अभी हाल ही में जब म.प्र. के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि महिलाओं को भडकीले व उत्तेजना उत्पन्न करने वाले वस्त्र नहीं पहनना चाहिए और उनके वस्त्रों से महिलाओं के प्रति श्रद्धा जागृत होना चाहिए; तो उन पर आलोचना की बौछार होने लगी इस सम्बन्ध में जब हम गहराई से विचारें तो लगता है कि एक सभ्य और विकसित समाज को जिस प्रकार वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, चिकित्सकों, आदि आदि सभी वर्गों के पेशेवरों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार परिवार को और परिवारों के समूह यानि समाज को भी सतत, निरंतर दिशानिर्देशों की आवश्यकता पड़ती रहती है जिसे मॉरल पोलिसिंग भी कहा जा सकता है. यहाँ यह उल्लेख आवश्यक है कि पेशेवर समाजशास्त्रियों की आवश्यकता पश्चिम के समाज को पड़ती है जहां परिवार तंत्र और समाज तंत्र या सामाजिक संस्थाएं कमजोर है. पश्चिमी देशों में समाजशास्त्रियों के व्यवस्थित कार्यालय होते है जो शुल्क लेकर सलाह देते है और वे व्यक्ति, समूह या अधिकांशतः उनके देश की सरकारों के लिए काम करते है और विभिन्न विषयों पर उनको परामर्श करते रहते है. यह कोई आश्चर्य नहीं है कि इन पेशेवरों के परामर्श और अनुशंसाओं के बाद भी उनका समाज तीव्रता से अधोगति की ओर ही अग्रसर रहता है. भारत ऐसा देश है जहां समाज को दिशा देने का काम किसी पेशेवरों से नहीं कराया जाता है और यदाकदा राजनीतिज्ञों, संतो, प्रवचनकर्ताओं, शिक्षाविदों, बुजुर्गो, परिजनों आदि का निशुल्क परामर्श और टिप्पणियां ही हमारे समाज के लिए दिशानिर्देश और व्यवहार शास्त्र बनाते और सुधारते रहते है. हमारे समाज में हमारी भौजाइयों, बहनों, चाचाओं, मौसियों, मामाओं, ने जो ज्ञान और अनुभव हमें दिया है वह ज्ञान कदाचित हमारे माता पिता से मिले ज्ञान से अधिक ही होगा; और ठीक ऐसा ही अनुभव हमारे माता पिता का भी रहा होगा कि उन्होंने अपने माता पिता से भी अधिक ज्ञान अपने समाज और सगे सम्बन्धियों से ग्रहण किया होगा. यदि आज कैलाश विजयवर्गीय ने भी अपनी आयु और अनुभव के आधार पर समाज के चाचा, मामा, ताऊ, या मित्र बनते हुए यह परामर्श समाज को दिया है या मॉरल पोलिसिंग की है तो हम इतनी कठोर प्रतिक्रया क्यों दे रहे है ? उनके कथन के आलोचना करने वाले स्वयम्भू और तथाकथित बुद्धिजीवी या तो कथन की अप्रासंगिकता सिद्ध करें या चुप रहकर समाज के प्रति दयालुता प्रकट करें !!कैलाश विजयवर्गीय के कथन की अनावश्यक आलोचना करके क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ी के अवज्ञा भाव को प्रश्रय नहीं दे रहे है ??
वस्त्र या कपडे एक ऐसा ही विषय है जिससे समाज और उसमे रह रहे व्यक्तियों की स्थिति, मर्यादा, सम्पन्नता, संस्कृति और रुचियों का सार्वजनिक प्रदर्शन होता है. इस चर्चा को करते समय इंग्लेण्ड का और अमेरिका का दृष्टांत ध्यान में रखना होगा. एक तरफ जहां इंग्लेण्ड अपनी ब्रिटिश परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए आज भी रुढिवादी, परम्परावादी और पूर्ण किन्तु शालीन वस्त्र धारण करने के लिए आज भी विश्व विख्यात है वहीँ अमेरिका अपने उलजुलूल, बेढंगे और विचित्र प्रकार के कपड़ो के लिए ही नहीं बल्कि कपड़ो के मामले में नए किन्तु बेहूदे प्रयोगों के लिए भी बदनाम रहा है. इंग्लेण्ड जैसा परम्परा प्रेम पश्चिमी देशों में कदाचित अन्यत्र कहीं मिलना दुर्लभ है और अमेरिका जैसा परम्परा विद्रोह कही ढूंढना मुश्किल है (यद्धपि इस नवधनाढ्य राष्ट्र में परम्पराएं थी ही नहीं). इसका सीधा सीधा प्रभाव दोनों देशों के सांस्कृतिक वैभव पराभव में भी स्पष्टतः देखने को मिलता है. इंग्लेण्ड आज भी न सिर्फ अपनी संस्कृति को जीवित रखे हुए है बल्कि अपने इस सामाजिक आग्रह के दम पर वह अपने आर्थिक आधार को भी जागृत और सुदृढ़ रखे हुए है. इस तारतम्य में अमेरिका का नाम बिलकुल भी सम्मान से नहीं लिया जा सकता है. इंग्लेण्ड और अमेंरिका की इस तुलना को ठीक उसी भारतीय कहावत में ढाला जा सकता है कि “थोथा चना बाजे घना”. वस्तुतः यथार्थ में इन दोनों राष्ट्रों की तुलना इस रूप में ही सटीक और व्यवस्थित है.
हाल ही में म.प्र. के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने जब कहा कि महिलाओं को शालीन और गरिमामय वस्त्र पहनना चाहिए तब उस बात पर अनावश्यक विवाद उठ खडा हुआ. उन्होंने इस आशय की बात कहते हुए यह भी कहा कि महिलाओं के वस्त्रों से उनके प्रति पुरुषों का श्रद्धा भाव जागृत होना चाहिए उत्तेजना भाव नहीं. कैलाश विजयवर्गीय म.प्र. शासन के एक मंत्री होने के अलावा इस समाज के एक जिम्मेदार नागरिक भी है, यदि उन्होंने समाज के एक जागृत, चैतन्य और दायित्ववान अंग होने के नाते समाज में कपड़ो के चयन के प्रति कोई बात रखते है तो इसमें गलत क्या है? हमारे समाज में किसी भी व्यक्ति की राय या प्रतिक्रया को उसके व्यक्तव्य की गुणवत्ता या अर्थ अनर्थ के कारण नहीं बल्कि उस व्यक्ति की पृष्ठभूमि या विचारधारा के कारण निशाना बनाने की जो प्रवृत्ति विकसित हो रही है वह समाज के लिए घातक सिद्ध हो रही है. कुछ समय पहले जनवरी २०१२ में ही आंध्रप्रदेश के डी जी पी दिनेश रेड्डी ने भावशः इसी अर्थ की बात को रखा था. उस समय ही कर्नाटक के महिला व बाल विकास मंत्री सी.सी. पाटिल ने भी इस प्रकार की बात रखी थी. अभी हाल की गौहाटी की घटना के सन्दर्भ में तो स्वयं राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने कहा कि महिलायें सुविधाजनक वस्त्र अवश्य पहने किन्तु अटपटे नहीं. प्रत्येक भारतीय परिवार में परिवार के बड़े बुजुर्ग सदस्य कपड़ो और रहन सहन के सम्बन्ध में अपने परिजनों को इस प्रकार की बात कहते समझाते चले आ रहे है. यदि कैलाश विजयवर्गीय ने इस बात को रखा है कि महिलाओं को इस प्रकार के वस्त्र नहीं पहनना चाहिए जिससे कि पुरुषों को उत्तेजना हो तो इसमें गलत क्या है ?? कैलाश विजयवर्गीय ने यह बात केवल महिलाओं हेतु कही है पुरुषों के लिए नहीं इस लिए इस बात को अधूरा तो कहा जा सकता है किन्तु गलत तो कतई नहीं कहा जा सकता !! कुछ समय पहले मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर प्रबंधन ने वहाँ आने वाले श्रधालुओं ने भी यह नियम लागु किया था कि मंदिर प्रांगण में दर्शनार्थी भक्त भडकीले व पारदर्शी वस्त्र या हाफपेंट लोअर आदि न पहन कर आयें. यहाँ लगने वाली दर्शनार्थियों की भीड़ में निश्चित ही इस प्रकार के वस्त्रों के पहनकर आने से छेड़छाड़ की घटनाओं को बढ़ावा मिलता होगा. हमें यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि हम सभी इस समाज के सामान्य प्रवृत्ति वाले लोग है जो लोभ, मोह, आकर्षण, इक्छा, रूचि, प्रवृत्ति, स्वभाव आदि से सामान्यतः ही संचालित व निर्धारित होते है. यदि कोई व्यक्ति हमारे घर के बुजुर्ग के भांति समाज में इस प्रकार का सन्देश देता है कि समाज में सभी को -चाहे वे महिलाएं हो या पुरुष- गरिमामय वस्त्र पहनना चाहिए तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है भले ही यह बात कैलाश विजयवर्गीय कहे, कर्नाटक के मंत्री सी.सी.पाटिल कहे, आन्ध्र के डी जी पी दिनेश रेड्डी कहे या फिर महिला आयोग की माननीय अध्यक्षा ममता शर्मा कहे या समाज का कोई और अन्य व्यक्ति.
यद्यपि vastrons से बहुत लेना देना नहीं है मानसिक विचार का
दिगंबर जैन मुनि नंगे रहते हैं पर कामुकता नहीं आती
हर कोई योनी में शिव लिंग की पूजा करता है पर भाव बुरे नहीं आते
वैसे सभीको शालीन वस्त्र पहनना चाहिए – इस लिक्ये विजयवर्गीय की बात पर बबेला उठाना बेकार है
केवल महिलाओ के लिये द्रेस्स कोद लअगू क्र्ना तालिबानि सोच है.
बहुत ही अच्छा लगा परिवार प्रबोधिनी का कार्य उन्होंने किया है ,वे धन्यवाद के पात्र हैं