकार मित्र श्री कमल शुक्ला के सौजन्य से मेरी दो बार मुलाकात हुई है। अपने उपन्यास “आमचो बस्तर” के लिये मैने उनसे लम्बी बातचीत की थी तथा फिर इस उपन्यास में उन्हें एक पात्र की तरह प्रस्तुत करने का मुझे सौभाग्य मिला है। श्री मोहन लहरी से मैं इतना प्रभावित था कि उनकी बातों को अक्षरक्ष: रखने के लिये मैने सम्बन्धित स्थलों पर उपन्यास लेखन की अपनी शैली में भी परिवर्तन किया तथा उनसे की गयी बातचीत को पात्रों के संवाद के माध्यम से हू-बहू रखा है। श्री लहरी राष्ट्र की धरोहर थे बहुत कम लोग उनका महत्व समझते थे। श्री मोहन लहरी से जो एक बार भी मिला है वे उसके जीवन का अविस्मरणीय संस्मरण बन जाते थे। अभी एक साल पहले मेरी मुलाकात जब लहरी जी से हुई थी; वे क्षीणकाय तथा एकाकीपन से त्रस्त महसूस हो रहे थे। शायद उन्होंने उस लोक में जाने की तैयारी कर ली थी क्योंकि उनकी पिछली मुलाकात से अलग इस बार वे ‘श्री कृष्ण और उनके समाजवाद’ पर व्याख्यान देते रहे। रह रह कर वे अपनी दिवंगत पत्नी तथा पुत्री को याद करने लगते थे; यदि कोई मर्म समझे तो एसी प्रेम कहानी भी आज देखने को नहीं मिलती जहाँ श्री लहरी नें अपनी पत्नी फ्लोरा फ्रांसिस की यादों में ही युवावस्था से अब तक अविवाहित-एकाकी जीवन जीया है तथा वे उन्हें बार बार और प्रतिदिन याद किया करते थे।

इस उम्र में भी श्री लहरी की आवाज़ स्पष्ट और बुलन्द थी। सामाजिक संदर्भों पर बोलते हुए वे आज भी आन्दोलित एवं आग्नेय हो जाया करते थे। भले ही कोई महसूस न करे और देश का मुख्यधारा कहा जाने वाला मीडिया अपनी रूटीन खबरे परोसता रहे किंतु भारत की यह भूमि जानती है कि आज उसने क्या खोया है। बस्तर की वह मिट्टी धन्य है जिसे लहरी जी नें इस तरह अपना लिया था कि उसमें ही आज मिल गये। इसे मैं व्यक्तिगत क्षति भी कहूंगा क्योंकि लहरी जी से बार बार मिलना मेरी लालसा बन गयी थी। प्रशासन नें उनके अंतिम दिनों में गेस्ट हाउस उपलब्ध करा दिया था तथा उनका सार्वजनिक जीवन 15 अगस्त तथा 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय त्यौहारों में सम्मान ग्रहण करने की परिपाटी तक सीमित रह गया था। कमल शुक्ला जैसे पत्रकार साथी श्री लहरी से मिलते रहते तथा उनका कुशल क्षेम जानने की कोशिश करते रहते थे; यही उनकी दुनिया रह गयी थी। अलविदा क्रांतिकारी लहरी!! विनम्र श्रद्धांजलि।

(चित्र परिचय : क्रांतिकारी मोहन लहरी के साथ लेखक)

1 COMMENT

  1. महान आत्मा को सादर नमन और श्रधांजलि अर्पित है.

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